प्रधानमंत्री मोदी के जिस बहुप्रतीक्षित चार धाम परियोजना में पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की शिकायतें होती रही हैं उस पर अब सुप्रीम कोर्ट पैनल के प्रमुख ने ही बड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार समिति यानी एचपीसी के अध्यक्ष ने कहा है कि ऐसा लगता है कि परियोजना के निर्माण में 'क़ानून का राज ही नहीं है'। उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय को सख़्त कार्रवाई करने के लिए कहा है। इसके लिए एचपीसी प्रमुख ने पर्यावरण सचिव को पत्र लिखा है।
चार धाम परियोजना का निर्माण सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) करा रहा है और पर्यावरण मंत्रालय को भेजी गई चिट्ठी में भी इसका ज़िक्र है।
चारधाम परियोजना उत्तराखंड में प्रस्तावित एक चारधाम महामार्ग की परियोजना है जिसे ऑल वेदर एक्सप्रेसवे भी कहा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2016 में इस परियोजना की आधारशिला रखी थी। इसके अंतर्गत राज्य में स्थित चार धाम तीर्थस्थलों को एक्सप्रेस राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से जोड़ा जायेगा। इसके तहत क़रीब 900 किलोमीटर सड़क का निर्माण होगा। परियोजना के तहत क़रीब 10-15 मीटर चौड़े दो-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया जाएगा। परियोजना के पारिस्थितिकी प्रभाव की जाँच करने और बेहतर उपाय की सिफ़ारिश करने के लिए बनाई गी एचपीसी ने इसकी चौड़ाई को लेकर भी सवाल उठाए हैं। हालाँकि समिति के सदस्यों में इस पर मतभेद भी हैं।
बता दें कि जुलाई महीने में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त इस पैनल के दो विशेषज्ञ सदस्यों ने इस परियोजना की सड़क को चौड़ा करने को 'हिमालयी भूल' क़रार दिया था और पर्यावरणीय नुक़सान की चिंता जताई थी। 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार तब दो सदस्यों हेमंत ध्यानी और नवीन जुयल का यह नज़रिया उस रिपोर्ट में शामिल किया गया था जिसे पर्यावरण मंत्रालय को भेजा गया था।
सड़कों की चौड़ाई पर एचपीसी के सदस्यों में ही असहमति होने पर इसी साल जुलाई में दो रिपोर्ट दी गई है। इसमें असहमति इस बात पर है कि सड़क की आदर्श चौड़ाई 12 मीटर होनी चाहिए, लेकिन नियमों का हवाला देकर कहा गया है कि पहाड़ी सड़कों की चौड़ाई 5.5 मीटर ही होनी चाहिए।
इस परियोजना में पेड़ों की कटाई, पर्यावरण और वन्य जीवों को नुक़सान का मुद्दा उठाया जा रहा है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार एचपीसी अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने 13 अगस्त को पर्यावरण सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि परियोजना ने कई खंडों पर वैध अनुमति के बिना पेड़ों की कटाई, पहाड़ियों को काटने और डंपिंग सामग्री से 'हिमालयी पारिस्थितिकी को नुक़सान पहुँचाने वाली अपूरणीय और दीर्घकालिक क्षति' पहुँची है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, एचपीसी के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने पर्यावरण सचिव को जो पत्र भेजा है उसमें कई नियमों के उल्लंघन का हवाला दिया गया है-
वैध अनुमति के बिना काम किया जा रहा है। 2017-18 से 250 किमी से अधिक तक परियोजना का काम और विभिन्न हिस्सों पर पेड़ों की कटाई अवैध रूप से जारी है। 2018 में राज्य के वन विभाग द्वारा जारी वर्क ऑर्डर क़ानूनी रूप से ग़लत है। इसमें कहा गया है कि राज्य और प्रोजेक्ट के अधिकारी इन उल्लंघनों से अच्छी तरह वाकिफ़ थे।
पुराने क्लीयरेंस का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा है। 2002-2012 के दौरान बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को दी गई क्लीयरेंस का इस्तेमाल 200 किलोमीटर तक सड़क बनाने के लिए किया जा रहा है जबकि मौजूदा स्थिति बदल गई है। पर्यावरण के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए यह ख़तरा हो सकता है।
ग़लत डेक्लेयरेशन: नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ बोर्ड (NBWL) को चकमा देकर 200 किमी से अधिक दूरी तक पेड़ों की कटाई, पहाड़ी कटाई और डंपिंग शुरू की गई। ऐसा यह ग़लत डेक्लेयरेशन देकर किया गया कि ये केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य, राजाजी के इकोसेंसेटिव ज़ोन, राष्ट्रीय उद्यान, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान आदि में नहीं आते हैं।
इसके अलावा बिना क्लीयरेंस के 50 किलोमीटर तक सड़क बनाने, पेड़ और पहाड़ों को काटे जाने का आरोप लगाया गया है। एचपीसी ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन हुआ है।
हालाँकि पर्यावरण सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने एचपीसी प्रमुख के ऐसे किसी पत्र की जानकारी होने से इनकार किया है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, उन्होंने कहा, 'मैंने इसे नहीं देखा है, लेकिन अगर पर्यावरण मंत्रालय को कोई सूचना मिली है तो हम स्वाभाविक रूप से इस पर ग़ौर करेंगे।' इधर, एचपीसी के अध्यक्ष चोपड़ा ने कहा, 'मैंने इसे 13 अगस्त को मंत्रालय के कई अधिकारियों को ईमेल किया। चूँकि मंत्रालय हमेशा तुरंत जवाब नहीं देता है, इसलिए मैंने सोचा कि मैं उन्हें फिर से लिखने से पहले कुछ हफ़्ते इंतज़ार करूँगा।'