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इंफाल घाटी में विद्रोही समूह से बातचीत, लेकिन किससे- यह नहीं बताया सीएम ने?

इंफाल घाटी में विद्रोही समूह से बातचीत, लेकिन किससे- यह नहीं बताया सीएम ने?

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि विद्रोहियों से बातचीत अंतिम चरण में है, लेकिन मुख्यमंत्री ने भूमिगत संगठन का नाम बताने से मना कर दिया। मणिपुर लंबे समय से जातीय हिंसा से पीड़ित है। सरकार का कहना है कि जल्द ही राज्य में शांति लौटेगी।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार इंफाल घाटी में स्थित एक विद्रोही समूह के साथ "शांति वार्ता" कर रही है। पीटीआई से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बातचीत अंतिम चरण में है। लेकिन मुख्यमंत्री भूमिगत संगठन का नाम बताने से कतराए।

3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद यह पहली बार है कि सरकार की ओर से इस तरह की बातचीत की आधिकारिक पुष्टि की गई है। हालांकि, इससे पहले, सूत्रों ने कहा था कि सरकार प्रतिबंधित यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के एक गुट के साथ बातचीत कर रही है।

अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 3 मई को आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के बाद भड़की हिंसा के बाद से 180 से अधिक लोग मारे गए हैं। हालांकि हिंसा अब लगभग थम गई है लेकिन बीच-बीच में कहीं न कहीं भड़क उठती है। 

मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं। एन. बीरेन सिंह की बातचीत से लगता है कि सरकार सिर्फ मैतेई भूमिगत संगठनों से बात कर रही है, जबकि उसे आदिवासी समूहों से भी बात करना चाहिए। मणिपुर सिंह में सबसे ज्यादा कुकी आदिवासी मारे गए हैं और उनकी संपत्तियों का नुकसान हुआ है। असंख्य चर्च जला दिए गए। पुलिस थानों से हथियार लूट लिए गए। अभी तक पूरे हथियार भी सरकार को वापस नहीं मिले हैं। मैतई समूहों ने असम राइफल्स की तैनाती खत्म करने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किए। मैतेई महिलाओं ने सेना की बैरिकेडिंग पर कई बार हमले भी किए। बहरहाल, अगर मणिपुर में वाकई शांति लौट रही है तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

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