चीन हमारा सबसे अहम सहयोगी है: तालिबान
अफ़ग़ानिस्तान में हुक़ूमत बनाने जा रहे तालिबान ने कहा है कि चीन उसका सबसे अहम सहयोगी है। तालिबान ने कहा है कि चीन अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए भी तैयार है।
तालिबान को निश्चित रूप से दुनिया के बाक़ी मुल्कों से सहयोग की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि उसके पास पैसे की कमी है और मुल्क़ ठीक ढंग से चले, इसके लिए पैसे व बाहरी दुनिया का सहयोग बहुत ज़रूरी है।
तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि वह चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ के प्रोजेक्ट का भी समर्थन करते हैं। ‘वन बेल्ट, वन रोड’ का प्रोजेक्ट चीन को अफ्रीका, एशिया और यूरोप से जोड़ता है और इसके बीच में बंदरगाहों, रेलवे लाइनों, सड़कों, उद्योगों का एक विशाल नेटवर्क है। इसके निर्माण का श्रेय चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जाता है।
मुजाहिद ने इटली के एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा कि चीन इसलिए सबसे अहम सहयोगी है क्योंकि यह हमारे मुल्क़ में निवेश करने और इसके पुनर्निर्माण के लिए तैयार है।
मुजाहिद ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में तांबे की खान हैं, जो चीन की मदद से फिर से चालू हो सकती हैं और इन्हें आधुनिक भी बनाया जा सकता है। मुजाहिद ने कहा कि तालिबान यह भी मानता है कि रूस भी उसका अहम सहयोगी है और वह उसके साथ भी बेहतर रिश्ते बनाए रखेगा।
जब से अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी हुई है और तालिबान ने हक़ूमत बनाने की दिशा में आगे बढ़ना शुरू किया है, तभी से चीन का रूख़ भी तालिबान के लिए सकरात्मक दिखा है। दूसरी ओर तालिबान ने भी बदला हुआ रूख़ दिखाया है और कहा है कि वह दुनिया के सभी देशों से बेहतर रिश्ते चाहता है।
तालिबान ने यह भी कहा है कि वह अपनी ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी आतंकवादी गतिविधि के लिए नहीं होने देगा।
मुजाहिद ने कुछ दिन पहले पाकिस्तानी टीवी चैनल एआरवाई न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा था कि पाकिस्तान तालिबान के लिए दूसरे घर जैसा है। मुजाहिद ने कहा था कि पाकिस्तान ने कभी भी हमारे मामलों में दख़ल नहीं दिया।
गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के रिश्ते लगातार तनावपूर्ण हैं। ऐसे में तालिबान का पाकिस्तान को दूसरे घर जैसा बताना और चीन को सबसे अहम सहयोगी बताना भारत के लिए चिंताजनक हो सकता है।
तालिबान के सामने चुनौती
तालिबान को पैसे की सख़्त ज़रूरत है। अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के 9.5 बिलियन डॉलर के जो रिजर्व अमेरिकी बैंकों में पड़े हैं, उसे अमेरिका ने फ्रीज कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अफ़ग़ानिस्तान को आपातकालीन निधि तक पहुंचने से रोक दिया है।
संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की लगभग आधी आबादी यानी क़रीब 1.8 करोड़ लोगों को जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता की ज़रूरत है और खाद्य भंडार के जल्द समाप्त होने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान में ज़रूरी सामानों की क़ीमतें आसमान पर हैं और कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिल रही है।