सुप्रीम कोर्ट पर भी थी पेगासस की नज़र
पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जासूसी का जाल कितना फैला हुआ था, इसे इससे समझा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट तक इससे नहीं बच पाया। सर्वोच्च अदालत की रजिस्ट्री के दो वरिष्ठ कर्मचारी और कुछ वरिष्ठ वकीलों के मुवक्क़िल तो पेगासस सॉफ्टवेअर की नज़र में थे ही, एक जज का पुराना फोन नंबर भी उसके रिकॉर्ड में था।
बता दें कि फ्रांसीसी मीडिया ग़ैर-सरकारी संगठन फॉरबिडेन स्टोरीज़ ने स्पाइवेअर पेगासस बनाने वाली इज़रायली कंपनी एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस को हासिल किया तो पाया कि उसमें 10 देशों के 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों के फ़ोन नंबर हैं।
इनमें से 300 भारतीय हैं। इस संगठन ने 16 मीडिया कंपनियों के साथ मिल कर इस पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय मीडिया कंपनी 'द वायर' भी शामिल है।
'द वायर' ने कहा है कि एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस में रजिस्ट्री के दो लोग एन. के गांधी और टी. आई. राजपूत के फ़ोन नंबर भी शामिल थे। जब इनके फ़ोन नंबर एनएसओ की इस सूची में जोड़े गए तो वे दोनों सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के रिट याचिका सेक्शन में थे।
हर साल एक हज़ार से ज़्यादा रिट याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जाती हैं और उनमें से कई राजनीतिक कारणों से होती हैं या उनका राजनीतिक महत्व होता है। रिट पिटीशन सेक्शन के ये दोनों ही कर्मचारी अब रिटायर हो चुके हैं। 'द वायर' के संपर्क करने पर उन्होंने आश्चर्य जताया कि भला उनके फ़ोन नंबर क्यों निशाने पर लिए गए।
जज का पुराना फ़ोन नंबर
जस्टिस ए. के. मिश्र का फ़ोन नंबर भी पेगासस की नज़रों में था। यह फ़ोन नंबर 18 सितबर 2010 से 19 सितंबर 2018 के बीच जस्टिस मिश्र के नाम रजिस्टर्ड था। लेकिन जस्टिस मिश्र फ़ोन ने 2013-2014 में इस फ़ोन का इस्तेमाल नहीं किया था।
उन्होंने कहा है कि उन्होंने यह फ़ोन नंबर 21 अप्रैल 2014 को वापस कर दिया था।
लेकिन यह फ़ोन एनएसओ के डेटाबेस में 2019 में जोड़ा गया। ऐसा क्यों हुआ, यह किसी के समझ में नहीं आ रहा है।
वकीलों के नंबर
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दजर्न भर वकीलों के फ़ोन नंबर भी एनएसओ डेटाबेस में थे। इनमें से कई मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले वकील थे तो कुछ बड़े मामलों से जुड़े वकील थे।
अरबों रुपए क़र्ज़ लेकर रफ़ूचक्कर हुए उद्योगपति नीरव मोदी के वकील विजय अग्रवाल का फ़ोन नंबर 2018 में इस सूची में जोड़ा गया। उनकी पत्नी के फ़ोन नंबर भी उस सूची में थे।
दिल्ली के वकील एल्जो पी. जोसफ़ पर भी पेगासस सॉफ़्टवेअर की नज़र थी। वह क्रिश्चियन मिशेल के वकील हैं। क्रिश्चियन मिशेल को ऑगुस्ता वेस्टलैंड मामले में प्रत्यावर्तित कर भारत लाया गया था।
यह भी कहा जाता है कि मिशेल को भारत सरकार ने इस उम्मीद में प्रत्यावर्तित कर यहाँ लाने की व्यवस्था की थी कि उससे ऐसा कुछ सुराग मिले या ऐसा कोई बयान दिलाया जा सके जिससे कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी को निशाने पर लिया जा सके।
मुकुल रोहतगी पर थी नज़र?
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के दफ़्तर में काम करने वाले एक जूनियर वकील एम. तंगतुरई का फ़ोन नंबर भी एनएसओ की सूची में पाया गया है।
तंगतुरई ने कहा कि बैंक समेत कई जगहों पर मुकुल रोहतगी के फ़ोन नंबर की जगह उनका फ़ोन नंबर लिखा गया था। ऐसा इसलिए किया गया था कि मुकुल रोहतगी को बार-बार फोन न करना पड़े और वे परेशान न हों।
तंगतुरई का नंबर मुकुल रोहतगी के अटॉर्नी जनरल बनने के दो साल बाद 2019 में एनएसओ की सूची में डाला गया।
तंगतुरई और रोहतगी, दोनों ने इस पर अचरज जताया है कि यह फ़ोन स्पाइवेअर से जुड़ा हुआ था।
तो क्या मक़सद मुकुल रोहतगी पर निगरानी रखना था, सवाल यह उठता है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका
बता दें कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने पेगासस स्पाइवेअर मामले में जाँच की माँग करते हुए लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है।
याचिका में विशेष जाँच दल यानी एसआईटी से इसकी जाँच कराने की मांग की गई है।
गिल्ड ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह सरकार से स्पाइवेअर सौदे की जानकारी और निशाना बनाए गए लोगों की सूची माँगे।
पेगासस की जाँच की माँग के लिए अब तक कई याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं और उन मामलों की सुनवाई इसी गुरुवार को होनी है।
क्या पेगासस सॉफ़्टवेअर से जासूसी कराने के मामले में मोदी सरकार वाकई फँस गई है? देखें, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का यह वीडियो।