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ग़रीबों और अमीरों के लिए अलग न्याय व्यवस्था नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट

ग़रीबों और अमीरों के लिए अलग न्याय व्यवस्था नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में दो न्याय व्यवस्था नहीं हो सकती है। इसने गुरुवार को कहा है कि जो अमीर हैं, जिनके पास राजनीतिक सत्ता है और जिनकी न्याय व्यवस्था तक पहुँच नहीं है उनके लिए अलग व्यवस्था नहीं हो सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में दो न्याय व्यवस्था नहीं हो सकती है- ग़रीबों के लिए अलग और अमीरों के लिए अलग। इसने गुरुवार को कहा है कि जो अमीर हैं, जिनके पास राजनीतिक सत्ता है और जिनकी न्याय व्यवस्था तक पहुँच नहीं है उनके लिए अलग-अलग व्यवस्था 'औपनिवेशिक मानसिकता' है। अदालत ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के बीएसपी विधायक के पति को दी गई जमानत को रद्द करते हुए दी। वह कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या के क़रीब ढाई साल पुराने मामले में जेल में बंद हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र की आधारशिला है और इसे राजनीतिक दबावों और विचारों से मुक्त होना चाहिए। इसने निचली अदालतों के रवैये में बदलाव पर भी जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने के लिए 'ज़िला न्यायपालिका को औपनिवेशिक मानसिकता' को बदलना चाहिए। हालाँकि इसने यह भी कहा कि जब न्यायाधीश सही के लिए खड़े होते हैं तो उन्हें निशाना बनाया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में औपनिवेशिक काल से चले आ रहे एक क़ानून को लेकर भी कहा था कि ऐसे क़ानून को बदलने की ज़रूरत है। इसने पूछा था कि देश के आज़ाद होने के 75 साल बाद भी क्या राजद्रोह के क़ानून की ज़रूरत है। अदालत ने कहा था कि यह क़ानून औपनिवेशिक है और ब्रिटिश काल में बना था। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा कि इस क़ानून को लेकर विवाद यह है कि यह औपनिवेशिक है और इसी तरह के क़ानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को चुप कराने के लिए किया था। अदालत ने कहा है कि वह इस क़ानून की वैधता को जांचेगी। 

बहरहाल, अब शीर्ष अदालत ने निचली अदालतों को औपनिवेशिक मानसिकता से निकलने की सलाह देते हुए कहा कि ग़रीबों और अमीरों के लिए अलग-अलग दोहरी न्याय व्यवस्था क़ानून की वैधता को कम कर देगी।

इसने कहा है कि इसकी ज़िम्मेदारी सरकारी मशीनरी की भी है कि वह क़ानून के शासन के प्रति प्रतिबद्ध रहे। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की पीठ ने कहा कि यदि नागरिकों का न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखना है तो ज़िला न्यायपालिका पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

हालाँकि इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों के न्यायाधीश बुनियादी ढांचे की कमी और अपर्याप्त सुरक्षा जैसी भयावह परिस्थितियों में काम करते हैं और ऐसे उदाहरण हैं जब न्यायाधीश सही के लिए खड़े होते हैं तो उन्हें निशाना बनाया जाता है।

बेंच ने कहा कि प्रत्येक जज और न्यायपालिका की स्वतंत्रता ज़रूरी है। इसने कहा कि व्यक्तिगत न्यायाधीशों की स्वतंत्रता में यह भी शामिल है कि वे अपने वरिष्ठों और सहयोगियों से स्वतंत्र हैं। इसने कहा कि हमारा संविधान विशेष रूप से ज़िला न्यायपालिका की स्वतंत्रता की परिकल्पना करता है जिसका उल्लेख अनुच्छेद 50 में किया गया है।

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