+
रुपये के प्रतीक पर सियासी घमासान क्यों, एकता का सवाल या क्षेत्रीय राजनीति?

रुपये के प्रतीक पर सियासी घमासान क्यों, एकता का सवाल या क्षेत्रीय राजनीति?

रुपये के प्रतीक ₹ को लेकर तमिलनाडु में सियासी घमासान क्यों मचा है? क्या यह भारत की एकता का सवाल है या क्षेत्रीय राजनीति से जुड़ा विवाद? जानें इस मुद्दे के पीछे की राजनीति और विभिन्न दलों की राय।

तमिलनाडु में रुपये के प्रतीक '₹' को लेकर एक नया सियासी विवाद छिड़ गया है। डीएमके सरकार ने अपने आगामी बजट के लोगो से देवनागरी रुपये के प्रतीक को हटाकर तमिल रुपये के अक्षर को शामिल किया है। इसको बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बना दिया है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तमिलनाडु की डीएमके सरकार पर बजट लोगो में देवनागरी रुपये के प्रतीक '₹' को तमिल रुपये के अक्षर से बदलने को लेकर तीखा हमला बोला है। उन्होंने इसे क्षेत्रीय अहंकार और अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। यह विवाद तब सामने आया जब शुक्रवार को डीएमके सरकार बजट पेश किए जाने से पहले तमिलनाडु में भाषा नीति को लेकर बहस गर्म है।

सीतारमण ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक पर एक लंबी पोस्ट में छह तर्कों के ज़रिए डीएमके के क़दम की आलोचना की। उन्होंने कहा कि जब 2010 में यूपीए सरकार के तहत '₹' प्रतीक को आधिकारिक तौर पर अपनाया गया था, तब डीएमके ने कोई विरोध नहीं किया था। 

निर्मला सीतारमण ने इस तथ्य का ज़िक्र करते हुए बताया कि इस प्रतीक को डिजाइन करने वाले डी. उदया कुमार पूर्व डीएमके विधायक एन. धर्मलिंगम के बेटे हैं। सीतारमण ने कहा, 'इसे हटाकर डीएमके न केवल एक राष्ट्रीय प्रतीक को नकार रही है, बल्कि एक तमिल युवा की रचनात्मकता को भी पूरी तरह अनदेखा कर रही है।'

वित्त मंत्री ने तमिल शब्द 'रुपाई' की जड़ें संस्कृत के 'रूप्य' से जोड़ते हुए बताया कि यह शब्द सदियों से तमिल व्यापार और साहित्य में गहराई से समाया हुआ है। उन्होंने कहा कि यह आज भी तमिलनाडु और श्रीलंका में मुद्रा के लिए इस्तेमाल होता है। इसके अलावा, इंडोनेशिया, नेपाल, मालदीव, मॉरीशस, सेशेल्स और श्रीलंका जैसे देशों में भी 'रुपया' या इसके व्युत्पन्न मुद्रा के नाम के रूप में प्रयोग होते हैं, जो इसकी वैश्विक पहचान को मज़बूत करते हैं।

निर्मला ने डीएमके के कदम को क्षेत्रीय अहंकार करार देते हुए कहा कि रुपये का प्रतीक भारत की वित्तीय पहचान है, खासकर वैश्विक लेनदेन में। ऐसे समय में जब भारत यूपीआई के ज़रिए सीमा-पार भुगतान को बढ़ावा दे रहा है, बजट दस्तावेजों से इस प्रतीक को हटाना 'राष्ट्रीय एकता को कमजोर' करता है और अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। उन्होंने जोर देकर कहा, 'सभी निर्वाचित प्रतिनिधि और अधिकारी संविधान के तहत देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेते हैं। इस प्रतीक को हटाना उस शपथ के ख़िलाफ़ है।'

केंद्र बनाम तमिलनाडु

यह विवाद तब और गहरा गया जब संसद में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके सांसदों के ख़िलाफ़ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की, जिसे रिकॉर्ड से हटा दिया गया। डीएमके सांसदों ने उनके इस्तीफ़े की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। केंद्र ने समग्र शिक्षा योजना के तहत तमिलनाडु को 2152 करोड़ रुपये की धनराशि रोक दी है, और प्रधान ने पहले कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी और तीन-भाषा फॉर्मूला लागू नहीं करता, फंड रोका जाएगा। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बीजेपी पर क्षेत्रीय अहंकार और तमिलनाडु के लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने का आरोप लगाया है।

यह मामला भाषा, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता के बीच तनाव को उजागर करता है। डीएमके का कदम तमिल पहचान को मज़बूत करने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है, जो हिंदी थोपने के ख़िलाफ़ उनकी लंबे समय से चली आ रही लड़ाई का हिस्सा है।

वहीं, सीतारमण का तर्क है कि यह क़दम राष्ट्रीय प्रतीकों और एकता के ख़िलाफ़ है। सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में अलगाववाद को बढ़ावा देता है, या यह सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम है?

डीएमके का यह कदम सांकेतिक होने के साथ-साथ सियासी भी है। यह उनके वोट बैंक को एकजुट करने और बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव बनाने की रणनीति हो सकती है। दूसरी ओर, बीजेपी इसे राष्ट्रीय एकता के मुद्दे के तौर पर पेश कर तमिलनाडु में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है, जहां उसकी मौजूदगी अभी कमजोर है। लेकिन दोनों पक्षों के तर्कों में अतिशयोक्ति नज़र आती है। डीएमके का प्रतीक हटाना शायद ही अलगाववाद का सबूत हो, और बीजेपी का इसे राष्ट्रीय एकता से जोड़ना भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया लगता है।

रुपये के प्रतीक को लेकर यह विवाद केवल एक डिजाइन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत जैसे बहुभाषी देश में एकता और विविधता के बीच संतुलन की बड़ी चुनौती को दिखाता है। डीएमके और बीजेपी के बीच यह सियासी जंग आने वाले दिनों में और तेज हो सकती है, खासकर जब तमिलनाडु का बजट पेश होगा। यह देखना बाक़ी है कि यह विवाद शांत होता है या केंद्र-राज्य संबंधों में नई दरार पैदा करता है।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें