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राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अनिश्चित काल तक जेल में नहीं रख सकते: सुप्रीम कोर्ट

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अनिश्चित काल तक जेल में नहीं रख सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट कहता रहा है कि जमानत को बढ़ावा देना चाहिए न कि जेल में कैद को, अब इसने क्यों कहा कि किसी को भी अनिश्चित काल के लिए जेल में नहीं रख सकते?

सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी व्यक्ति को आँख बंद करके अनिश्चित काल के लिए जेल में रखे जाने पर सवाल उठाया है। इसने कहा है कि ऐसे मामले में जिसमें जाँच जारी है, इस आशंका पर किसी को अनिश्चितकाल के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता है कि आरोपी एक बड़ी साज़िश में शामिल हो सकता है या यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकता है।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने सोमवार को सीमा पार पशु तस्करी मामले के कथित मुख्य आरोपी मोहम्मद इनामुल हक को जमानत देते समय की। इस मामले में केंद्रीय एजेंसी ने बीएसएफ़ के एक कमांडेंट को भी उनकी कथित संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किया था। इसमें कथित तौर पर राजनीतिक दलों और स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी सामने आई थी।

सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला उसके इस सिद्धांत के अनुरूप लगता है जिसमें वह कहते रहा है कि जमानत को बढ़ावा देना चाहिए न कि जेल में कैद को। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ही यानी दिसंबर में इस पर चिंता जताई थी कि कई निर्देश देने के बावजूद निचली अदालतों द्वारा जमानत को प्रोत्साहित करने में अनिच्छा दिखी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी अदालतों की मानसिकता बदलने की ज़रूरत है।

वैसे, न्याय का एक मूल सिद्धांत यह भी होता है कि भले ही गुनहगार बच जाए, लेकिन बेगुनाह को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ इसी आधार पर जमानत और कैद को लेकर फ़ैसला दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेशों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में माना है। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन मामलों में गिरफ्तारी नियमित तरीक़े से नहीं की जानी चाहिए जब आरोपी जांच में सहयोग कर रहा हो और यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि वह व्यक्ति फरार हो जाएगा या जांच को प्रभावित करेगा। 

अदालत ने अक्टूबर में अपने एक निर्देश में कहा था कि यदि किसी आरोपी ने जांच में सहयोग किया और जांच के दौरान उसे गिरफ्तार नहीं किया गया था तो उसे चार्जशीट दाखिल करते समय हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि एक ट्रायल कोर्ट भी चार्जशीट को स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया था और अदालत के सामने पेश नहीं किया गया था।

बहरहाल, ताज़ा मामले में हक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में आरोपी बीएसएफ़ कमांडेंट के साथ-साथ अन्य आरोपियों को भी जमानत दे दी गई, लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हक की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। उन्होंने कहा कि हक उस मामले में एक साल से अधिक समय तक जेल में रह गए जिसमें अधिकतम सात साल की कैद की सजा का प्रावधान है।

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार सीबीआई के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि याचिकाकर्ता भारत-बांग्लादेश सीमा के माध्यम से सीमा पार मवेशियों की तस्करी के लिए बीएसएफ कर्मियों, सीमा शुल्क अधिकारियों, स्थानीय पुलिस और अन्य लोगों से जुड़े रैकेट का सरगना है। उन्होंने कहा कि इसमें स्थानीय पुलिस की मिलीभगत का संकेत मिलता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता पैदा करता है।

जब उन्होंने कहा कि एक बड़ी साजिश की जांच अभी भी लंबित है, तो जस्टिस चंद्रचूड़ और माहेश्वरी ने पूछा, 'किसी व्यक्ति को अनिश्चित काल तक हिरासत में रखने से बड़ी साज़िश की जाँच में कैसे मदद मिलेगी जब अन्य आरोपियों को ज़मानत दे दी गई है? क्या एक साल और दो महीने, जिसके लिए वह हिरासत में है, बड़ी साजिश की जांच के लिए पर्याप्त नहीं है?' 

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