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आज बिलकीस है, कल आप या मैं हो सकते हैं, क्या सरकार ने दिमाग लगाया: SC

आज बिलकीस है, कल आप या मैं हो सकते हैं, क्या सरकार ने दिमाग लगाया: SC

बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार व हत्याकांड मामले में दोषी 11 लोगों की रिहाई को चुनौती देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर सख्त टिप्पणी की। जानिए इसने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात सरकार से बिलकीस बानो बलात्कार मामले में ग्यारह दोषियों को समय से पहले रिहा करने पर सवाल उठाए हैं। इसने कहा है कि सरकार यह फ़ैसला लेने के पीछे के कारणों को साझा करे। दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली 27 मार्च की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को अपराध की गंभीरता पर विचार करना चाहिए था।

दंगों के दौरान गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में 3 मार्च, 2002 को बिलकीस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के अधिकतर लोगों को मार दिया गया था। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। 

बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषी जब गुजरात सरकार की छूट नीति के तहत जेल से बाहर आए थे तो उन्हें रिहाई के बाद माला पहनाई गई थी और मिठाई खिलाई गई थी। इसी रिहाई मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को पिछली सुनवाई में बिलकीस बानो गैंगरेप मामले में दोषियों की जल्द रिहाई के खिलाफ याचिका पर केंद्र, गुजरात सरकार और अन्य से जवाब मांगा था। शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या हत्या के अन्य मामलों में समान मानकों का पालन किया गया है, जबकि बिलकीस बानो मामले में 11 दोषियों को समय से पहले रिहा करने की अनुमति दी गई?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र और गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा है कि वे उसके 27 मार्च के आदेश की समीक्षा के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की पीठ अब इस मामले की सुनवाई दो मई को करेगी और गुजरात सरकार द्वारा दाखिल की जाने वाली प्रस्तावित पुनर्विचार याचिका पर भी फैसला करेगी।

रिपोर्ट के अनुसार बेंच ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि केंद्र सरकार राज्य के फैसले से सहमत है, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य को अपना दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा, 'सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, अपने निर्णय के लिए किस सामग्री  को आधार बनाया, आदि… आदेश में दोषियों को उनके प्राकृतिक जीवन तक के लिए जेल में रहने की ज़रूरत बतायी गई है… (वे) कार्यकारी आदेश द्वारा रिहा किए गए थे… आज यह महिला (बिलकिस) है। कल, यह आप या मैं हो सकते हैं। वस्तुनिष्ठ मानक होने चाहिए … यदि आप हमें कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे।'

इस ओर इशारा करते हुए कि सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती है, शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि एक नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती।

पिछले फ़ैसले में बेंच ने कहा था कि केंद्र और गुजरात सरकार दोषियों को छूट देने वाले फ़ैसले की फाइल के साथ तैयार रहें। उसी के ख़िलाफ़ समीक्षा याचिका दायर करने की बात सरकार की ओर से की गई।

इस पर जस्टिस जोसेफ ने हैरानी जताते हुए कहा, 'हमने आपसे केवल फाइलों के साथ तैयार रहने को कहा है। वह भी आप चाहते हैं कि हम समीक्षा करें।'

राज्य और केंद्र दोनों ने रिहा हुए दोषियों को दी गई छूट पर अपनी फाइलें पेश करने में अपनी अनिच्छा जाहिर की है। न्यायमूर्ति जोसेफ ने स्पष्ट किया कि इस मामले में महत्वपूर्ण सवाल यह था कि क्या छूट देते समय, राज्य सरकार ने दोषियों के छूट आवेदनों को मंजूरी देने से पहले 'सही' सवाल पूछे थे और 'अपने दिमाग का इस्तेमाल' किया था। 

सरकार की ओर से पेश एएसजी एसवी राजू ने जवाब दिया, 'दिमाग का इस्तेमाल किया गया था।'

जस्टिस जोसेफ ने पलटवार करते हुए कहा, 'फिर हमें फाइल दिखाइए। हमने आपको इसके साथ तैयार रहने के लिए कहा है।' इस पर राजू ने कहा, 'हमारे पास फाइलें हैं। वास्तव में, मैं उन्हें अपने साथ अदालत में ले आया हूं। लेकिन मेरे को निर्देश हैं कि हम इस अदालत के आदेश की समीक्षा की मांग कर सकते हैं। हम भी विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं।'

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