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कृषि क़ानूनों पर रोक लगेगी या नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आज

कृषि क़ानूनों पर रोक लगेगी या नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आज

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जिन नये कृषि क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है उस फ़ैसला आज आएगा। फ़ैसले पर नज़र इसलिए है कि कृषि क़ानूनों पर रोक लगेगी या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जिन नये कृषि क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है उस मामले में फ़ैसला आज आएगा। फ़ैसले पर नज़र इसलिए है कि कृषि क़ानूनों पर रोक लगेगी या नहीं। क्योंकि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसके संकेत दिए और सरकार से सख़्त लहजे में तीखे सवाल किए थे। 

सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने कहा, ‘हमने आपसे पिछली बार पूछा था लेकिन आपने जवाब नहीं दिया। हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, लोग आत्महत्या कर रहे हैं और वे ठंड में बैठे हुए हैं। आप हमें बताएँ अगर आप इन क़ानूनों को होल्ड नहीं कर सकते तो हम ऐसा कर देंगे। इन्हें रोकने में आख़िर दिक्कत क्या है।’ 

हाल के दिनों में सरकार के ख़िलाफ़ ऐसा ग़ुस्सा शायद ही सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया हो। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने कृषि क़ानूनों को लागू करने के पीछे की प्रक्रिया पर सवाल उठाया। इसने किसानों के विरोध प्रदर्शनों से निपटने के सरकार के तौर-तरीक़ों पर गहरी 'निराशा' व्यक्त की।

फ़ैसले देने के लिए मंगलवार का दिन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि एक समाधान निकालने के लिए वह भी उन नये कृषि क़ानूनों के लागू होने पर रोक लगा सकता है। अदालत ने एक कमेटी गठित करने का भी सुझाव दिया।

मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने 17 दिसंबर को भी केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस पर विचार करे कि क्या कृषि क़ानूनों को होल्ड (रोका) किया जा सकता है। इस पर केंद्र की ओर से कहा गया था कि ऐसा नहीं किया जा सकता। किसानों को दिल्ली के बॉर्डर्स से हटाने को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं।

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि उनके पास कई किसान संगठन आए हैं जिन्होंने कहा है कि ये क़ानून बेहतर हैं।

जब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बाक़ी किसानों को कोई दिक़्कत नहीं है। इस पर सीजेआई बोबडे ने कहा कि उनके पास तो ऐसी कोई याचिका नहीं आई है जिसमें यह कहा गया हो कि ये क़ानून अच्छे हैं।

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, ‘हम इस बात को लेकर दुखी हैं कि सरकार इस मसले को हल नहीं कर पा रही है। आपने बिना व्यापक बातचीत के ही इन क़ानूनों को लागू कर दिया और इसी वजह से धरना शुरू हुआ। इसलिए आपको इसका हल निकालना ही होगा।’ 

इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कई ऐसे उदाहरण हैं जो कहते हैं कि अदालत क़ानूनों पर रोक नहीं लगा सकती। 

 - Satya Hindi

सीजेआई ने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि हमारे हाथ रक्तरंजित हों। अगर कुछ भी हो जाता है तो हम सभी लोग उसके लिए जिम्मेदार होंगे। हमें इस बात का डर है कि अगर कोई कुछ कर लेता है तो इससे स्थिति बिगड़ सकती है।’

सीजेआई ने सरकार से पूछा, ‘क़ानूनों पर रोक लगने के बाद क्या वह धरना स्थल पर लोगों की चिंताओं के बारे में जानेगी। हमें पता चला है कि बातचीत इस वजह से फ़ेल हो रही हैं क्योंकि सरकार क़ानूनों के हर क्लॉज पर चर्चा करना चाहती है और किसान इन सभी कृषि क़ानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं।

26 जनवरी की परेड का मुद्दा 

सॉलिसिटर जनरल ने सीजेआई से कहा कि वे इस तरह का संदेश न दें कि हमने कुछ नहीं किया, हमने अपनी ओर से बेहतर काम किया। उन्होंने अदालत से कहा कि वह 26 जनवरी की परेड के लिए इंजक्शन ऑर्डर दें जिससे परेड में दख़ल न हो। इस पर सीजेआई ने कहा कि अब हम इस मामले में आदेश देंगे। 

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह कल आदेश दें, जल्दबाज़ी में न दें। इसके जवाब में सीजेआई ने कहा,

हमने आपको बहुत वक़्त दिया, आप हमें धैर्य रखने को लेकर भाषण न दें। हम आज और कल दो हिस्सों में आदेश सुना सकते हैं।


सुप्रीम कोर्ट सीजेआई

ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति ने सरकार के इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया है कि वे इन क़ानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ले जाएं। किसानों ने चेताया है कि अगर केंद्र सरकार इन क़ानूनों को रद्द नहीं करती तो वे दिल्ली के सभी बॉर्डर्स को बंद कर देंगे। समिति ने कहा है कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बिना ख़ुद इस मसले में फ़ैसला करना चाहिए। समिति ने आरोप लगाया है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक ढाल की तरह इस्तेमाल कर रही है। 

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बीते 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को दिल्ली के बॉर्डर्स से हटाने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने केंद्र सरकार से कहा था कि अगर आप खुले मन से बातचीत नहीं करेंगे तो यह फिर से फ़ेल हो जाएगी। उसके बाद से भी किसानों और सरकार के बीच हुई बातचीत फ़ेल हो चुकी है। 

इधर, कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली-हरियाणा, हरियाणा-राजस्थान, दिल्ली-यूपी के तमाम बॉर्डर्स पर किसान डटे हुए हैं। कड़ाके की सर्दी भी किसानों के बुलंद हौसलों को नहीं डिगा पा रही है।

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