समलैंगिक विवाह पर 18 अप्रैल से सुनवाई करेगी संविधान पीठ
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर अब पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी। सीजेआई के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने निर्देश दिया कि 18 अप्रैल से होने वाली इस सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट और यू-ट्यूब पर होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला तब आया है जब एक दिन पहले ही केंद्र ने याचिकाओं का विरोध किया है। उसने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 'भारतीय वैधानिक और व्यक्तिगत कानून में विवाह की क़ानूनी समझ है कि केवल एक पुरुष और महिला के बीच विवाह हो'। इसने यह भी कहा है कि इसमें कोई भी हस्तक्षेप व्यक्तिगत क़ानूनों के नाजुक संतुलन में पूरी तरह से तबाही मचाएगा।
अदालत से इस मुद्दे को संसद पर छोड़ने का आग्रह करते हुए केंद्र ने जोर देकर कहा कि कोई भी बदलाव सक्षम विधायिका के समक्ष ही हो सकता है। इसने यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के डिक्रिमिनलाइज़ेशन के बावजूद याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।
सुनवाई के दौरान तीन जजों की बेंच ने कहा कि इस फ़ैसले का समाज पर बहुत बड़ा असर पड़ेगा और इस पर विचार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, 'हमारा विचार है कि उठाए गए मुद्दों को इस अदालत के पाँच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा संविधान के ए 145 (3) के संबंध में हल किया जाए तो ठीक रहेगा। तो, हम इसे एक संविधान के समक्ष रखने का निर्देश देते हैं।'
सुनवाई के दौरान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने इस धारणा को नकार दिया कि एक समलैंगिक जोड़े द्वारा गोद लिया गया बच्चा समलैंगिक ही होगा।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा दिए गए बयान के जवाब में यह टिप्पणी की कि यह संसद का काम है कि वह समलैंगिक जोड़े को कानूनी अधिकार देने पर विचार करे क्योंकि उसे यह जांचना है कि 'एक बच्चे का मनोविज्ञान क्या होगा जिसने या तो दो पुरुष माता-पिता के रूप में या दो महिलाएं माता-पिता के रूप में देखा है और एक पिता और एक माँ द्वारा पाला नहीं गया है'।
केंद्र की ओर से पेश भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं का विरोध करते हुए गोद लेने का एक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा- 'जब किसी रिश्ते को मान्यता देने का सवाल है, तो यह विधायिका का कार्य है। यह एक से अधिक कारणों से है। उदाहरण के लिए, जिस क्षण एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को मान्यता दी जाती है, प्रश्न गोद लेने का होगा। जब गोद लेने का सवाल आएगा, तो संसद को जांच करनी होगी। संसद को लोगों की इच्छा पर विचार करना होगा। संसद को जांच करनी होगी कि बच्चे के मनोविज्ञान की स्थिति क्या होगी जिसने या तो दो पुरुषों को माता-पिता के रूप में देखा है या दो महिलाओं को माता-पिता के रूप में और एक पिता और एक माँ द्वारा पाला नहीं गया है। ये मुद्दे हैं।'
रिपोर्ट के अनुसार इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि मिस्टर सॉलिसिटर, समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे को समलैंगिक ही होना ज़रूरी नहीं है। उन्होंने कहा कि बच्चा समलैंगिक हो भी सकता है और नहीं भी...।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता अरुंधति काटजू ने एसजी की दलील पर आपत्ति जताने के लिए हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि एसजी के लिए इस तरह का बयान देना बहुत अपमानजनक है।
इस सुनवाई के बाद पीठ ने याचिकाओं को 18 अप्रैल को सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया।