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गवर्निंग काउंसिल सरकार चलाएगी, अखुंदज़ादा नेतृत्व करेंगे: तालिबान 

गवर्निंग काउंसिल सरकार चलाएगी, अखुंदज़ादा नेतृत्व करेंगे: तालिबान 

रिपोर्ट है कि तालिबान और अफ़ग़ान नेताओं के बीच अफ़ग़ान सरकार पर सहमति बन गई है। जानिए तालिबान के सुप्रीम कमांडर हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा की क्या भूमिका होगी और सरकार में कौन-कौन शामिल होंगे। 

अफ़ग़ानिस्तान में जल्द ही नयी सरकार बन जाएगी। तालिबान ने कहा है कि इसके सुप्रीम कमांडर हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा अफ़ग़ानिस्तान सरकार का नेतृत्व करेंगे। संभव है कि उनके अधीन प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति काम करें। रिपोर्ट है कि गवर्निंग काउंसिल की तरह की व्यवस्था होगी। लेकिन यह सरकार किस तरह की होगी, सरकार में कौन-कौन लोग शामिल होंगे, महिलाओं को किस तरह की जगह दी जाएगी, इस तरह की पूरी जानकारी नहीं दी गई है। तालिबान के अधिकारी अहमदुल्ला मुत्ताकी ने सोशल मीडिया पर कहा कि काबुल में राष्ट्रपति भवन में एक समारोह की तैयारी की जा रही है।

अफ़ग़ानिस्तान के मीडिया टोलो न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान और अफ़ग़ान नेताओं के बीच चर्चा को अंतिम रूप दिया गया है और अब काबुल नई अफ़ग़ानिस्तान सरकार की घोषणा करने के लिए तैयार है। टोलो न्यूज़ ने तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य अनामुल्ला समांगानी के हवाले से कहा है, 'नई सरकार पर विचार-विमर्श लगभग तय हो गया है, और कैबिनेट के बारे में आवश्यक चर्चा भी हो चुकी है। हम जिस इसलामी सरकार की घोषणा करेंगे, वह लोगों के लिए एक ... मॉडल होगी। सरकार में कमांडर की उपस्थिति के बारे में कोई संदेह नहीं है। वह सरकार के नेता होंगे और इस पर कोई सवाल नहीं होना चाहिए।'

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य बिलाल करीमी ने बुधवार को कहा कि हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा किसी भी गवर्निंग काउंसिल के शीर्ष नेता होंगे। उन्होंने कहा कि अखुंदज़ादा के तीन डिप्टी में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के सरकार के दैनिक कामकाज के प्रभारी होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि सरकार की घोषणा अगले कुछ दिनों में होगी, न कि हफ़्तों में। 

तालिबान द्वारा 15 अगस्त को काबुल पर भी कब्जा किए जाने के बाद से दो हफ़्तों में देश की आर्थिक हालत ख़राब होती गई है। इसको लेकर भी तालिबान पर जल्द से जल्द सरकार बनाने का दबाव है।

बता दें कि 30 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो गई है। आतंकवादियों को पनाह देने वाले जिस इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान संगठन की जड़ें उखाड़ने के लिए सितंबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ाई की थी अमेरिका ने उसके साथ वार्ता की। अब तो अफ़ग़ानिस्तान आधिकारिक तौर पर तालिबान के कब्जे में है। 

जानकारों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं और निवेशकों की नज़र में नई सरकार की वैधता अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होगी। तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने की आशंका है।

कौन है अखुंदज़ादा?

अखुंदज़ादा एक इस्लामी क़ानून का विद्वान है। उन्हें आंदोलन के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में बताया जाता रहा है। वह लंबे समय से आत्मघाती बमबारी का समर्थक रहे हैं। उनके बेटे ने आत्मघाती हमलावर बनने के लिए प्रशिक्षण लिया और 23 साल की उम्र में हेलमंद प्रांत में एक हमले में ख़ुद को उड़ा लिया। जाहिर है उनके बेटे के इस काम के बाद अखुंदज़ादा का क़द तालिबान में बढ़ा।

जब पहले के तालिबान का सर्वोच्च नेता मुल्ला अख्तर मुहम्मद मंसूर 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया था तो अखुंदज़ादा की उम्मीदवारी सर्वोच्च नेता के तौर पर पक्की हुई।

कहा जाता है कि उनमें तालिबान के अलग-अलग गुटों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करने की काबिलियत है। कहा तो यह भी जाता है कि एक प्रगतिशील नेता के रूप में जाने जाने वाले अखुंदजादा ने तालिबान के ही राजनीतिक नेताओं को खारिज कर दिया और सैन्य विंग को अफ़ग़ान शहरों पर हमले तेज करने की अनुमति दी।

सर्वोच्च तालिबान नेता के तीन प्रतिनिधि हैं- शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी, समूह के संस्थापक सदस्यों में से एक अब्दुल गनी बरादर और मुल्ला मुहम्मद याकूब।

उपनेता सिराजुद्दीन हक्कानी

सिराजुद्दीन हक्कानी एक प्रसिद्ध मुजाहिदीन शख्सियत का बेटा है जो पाकिस्तान में एक बेस से लड़ाकों और धार्मिक स्कूलों के एक विशाल नेटवर्क की देखरेख करता है। 48 वर्षीय हक्कानी ने तालिबान के हालिया सैन्य कार्रवाइयों का नेतृत्व किया। उसके हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए जाना जाता है।

हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में अमेरिका की उपस्थिति का सबसे कट्टर विरोधी था। यह अमेरिकियों को बंधक बनाने, आत्मघाती हमलों और हत्याओं को अंजाम देने के लिए ज़िम्मेदार रहा। हक्कानी और उसके नेटवर्क के अल क़ायदा से भी क़रीबी संबंध हैं। 

कहा जाता है कि सिराजुद्दीन हक्कानी ने ओसामा बिन लादेन को 2001 में अमेरिकी आक्रमण के बाद तोरा बोरा में उसके मुख्यालय से भागने में मदद की थी।

राजनीतिक उप प्रमुख अब्दुल गनी बरादर

तालिबान के अभियान में शुरू में शामिल होने वालों में से एक अब्दुल गनी बरादर ने तालिबान के संस्थापक, मुल्ला मुहम्मद उमर के प्रमुख सहायक के रूप में कार्य किया। 2010 में अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान द्वारा गिरफ्तारी किए जाने तक बरादर ने आंदोलन के सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। वह गुरिल्ला रणनीति में माहिर है।

पाकिस्तानी जेल में तीन साल और कुछ समय तक नज़रबंद रहने के बाद बरादर को 2019 में अमेरिकी दबाव में तब रिहा किया गया जब ट्रम्प प्रशासन 2020 में तालिबान से शांति समझौते पर बातचीत करना चाह रहा था और इसमें उसे मदद की दरकार थी।

सैन्य नेता मुल्ला मुहम्मद याकूब

मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला मुहम्मद याकूब ने तालिबान के सैन्य बलों के साथ अपने काम के बाद नज़र में आया। रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि पदानुक्रम में नंबर 2 स्थान के लिए हक्कानी को चुनौती देने की संभावना नहीं है।

उसे अपने पिता की तुलना में कम हठधर्मी माना जाता है। कहा जाता है कि उसने तालिबान के सैन्य विंग के नेतृत्व के लिए एक प्रतिद्वंद्वी से मुक़ाबले में जीत हासिल की थी। 

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