चुनाव: ममता को भारी पड़ेगी शुभेंदु की बग़ावत?
पश्चिम बंगाल में करीब दस साल से सत्ता में बैठी टीएमसी (टीएमसी) को बीते दो साल के भीतर दूसरी बार बग़ावत का सामना करना पड़ रहा है। वह भी पूर्व मेदिनीपुर के जनाधार वाले नेता और परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी की ओर से। दो साल पहले ममता का दाहिना हाथ कहे जाने वाले मुकुल रॉय ने भी बग़ावत कर बीजेपी का दामन थाम लिया था।
शुभेंदु ने हालांकि अब तक किसी का नाम लेकर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन बीते कुछ महीनों से उन्होंने खुद को जिस तरह सरकार और पार्टी के कार्यक्रमों से काट लिया है वह उनकी नाराजगी की कहानी खुद कहता है।
बीते तीन महीनों से उन्होंने न तो कैबिनेट की किसी बैठक में हिस्सा लिया है और न ही अपने जिले में तृणमूल की ओर से आयोजित किसी कार्यक्रम में। इसके उलट वे दादार अनुगामी यानी दादा के समर्थक नामक एक संगठन के बैनर तले लगातार रैलियांं और सभाएं कर रहे हैं।
अधिकारी परिवार का मेदिनीपुर में व्यापक जनाधार है। शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी और छोटे भाई दिब्येंदु अधिकारी भी जिले की दो सीटों से टीएमसी के सांसद हैं। इस परिवार का असर इलाके की 35 विधानसभा सीटों पर है।
ऐसे में शुभेंदु की बग़ावत टीएमसी के लिए भारी पड़ सकती है। वे जिले की उस नंदीग्राम सीट से विधायक हैं जिसने वर्ष 2007 में जमीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ हिंसक आंदोलन के जरिए सुर्खियां बटोरी थीं और टीएमसी के सत्ता में पहुंचने का रास्ता साफ किया था।
प्रशांत किशोर से नाराज़गी
आखिर कभी दीदी यानी ममता बनर्जी के सबसे करीबी नेताओं में शुमार शुभेंदु के साथ ऐसा क्या हुआ कि अचानक उनके सुर बदल गए हैं इसके लिए कम से कम छह महीने पीछे लौटना होगा। टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘दरअसल अधिकारी बीते कुछ महीनों से पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे थे। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर चल रहा है। खासकर पूर्व मेदिनीपुर जिले के मामलों में अधिकारी से राय लेने तक की ज़रूरत नहीं समझी गई।’ वह कहते हैं कि इसके साथ ही ममता जिस तरह अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर रही हैं उससे भी अधिकारी बंधुओं में भारी नाराजगी है।
शुभेंदु की उपेक्षा
सरकारी सूत्रों का कहना है कि शुभेंदु के परिवहन मंत्री होने के बावजूद हाल के महीनों में मंत्रालय से संबंधित ज्यादातर फ़ैसले ममता और उनके क़रीबी लोग ही करते रहे हैं। इसके अलावा शुभेंदु की पहल पर पार्टी में शामिल होने वाले लोगों को उनके मुकाबले ज्यादा तरजीह दी जा रही थी।
शुभेंदु ने बीते सप्ताह एक जनसभा में किसी का नाम लिए बिना कहा था, “मैं किसी की मदद या पैराशूट के जरिए ऊपर नहीं आया हूं। लेकिन मैं जिन नेताओं को पार्टी में लाया था आज वही मेरे ख़िलाफ़ साजिश रच रहे हैं।”
नंदीग्राम आंदोलन
टीएमसी को सत्ता तक पहुंचाने में जिस नंदीग्राम आंदोलन ने अहम भूमिका निभाई थी उसके मुख्य वास्तुकार शुभेंदु ही थे। वर्ष 2007 में कांथी दक्षिण सीट से विधायक होने के नाते तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के ख़िलाफ़ भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के बैनर तले स्थानीय लोगों को एकजुट करने में उनकी सबसे अहम भूमिका थी। उस समय नंदीग्राम में प्रस्तावित केमिकल हब के लिए जमीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू ही हुई थी। उस दौर में इलाके में सीपीएम नेता लक्ष्मण सेठ की तूती बोलती थी। लेकिन यह शुभेंदु ही थे जिनकी वजह से इलाके के सबसे ताकतवर नेता रहे सेठ को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। उसके बाद जंगलमहल के नाम से कुख्यात रहे पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में टीएमसी का मजबूत आधार बनाने में भी शुभेंदु का ही हाथ था।
बीते 10 नवंबर को नंदीग्राम में भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के बैनर तले आयोजित एक रैली में शुभेंदु ने कहा, “मैं 13 वर्षों से इलाके के लोगों के सुख-दुख में साथ हूं। यहां जो आंदोलन हुआ वह किसी एक व्यक्ति का नहीं था। लेकिन अब चुनाव नजदीक आने पर तमाम नेता सियासी रोटियां सेकने का प्रयास कर रहे हैं।”
यहां इस बात का जिक्र ज़रूरी है शुभेंदु की तमाम रैलियों में परंपरा के उलट न तो ममता बनर्जी की कोई तसवीर नजर आती है और न ही टीएमसी का झंडा। मालदा, पुरुलिया, मुर्शिदाबाद और दार्जिलिंग तक में शुभेंदु के ऐसे पोस्टर लगे हैं जिनमें ममता या तृणमूल का कहीं कोई जिक्र नहीं है।
शुभेंद पर टिप्पणी का विरोध
दिलचस्प बात यह है कि 10 नवंबर को नंदीग्राम दिवस के मौके पर शुभेंदु की रैली से कुछ दूरी पर ही टीएमसी के बैनर तले भी एक रैली आयोजित की गई थी। शहरी विकास मंत्री फिरहाद हाकिम ने उस रैली में शुभेंदु का नाम लिए बिना उन पर बीजेपी के हाथ मजबूत करने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि वे राजनीति में हमेशा मीर जाफऱ रहे हैं। लेकिन शुभेंदु के छोटे भाई और तृणमूल सांसद दिब्येंदु अधिकारी ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि हाकिम को ऐसी टिप्पणी करना शोभा नहीं देता और तृणमूल की ओर से हमें नंदीग्राम की रैली का निमंत्रण ही नहीं मिला था।
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बीजेपी का न्यौता
दूसरी ओर, इस झगड़े की आग में घी डालने का प्रयास करते हुए प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष और सांसद सौमित्र खान समेत कई नेता शुभेंदु को भगवा पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे चुके हैं। लेकिन शुभेंदु ने कहा है कि वे अब भी टीएमसी के सिपाही हैं। हालांकि उनके अलग संगठन बनाने के कयास भी जोर पकड़ रहे हैं।
शुभेंदु की बग़ावत से होने वाले ख़तरे को भांपते हुए अब टीएमसी नेतृत्व ने उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए बातचीत की कवायद शुरू की है।
मनाने में जुटी पार्टी
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने उनके घर जाकर बीते रविवार की रात को करीब ढाई घंटे तक उनसे बातचीत की। टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “शुभेंदु को मनाने की जिम्मेदारी पार्टी के दो वरिष्ठ सांसदों को सौंपी गई है। रविवार को तमाम मुद्दों पर बातचीत हुई।”
इससे पहले प्रशांत किशोर भी 12 नवंबर को शुभेंदु से मिलने गए थे। लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। प्रशांत ने शुभेंदु के पिता शिशिर से लंबी बातचीत की थी। उस बैठक के बाद शिशिर ने पत्रकारों से कहा था कि वे और उनके पुत्र अब भी ममता बनर्जी के साथ हैं और कुछ निहित स्वार्थी नेता इस बारे में अफवाहें फैलाने में जुटे हैं। लेकिन शुभेंदु पार्टी के किसी कार्यक्रम में क्यों नहीं जा रहे हैं इस सवाल पर शिशिर ने कहा कि शुभेंदु एक परिपक्व राजनेता हैं और अपने फ़ैसले खुद लेते हैं। उनके कुछ समर्थकों ने नया संगठन बनाया है।
अभिषेक बनर्जी से नाराजगी
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि शुभेंदु अधिकारी मुकुल राय के बाद बग़ावत करने वाले टीएमसी के दूसरे सबसे ताक़तवर नेता हैं। उनकी नाराजगी की सबसे प्रमुख वजह शायद ममता बनर्जी की ओर से उत्तराधिकारी के तौर पर अपने भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी को बढ़ावा देना है। ऐसे में उनकी नाराजगी पार्टी के लिए भारी साबित हो सकती है।