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क्या है शरीआ, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में राज करेगा तालिबान?

क्या है शरीआ, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में राज करेगा तालिबान?

तालिबान ने साफ शब्दों में कह दिया है कि अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र नहीं, शरीआ चलेगा। शरीआ में क्या स्थिति होगी अफ़ग़ान महिलाओं की?

अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने जा रहे तालिबान ने साफ कर दिया है कि उनके नेतृत्व में वहां लोकतंत्र के लिए कोई जगह नहीं होगी और शरीआ क़ानून लागू किया जाएगा।

तालिबान के शीर्ष कमान्डरों में एक वहीदुल्ला हाशमी ने समाचार एजेन्सी 'रॉयटर्स' से कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में एक शूरा यानी कौंसिल शासन करेगा जो शरीआ क़ानून पर चलेगा।

हाशमी ने हर तरह के शक-शुबहा को दूर करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, लोकतांत्रिक प्रणाली बिल्कुल नहीं होगी क्योंकि हमारे देश में इसका कोई आधार नहीं है।

उन्होंने कहा,

अफ़ग़ानिस्तान में किस तरह की राजनीतिक प्रणाली होगी, इस पर कोई बहस नहीं है क्योंकि यह एकदम साफ है। यह शरीआ क़ानून है। बस।


वहीदुल्ला हाशमी, तालिबान कमान्डर

क्या है शरीआ?

'शरीआ' अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है रास्ता। मूल रूप से यह कोई क़ानून का कोड नहीं है।

यह क़ुरान और हदीस के आधार पर तय कुछ सिद्धांत हैं, जिन्हें मुसलमानों को मानना चाहिए या जिन रास्तों पर उन्हें चलना चाहिए।

इसमें इज़मा यानी इसलामी विद्वानों के शूरा यानी परिषद की राय भी शामिल की जाती है। इसमें क़यास यानी तुलनात्मक अध्ययन से निकली बातें भी शुमार की जाती हैं।

इन सारी चीजों को अनिवार्य, अनुशंसा,  अनुमति या प्रतिबंध-इन श्रेणियों में रखा जाता है।

कुल मिला कर शरीआ वे नियम हैं, जिन्हें हर मुसलमान को अपने जीवन में उतारना चाहिए, इनमें नमाज़, रोज़ा और ज़कात शामिल हैं।

लोगों की धारणा के उलट, शरीआ कोई लिखित किताब नहीं है, यह किसी सरकार द्वारा लागू की गई न्यायिक व्यवस्था भी नहीं है।

तालिबान की व्याख्या

लेकिन तालिबान इसलाम की एक बहुत ही संकुचित और अतिवादी व्याख्या पर चलता है, जिसमें सार्वजनिक तौर पर सजाए मौत देना, हाथ-पैर काट लेना, संगीत पर प्रतिबंध, टेलीविज़न देखने पर रोक और दाढ़ी नहीं रखने वालों या दिन में पाँच बार नमाज़ नहीं पढ़ने वालों की पिटाई वगैरह शामिल है।

शरीआ अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके से अपनाया जाता है। सऊदी अरब, क़तर और ईरान में इसे अधिक सख़्ती से लागू किया जाता है।

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शरीआ के अपराध

शरीआ के अंदर तीन तरह के अपराध आते हैं।

'ताज़िर' सबसे हल्का फुल्का अपराध माना जाता है और यह जज की मर्जी पर निर्भर करता है।

इसके उदाहरण लूटने की नाकाम कोशिश, झूठा हलफ़नामा लेना या क़र्ज़ लेना वगैरह हैं।

'क़िसास' में अपराध का शिकार हुआ व्यक्ति जो भुगतता है, अपराध करने वाले को वैसी ही सज़ा दी जाती है।

इसे 'आँख के बदले आँख' के उदाहरण से समझा जा सकता है। इसमें यदि किसी की हत्या हो जाती है और यह साबित हो जाता है तो अपराधी को सजाए मौत दी जा सकती है।

'हुदूद' सबसे गंभीर अपराध है, जो ईश्वर के ख़िलाफ़ किया गया अपराध माना जाता है।

इस श्रेणी में विवाहेतर संबंध, अवैध यौन संबंध, शराब पीना या डकैती डालना वगैरह आता है।

इसमें सज़ा के तौर पर कोड़े लगाए जाते हैं, पत्थर मार- मार कर जान ली जा सकती है, शरीर का अंग काटा जा सकता है, देश निकाला दिया जा सकता है या सार्वजनिक तौर पर मौत की सजा दी जा सकती है।

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तालिबान राज में महिलाएं

तालिबान राज में महिलाओं को शिक्षा और नौकरी की इज़ाज़त नहीं थी, वे घर पर ही रहने को मजबूर थीं।

आठ साल से अधिक उम्र की लड़कियों या महिलाओं के लिए बुर्क़ा पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। वे घर के किसी पुरुष के साथ ही घर के बाहर जा सकती थीं।

महिलाओं को हाई हील के जूते-चप्पल पहनने की इज़ाज़त नहीं थी।

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तालिबान राज में जो महिलाएं इन बातों को नहीं मानती थीं, सार्वजनिक रूप से उन्हें कोड़े लगाए जाते थे, पत्थर मारा जाता था और कुछ मामलों में उन्हें मौत की सज़ा भी दी गई थी।

तालिबान के नए निज़ाम ने कहा है कि महिलाओं को हिजाब पहनना ही होगा। वे इसके साथ नौकरी कर सकती हैं, बाहर जा सकती हैं, शिक्षा हासिल कर सकती हैं। लड़कियों के स्कूल बंद नहीं किए जाएंगे।

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