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अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फ़ैसले की वैधता पर SC का फैसला सोमवार को

अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फ़ैसले की वैधता पर SC का फैसला सोमवार को

2019 में जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने के लिए अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फ़ैसले की वैधता पर अब फैसला आने वाला है। जानिए, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है।

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फ़ैसले की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को अपना फ़ैसला सुनाएगा। केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय तक सुनवाई की है। 16 दिनों की लंबी सुनवाई और दोनों पक्षों की ओर से पेश दलीलें सुनने के बाद अदालत ने 5 सितंबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ यह तय करेगी कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना संविधान और कानूनी सिद्धांतों के अनुसार किया गया था या नहीं। केंद्र ने 2019 में जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया था और जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- कश्मीर और लद्दाख में बदल दिया था।

2 अगस्त को बहस शुरू करने वाले याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान केवल तब तक अस्थायी था जब तक कि पूर्ववर्ती राज्य के लिए संविधान सभा एक या दूसरे तरीके से निर्णय नहीं ले लेती। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि निर्णय लेने का मुख्य मुद्दा यह है कि क्या संसद संशोधन करने के लिए राज्य विधायिका की भूमिका निभा सकती है जब भारत सरकार और राज्य के बीच यह समझौता था कि अनुच्छेद 370 को छूने के लिए भी संविधान सभा की सिफारिश अनिवार्य है। इसे देखते हुए संसद किसी प्रस्ताव द्वारा यह नहीं कह सकती कि यह संविधान सभा है।

उन्होंने तर्क दिया कि 1957 में जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए कोई संवैधानिक प्रक्रिया नहीं बची थी। उन्होंने कहा कि यदि कोई परिवर्तन हो सकता है तो यह केवल राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से ही किया जा सकता था।

सुनवाई के दौरान अदालत ने आश्चर्य जताया कि क्या याचिकाकर्ता यह कहना चाह रहे थे कि किए गए बदलाव संसद की संशोधन शक्तियों से परे हैं।

केंद्र ने दलील दी है कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य ने विलय के बाद अपनी संप्रभुता पूरी तरह से भारत संघ को सौंप दी थी और जिन याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों को चुनौती दी है, वे 'स्वायत्तता के साथ आंतरिक संप्रभुता को भ्रमित कर रहे हैं'।

याचिकाकर्ताओं के इस तर्क का खंडन करते हुए कि संसद संविधान सभा की भूमिका कैसे निभा सकती है, सरकार ने कहा कि अनुच्छेद 370(3) में 'संविधान सभा' शब्द को केवल 'विधान सभा' के रूप में पढ़ा जा सकता है।

केंद्र ने अदालत को यह भी बताया कि जम्मू-कश्मीर के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा एक अस्थायी उपाय है और इसका राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।

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