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कौन होगा अगला कांग्रेस अध्यक्ष? गहलोत, शिंदे और खड़गे रेस में

कौन होगा अगला कांग्रेस अध्यक्ष? गहलोत, शिंदे और खड़गे रेस में

राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद पार्टी का अगला अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं।

राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद पार्टी का अगला अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं। देश के पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस रेस में आगे हैं। युवा दावेदारों के तौर पर राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लिया जा रहा है। 

पिछले तीस सालों में यह तीसरा मौक़ा होगा जब कांग्रेस पार्टी की कमान नेहरू-गाँधी परिवार से बाहर किसी और नेता के हाथ में होगी। इससे पहले पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी ऐसे पार्टी अध्यक्ष थे, जो नेहरू-गाँधी परिवार से नहीं थे। सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में अंतिम फ़ैसला यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाँधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा और राहुल गाँधी की सहमति से लिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक़, पार्टी अध्यक्ष को लेकर जल्द ही फ़ैसला लिया जा सकता है। 

कांग्रेस अध्यक्ष बनने की रेस में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और दलित नेता सुशील कुमार शिंदे का नाम चर्चा में है। शिंदे को अध्यक्ष बनाने से कांग्रेस को महाराष्ट्र में दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने में मदद मिलेगी।

बता दें कि महाराष्ट्र में पार्टी को इस बार और पिछले लोकसभा चुनाव में भी क़रारी हार मिली और पार्टी का दलित वोट बैंक कांग्रेस और एनसीपी से छिटक कर दूर जा चुका है। बताया जाता है कि शिंदे को दलित नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर कांग्रेस उत्तर प्रदेश व देश के अन्य हिस्सों में दलित मतदाताओं को अपनी और आकर्षित करने की कोशिश करेगी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस शिंदे के बहाने मायावती का आधार तोड़ने की कोशिश करेगी। शिंदे नेहरू-गाँधी परिवार के बेहद नज़दीक रहे हैं।

अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष हो सकते हैं, इसे लेकर दिल्ली से लेकर राजस्थान में जोरदार चर्चा है। अगर गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है तो इससे पार्टी को राजस्थान में गहलोत बनाम सचिन पायलट की जंग से भी छुटकारा मिलने की उम्मीद है। अगर अशोक गहलोत को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाता है तो उनके सामने हार के बाद पस्त पड़े कार्यकर्ताओं को खड़ा करने की बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल काफ़ी गिरा हुआ है। गहलोत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। पार्टी संगठन में वह कई बड़े पदों पर रह चुके हैं उन्हें सोनिया और राहुल गाँधी का काफ़ी भरोसेमंद माना जाता है।

एक और दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता रहते हुए मोदी सरकार को कई बार कटघरे में खड़ा किया था। हालाँकि इस बार के लोकसभा चुनाव में खड़गे को हार मिली है लेकिन इससे पहले वह कई बार चुनाव जीत चुके हैं। खड़गे यूपीए सरकार में श्रम एवं रोजगार मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं और वह कर्नाटक विधानसभा में नेता विपक्ष भी रह चुके हैं। खड़गे को राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी का भरोसेमंद माना जाता है।

राहुल गाँधी ने अपने इस्तीफ़े का ऐलान करते हुए ट्विटर पर लिखा है, ‘कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के लिए मैं ज़िम्मेदार हूँ। पार्टी की मजबूती के लिए ज़िम्मेदारी लेना महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि मैंने पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया है।’ राहुल ने अपने इस्तीफ़े में यह भी कहा है कि पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए कठोर क़दम उठाने की ज़रूरत है। 

लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल गाँधी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अपने पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी। वरिष्ठ नेताओं ने राहुल को समझाने की कोशिश की थी लेकिन राहुल अपनी जिद से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हुए।

बता दें कि कांग्रेस 2014 के मुक़ाबले इस लोकसभा चुनाव में सिर्फ़ 8 सीटें ज़्यादा जीत पाई है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीट जीती थीं जबकि इस बार उसे 52 सीटों पर जीत मिली है। राहुल गाँधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी से भी चुनाव हार गए हैं हालाँकि उन्हें केरल की वायनाड सीट पर भारी मतों से जीत मिली है। बहरहाल, राहुल इस्तीफ़े का ऐलान कर चुके हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं को अब नए अध्यक्ष के नेतृत्व में काम करना होगा। अक्टूबर-नवंबर में ही हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उसके बाद अगले साल की शुरुआत में दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में नए पार्टी अध्यक्ष के लिए लोकसभा चुनाव में मिली क़रारी हार के बाद पार्टी संगठन को खड़ा करना एक बड़ी चुनौती होगी।

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