एससी/एसटी लोगों की हर बेइज्जती एससी/एसटी कानून के तहत अपराध नहींः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के किसी सदस्य का "अपमान या धमकी" एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है। ऐसे मामलों में पीड़ित का एससी-एसटी समुदाय से होना जरूरी है। अपने फैसले में, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 18 अदालतों को यह जांच करने की पावर पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती है कि क्या प्रथम दृष्टया 1989 के अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित करने वाला मामला बनता है या नहीं।
बेंच ने कहा, "अदालतों को यह तय करने के लिए शुरुआती जांच करने से नहीं कतराना चाहिए कि क्या शिकायत/एफआईआर में तथ्यों का विवरण वास्तव में अधिनियम, 1989 के तहत अपराध के आवश्यक आवश्यक तत्वों का खुलासा करता है।"
अदालत का यह फैसला मलयालम यूट्यूब समाचार चैनल 'मरुनादान मलयाली' के संपादक शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देने के मामले में आया है। शाजन स्कारिया पर केरल पुलिस ने सीपीआई (एम) विधायक पीवी श्रीनिजन के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए मामला दर्ज किया था।
केरल हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, एर्नाकुलम डिवीजन के विशेष जज के अग्रिम जमानत देने से इनकार करने के आदेश को बरकरार रखने के बाद स्केरिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। विधायक ने स्कारिया पर अपने समाचार चैनल पर उनकी आलोचना करने वाला एक वीडियो अपलोड करने का आरोप लगाया था, जिसका उद्देश्य उन्हें आम जनता के बीच अपमानित करना और उनका मजाक उड़ाना था। चैनल ने यह जानते हुए भी कि विधायक पुलाया समुदाय के सदस्य हैं, जो अनुसूचित जाति है।
अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 3(1) (आर) सार्वजनिक रूप से एससी/एसटी के सदस्य को अपमानित करने के इरादे से या जानबूझकर अपमान या धमकी के इरादे से उसकी जाति की पहचान से निकटता से जुड़ा हुआ है। अदालत ने कहा- “अधिनियम, 1989 का मतलब यह नहीं है कि किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो एससी या एसटी का सदस्य नहीं है, किसी एससी या एसटी का अपमान करता है या धमकी देता है, तो जरूरी नहीं हर कृत्य में धारा 3 (1) लगेगी।
विधायक श्रीनिजन द्वारा संदर्भित स्कारिया के वीडियो पर, अदालत ने कहा, “अपलोड किए गए वीडियो के कंटेंट में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह बताता हो कि अपीलकर्ता ने केवल इस तथ्य के आधार पर आरोप लगाए थे कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति से है।” यानी यूट्यूबर ने अपना वीडियो विधायक की जाति की बेइज्जती करने के मकसद से नहीं बनाया था।
जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि “अधिनियम, 1989 की धारा 18 में कहा गया है कि किसी भी मामले में जिसमें अधिनियम के तहत अपराध करने के आरोप में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी शामिल है, अग्रिम जमानत का लाभ दिया जाएगा। सीआरपीसी की धारा 438 का लाभ आरोपी को नहीं मिलेगा। हमने धारा 18 के पाठ में आने वाली अभिव्यक्ति 'किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी' के महत्व पर विचार-विमर्श किया है...और हमारा विचार है कि यह केवल उन मामलों में अग्रिम जमानत के उपाय पर रोक लगाता है जहां आरोपी व्यक्ति की वैध गिरफ्तारी हो सकती है। सीआरपीसी की धारा 60ए में प्रावधान है कि सीआरपीसी या उस समय लागू किसी अन्य कानून के प्रावधानों और गिरफ्तारी के प्रावधान के अलावा कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। सीआरपीसी की धारा 41 पुलिस को उसमें निर्दिष्ट कुछ स्थितियों में बिना वारंट के गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान करती है।
हालाँकि, फैसले में कहा गया है, “यदि अधिनियम, 1989 के तहत अपराध से संबंधित आवश्यक सामग्री शिकायत या एफआईआर में लगाए गए आरोपों को पहली नजर में पढ़ने पर प्रकट नहीं होती है, तो ऐसी परिस्थितियों में, धारा 18 की रोक लागू नहीं होगी और अदालतें आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से बिल्कुल नहीं रोकी जाएंगी। "पहली नजर में ही ऐसे मामले के अस्तित्व को तय करने की जिम्मेदारी अदालतों पर डाला गयी है ताकि यह तय किया जा सके कि आरोपी का कोई अनावश्यक अपमान न हो।"