अडानी समूह में क्या गड़बड़ी? जानें सुप्रीम कोर्ट पैनल ने क्या कहा
अडानी समूह के आरोपों की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों पर नियामक विफल रहा है या नहीं।
प्रथम दृष्टया सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ने कोई गड़बड़ी नहीं पाई है और एक तरह से 'क्लीन चिट' देते हुए कहा है कि अडानी समूह द्वारा कोई उल्लंघन नहीं किया गया है और यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि बाजार नियामक सेबी की ओर से कोई नियामक विफलता थी। हिंडनबर्ग के आरोपों की जाँच कर रहे विशेषज्ञों के पैनल ने कहा है कि पहली नज़र में ऐसा लगता है कि अडानी समूह की ओर से कीमतों में कोई हेरफेर नहीं किया गया है।
पैनल ने कहा कि अडानी समूह ने खुदरा निवेशकों को राहत देने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए हैं और समूह द्वारा किए गए उपायों को कम करने से स्टॉक में विश्वास बनाने में मदद मिली है। इसमें यह भी नोट किया गया है कि स्टॉक अब स्थिर है।
अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा यह आरोप लगाए जाने के बाद कि अडानी समूह द्वारा धोखाधड़ी, शेयर बाजार में हेरफेर और विदेशी संस्थाओं के अनुचित उपयोग किया गया, सुप्रीम कोर्ट ने यह समिति नियुक्त की थी।
इसी साल 24 जनवरी की एक रिपोर्ट में यूएस शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर स्टॉक में हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाया। रिपोर्ट में कहा गया कि उसने अपनी रिसर्च में अडानी समूह के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों सहित दर्जनों व्यक्तियों से बात की, हजारों दस्तावेजों की जांच की और इसकी जांच के लिए लगभग आधा दर्जन देशों में जाकर साइट का दौरा किया।
हालाँकि अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के आरोपों का खंडन किया है, हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद से अडानी कंपनियों के शेयरों की क़ीमतें धड़ाम गिरी हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जिस समिति ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के सामने अपने निष्कर्ष पेश किए हैं, उसने कहा है कि सेबी ने पाया था कि कुछ संस्थाओं ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले एक शॉर्ट पॉजिशन स्थिति ली थी और रिपोर्ट के बाद कीमत गिरने के बाद मुनाफा कमाया था।
'ग़लत ट्रडिंग का कोई पैटर्न नहीं'
समिति ने एक ही पार्टियों के बीच कई बार आर्टिफिशियल ट्रेड जैसा कोई पैटर्न नहीं पाया। समिति ने कहा कि ग़लत ट्रेडिंग का कोई सुसंगत पैटर्न भी सामने नहीं दिखा। समिति ने कहा कि न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता के संबंध में कोई नियामक विफलता नहीं पाई गई और अनुपालन का कोई उल्लंघन नहीं हुआ।
'विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक नियमानुसार हैं'
समिति ने स्पष्ट रूप से कहा कि नियामक यह साबित करने में सक्षम नहीं था कि उसके संदेह को उल्लंघन के आरोप में मुक़दमा चलाने के एक ठोस मामला बनाया जा सकता है। समिति ने कहा कि अडानी समूह के शेयरों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक सेबी के नियमों के अनुरूप हैं।
बता दें कि हिंडनबर्ग के आरोपों की जाँच सेबी द्वारा भी की जा रही है। उसने हाल ही में अपनी जाँच को पूरा करने के लिए छह महीने का और वक़्त मांगा था। अदालत ने उसे तीन महीने का समय दे दिया है। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में अपने जवाब में सेबी ने कहा था कि उसने 2016 के बाद से किसी भी अडानी कंपनी की जांच नहीं की है। उसने कहा है कि ऐसा आरोप लगाने वाला कि एजेंसी 2016 से ही अडानी की कंपनियों की जाँच कर रही है, तथ्यात्मक रूप से गलत है।
कई याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगया है कि सेबी अडानी की कंपनियों के ख़िलाफ़ 2016 से ही जाँच कर रहा है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, इसी की प्रतिक्रिया में सेबी ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को रिज्वाइंडर देकर अपनी स्थिति साफ़ की है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी परदीवाला की पीठ ने पहले कहा था, 'हम अब 6 महीने का समय नहीं दे सकते। काम में थोड़ी तत्परता लाने की ज़रूरत है। एक टीम तैयार रखें। हम अगस्त के मध्य में मामले को सूचीबद्ध कर सकते हैं और उसके बाद रिपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं। न्यूनतम समय के रूप में 6 महीने नहीं दिए जा सकते हैं। सेबी अनिश्चित काल तक लंबी अवधि नहीं ले सकता है और हम उन्हें 3 महीने का समय देंगे।'