+
फ्रीबीज केस को सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों की नयी बेंच को भेजा

फ्रीबीज केस को सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों की नयी बेंच को भेजा

रेवड़ी कल्चर को चल रही बहस के बीच अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाएगी?

चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज यानी मुफ्त में देने का वादा करने के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया। कोर्ट ऐसी फ्रीबीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। याचिका में उन राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई है जो चुनाव के दौरान और बाद में मुफ्त उपहार देते हैं। सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर चर्चा के लिए एक विशेषज्ञ समिति और एक सर्वदलीय बैठक बुलाने को कहा। 

निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के अंतिम दिन इस आदेश को पहली बार ऐतिहासिक रूप से लाइवस्ट्रीम किया गया। 

अदालत एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर बीते कई महीनों से सुनवाई कर रही थी। इस मामले में तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके ने भी याचिका दायर की थी। अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में मतदाताओं को लुभाने के लिए 'मुफ्त' का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों के द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है और राज्य कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं।

बताना होगा कि भारत में चुनाव से पहले मतदाताओं को रिझाने के लिए कई राज्यों में राजनीतिक दल जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं और चुनाव के बाद इन्हें पूरा करना उनकी मजबूरी बन जाता है। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस याचिका का विरोध किया था और कहा था कि वंचित जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को 'मुफ्त' नहीं कहा जा सकता है।

इस मामले में सुनवाइयों के दौरान सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि लोगों की भलाई करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा था कि मुद्दा यह है कि जनता का पैसा सही खर्च करने का सही तरीका क्या है और यह मामला बहुत जटिल है। सवाल यह भी है कि क्या अदालत इन मुद्दों की पड़ताल करने में सक्षम है।

रमना ने कहा था कि देश के कल्याण के लिए फ्रीबीज यानी रेवड़ी बांटने के मुद्दे पर बहस ज़रूरी है। सीजेआई ने कहा था कि एक राजनेता के द्वारा फ्रीबीज के रूप में किए गए वादे और कल्याण योजना के बीच अंतर करने की ज़रूरत है। 

सुनवाई के दौरान सीजेआई रमना ने कहा था, “क्या हम मुफ्त शिक्षा के वादे को फ्रीबीज कह सकते हैं, क्या पीने के मुफ्त पानी, बिजली की न्यूनतम यूनिटों के वादे को फ्रीबीज कहा जा सकता है।”

अदालत ने कहा था कि इस मामले में सभी पार्टियां एक ओर थीं और हर कोई चाहता है कि फ्रीबीज जारी रहें। 

रेवड़ी कल्चर पर रार

दूसरी ओर, रेवड़ी कल्चर को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच बहस चल रही है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा आम जनता के लिए चलाई जाने वाली तमाम वेलफेयर स्कीम्स को रेवड़ी बताकर केंद्र सरकार आम जनता का मजाक बना रही है।

जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है। ये कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें