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अर्थव्यवस्था नुक़सान में, फ्रीबीज देना गंभीर मुद्दा: सुप्रीम कोर्ट

अर्थव्यवस्था नुक़सान में, फ्रीबीज देना गंभीर मुद्दा: सुप्रीम कोर्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र जिस फ्रीबीज को लेकर हाल में सवाल उठाते रहे हैं वह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया। राजनीतिक दलों की घोषणाएँ कल्याणकारी योजना का हिस्सा या लोगों के कर के पैसे की बर्बादी, जानिए कोर्ट ने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा और इसे बाँटना एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को नुक़सान हो रहा है। 

तो क्या चुनाव के दौरान की गई घोषणाएँ बंद कर देनी चाहिए? क्या कल्याणकारी योजनाएँ बोझ हैं और आम लोगों के कर के रूप में मिले पैसे की बर्बादी है? इस सवाल का जवाब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से कैसे मिलता है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर यह मामला अदालत में कैसे पहुँचा।

सुप्रीम कोर्ट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए 'मुफ्त' का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई। याचिका में चुनाव घोषणापत्र को रेगुलेट यानी विनियमित करने और उसमें किए गए वादों के लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने के लिए क़दम उठाने के लिए कहा गया।

आम आदमी पार्टी यानी आप ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि योग्य और वंचित जनता के सामाजिक आर्थिक कल्याण के लिए योजनाओं को 'मुफ्त' के रूप में नहीं कहा जा सकता है। पार्टी ने याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया कि उनके बीजेपी से मजबूत संबंध हैं और वह एक विशेष राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

आप का यह आरोप इसलिए अहम है कि फ्रीबीज को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में जुलाई महीने से ही तकरार बढ़ गई है। 16 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन के दौरान 'लोगों को मुफ्त सुविधाएँ देने' को 'रेवड़ी संस्कृति' बताया था। मोदी ने कहा था, 'हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है। ये कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है।' 

प्रधानमंत्री के इस बयान के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था, 'मैं दिल्ली के ग़रीब और मध्य वर्ग के 18 लाख बच्चों को मुफ़्त में शानदार शिक्षा दे रहा हूँ। पहले 18 लाख बच्चों का भविष्य बर्बाद था। मैं इनका भविष्य बना रहा हूँ तो क्या गुनाह कर रहा हूँ।... यदि मैं अपनी बड़ाई करूँ तो कहा जाएगा कि केजरीवाल खुद अपनी बड़ाई कर रहा है। लेकिन नतीजे 99 फीसदी से ज़्यादा आए हैं। पिछले कुछ सालों में 4 लाख बच्चे निजी स्कूलों से सरकारी स्कूल में शामिल हुए हैं, यह कोई छोटी बात नहीं है।'

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा था, 

इसे फ्री रेवड़ी नहीं कहते। हम इस देश की नींव के लिए पत्थर रख रहे हैं। हमने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की हालत को शानदार बना दिया है और देश भर में चर्चित मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं... क्या इसे मुफ्त रेवड़ी देना कहते हैं?


अरविंद केजरीवाल, दिल्ली सीएम

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने फिर से इसी महीने मुफ्त की रेवड़ी बाँटने के लिए केजरीवाल पर तंज कसा था। आठ अगस्त को बयान में अरविंद केजरीवाल ने फिर से हमला किया और कहा कि कॉर्पोरेट क्षेत्र के कर्ज के राइट ऑफ़ करने के फ़ैसले को देशद्रोह घोषित कर देना चाहिए और इस पर क़ानून लाया जाना चाहिए। केजरीवाल ने केंद्र सरकार को उन लोगों के '10 लाख करोड़ रुपये' के कर्ज माफ करने के लिए आलोचना की जिन पर उन्होंने आरोप लगाया था कि वे सरकार के करीबी थे।

बहरहाल, अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा, 'कोई नहीं कहता कि यह कोई मुद्दा नहीं है। यह एक गंभीर मुद्दा है। जिनको मिल रहे हैं वो इसे चाहते हैं और हम कल्याणकारी राज्य हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि वे करों का भुगतान कर रहे हैं और इसका उपयोग विकास प्रक्रिया के लिए किया जाना है। तो यह एक गंभीर मुद्दा है। इसलिए दोनों पक्षों को समिति द्वारा सुना जाए।'

सीजेआई ने यह भी कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ 'गरीबी है और केंद्र सरकार की भी भूखों को खिलाने की योजना है'। हालाँकि इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नुक़सान में अर्थव्यवस्था और लोगों के कल्याण के बीच संतुलन लाना होगा। अदालत इस याचिका पर अगली सुनवाई 17 अगस्त को करेगी।

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