कोरोना संकट के बाद भी स्वीडन ने क्यों नहीं किया लॉकडाउन?
कोरोना महामारी ख़त्म नहीं हो रही है तो फिर लॉकडाउन कैसे हटाया जाए स्कूल, होटल, रेस्तराँ और कार्यालय कैसे खोले जाएँ कुछ अमेरिकी नेता स्वीडन से यही सीख लेने की कोशिश में हैं। वे दक्षिण कोरिया, चीन, वियतनाम जैसे उन देशों से सीख नहीं ले रहे हैं जिन्होंने कोरोना पर अच्छी तरह काबू पा लिया है, बल्कि स्वीडन से सीख लेने की कोशिश में हैं जहाँ न तो कोरोना वायरस नियंत्रित है और न ही मृत्यु दर कम है। आख़िर ऐसा क्यों स्वीडन में ऐसी क्या ख़ास बात है
तो आइए, आपको बताते हैं कि स्वीडन की कौन सी ख़ूबी अमेरिका ही नहीं, दुनिया के दूसरे देश भी अपनाना चाहेंगे।
स्वीडन यूरोप का एक देश है। यह उत्तरी यूरोप के स्कैंडेनेविया नाम के क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र में स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, फ़िनलैंड जैसे देश आते हैं। मार्च के आख़िर तक स्कैंडेनेविया क्षेत्र ही नहीं पूरे यूरोप के क़रीब सभी देशों में स्कूल व व्यापार बंद कर दिए गए थे और यात्रा पर प्रतिबंध लगाकर सभी नागरिकों से घर में रहने को कहा गया था। लेकिन स्वीडन में ऐसा नहीं था। वहाँ स्कूल भी खुले थे और सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान भी। लोग घरों में कैद नहीं थे। यानी कोरोना वायरस फैल रहा था, लोग मर भी रहे थे इसके बावजूद देश में सारी गतिविधियाँ सामान्य रूप से ही चल रही थीं।
स्वीडन की यही ख़ासियत कुछ अमेरिकी राजनेताओं को प्रभावित कर रही है। स्वीडन उन्हें अमेरिका के लिए बहुत शानदार मॉडल लग रहा है। केंटकी के रिपब्लिकन सीनेटर रैंड पॉल ने मंगलवार को एक कहा, 'हमें खुले दिमाग़ के साथ परखने की ज़रूरत है कि आख़िर स्वीडन में क्या हुआ, जहाँ बच्चे स्कूल जाते रहे।'
दरअसल, कई लोगों को स्वीडन मॉडल में इसलिए दिलचस्पी है कि कोरोना वायरस ख़त्म हो नहीं रहा है, लॉकडाउन किए भी लंबा वक़्त हो गया है और इसका इलाज भी नहीं है। तो अब महीनों और वर्षों तक तो लॉकडाउन में रह नहीं सकते हैं! इसीलिए स्वीडन मॉडल लोगों को लुभा रहा है।
हालाँकि, स्वीडन में भी कोरोना वायरस का काफ़ी असर है लेकिन वहाँ पर वैसी तबाही नहीं आई है जैसी कि इटली, स्पेन, इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों में आई है।
स्पेन में 2 लाख 72 हज़ार संक्रमण के मामले आए हैं और 27 हज़ार लोगों की मौत हुई। इंग्लैंड में 2 लाख 33 हज़ार पॉजिटिव केस आए और 33 हज़ार लोग मारे गए हैं। इटली में 2 लाख 23 हज़ार संक्रमण के मामले आए हैं और 31 हज़ार लोगों की मौत हुई। लेकिन स्वीडन में 28 हज़ार 582 पॉजिटिव मामले आए हैं और 3529 लोगों की मौत हुई है। इस लिहाज़ से देखा जाए तो स्वीडन में संक्रमण न तो काफ़ी कम है और न ही काफ़ी ज़्यादा। लेकिन मृत्यु दर क़रीब 12.47 फ़ीसदी है। इतनी ज़्यादा मृत्यु दर शायद ही किसी दूसरे यूरोपीय देशों में है।
रिपोर्टों में कहा गया है कि स्वीडन में सामान्य दिनों की तुलना में कोरोना संक्रमण के दौरान 30 फ़ीसदी ज़्यादा मौतें हुई हैं। ऐसा तब है जब वहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था काफ़ी मज़बूत है।
कोरोना संक्रमण के ऐसे दौर से गुज़रने के बावजूद स्वीडन के अधिकारियों ने देश भर में लॉकडाउन को लागू नहीं किया और इस पर विश्वास जताया कि आम लोग सुरक्षित रहने में अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँगे। हालाँकि अधिकारियों ने इतना ज़रूर किया कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना ज़रूरी किया और 50 से ज़्यादा लोगों के इकट्ठे होने पर पाबंदी लगाई। लेकिन स्कूल, रेस्तराँ, जिम और बार सभी प्रतिष्ठान खुले रहे। याद करें जब दिल्ली में गिनती के 3-4 कोरोना पॉजिटिव मामले आए थे तो दिल्ली सरकार ने 1-2 दिन के अंदर ही 20 लोगों से ज़्यादा के इकट्ठे होने पर प्रतिबंध लगा दिया था और बाद में तो सभी ग़ैर ज़रूरी सेवाएँ बंद कर दी गई थीं और लोगों के बाहर निकलने पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया था।
लॉकडाउन नहीं करने के स्वीडन के अधिकारियों के उस फ़ैसले के दो महीने बाद भी स्थिति ज़्यादा बिगड़ी नहीं जबकि कई लोगों ने ऐसी आशंकाएँ जताई थीं।
हालाँकि लोगों की मौतें काफ़ी संख्या में हुईं। ऐसा इसलिए हुआ कि स्वीडन में लाइफ़ एक्सपेक्टेंसी यानी जीवन प्रत्याशा दर ज़्यादा है। यानी सीधे शब्दों में कहें तो वहाँ लोग अपेक्षाकृत ज़्यादा उम्र तक ज़िंदा रहते हैं। इस कारण वहाँ बुजुर्गों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है। अब तक जो रिपोर्टें आती रही हैं उसके अनुसार बुजुर्ग लोगों के लिए यह वायरस ज़्यादा ख़तरनाक है। इसी कारण वहाँ स्वास्थ्य व्यवस्था मज़बूत होने के बावजूद मृत्यु दर ज़्यादा रही।
ज़्यादा मौतों की बात को स्वीकार करते हुए स्वीडन के अधिकारी अपने फ़ैसले पर अडिग हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार वे कहते हैं कि उनका मक़सद है कि बिना लॉकडाउन के ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकना है। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के अनुसार स्वीडन के सरकारी महामारी विज्ञानी एंडर्स टेगनेल ने कहा, 'एक बार जब आप लॉकडाउन में चले जाते हैं, तो इससे बाहर निकलना मुश्किल होता है। आप कैसे फिर से खोलेंगे कब'
स्वीडन के अधिकारियों ने लॉकडाउन की सख़्ती को लागू करने से बेहतर इस पर भरोसा रखा कि लोग कम से कम बाहर जाएँगे और स्वच्छता व सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखेंगे। और आम लोगों ने बिल्कुल यही किया भी। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने गूगल मोबिलिटी के आँकड़ों के आधार पर बताया है कि लॉकडाउन नहीं होने के बावजूद स्वीडन के लोग रेस्तराँ, खुदरा दुकानों, खेलकूद और पार्क जैसी जगहों पर उतने कम लोग ही गए जितने कि पड़ोसी दूसरे देशों में जाते रहे जहाँ लॉकडाउन था।
हालाँकि लॉकडाउन नहीं करने से भी स्वीडन को आर्थिक तौर पर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ है और उसकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ी है। स्वीडन के ही सेंट्रल बैंक ने अनुमान लगाया है कि उसका सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 7 से 10 फ़ीसदी तक सिकुड़ेगा। इसके बावजूद वहाँ अधिकारियों ने लॉकडाउन नहीं किया।
स्वीडन की एक ख़ूबी और है जिससे कोरोना संक्रमण ज़्यादा नहीं फैला। स्वीडन का जनसंख्या घनत्व काफ़ी कम है और काफ़ी संख्या में ऐसे घर हैं जिसमें सिर्फ़ एक व्यक्ति ही रहता है।
स्वीडन की इन्हीं कुछ ख़ास ख़ूबियों की वजह से दूसरे देशों में यह मॉडल शायद सफल नहीं हो। लेकिन स्वीडन का मॉडल एक उम्मीद की किरण तो देता ही है।