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शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा : सार्वजनिक स्थानों पर बेमियादी कब्जा स्वीकार नहीं

शाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा : सार्वजनिक स्थानों पर बेमियादी कब्जा स्वीकार नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि प्रदर्शनकारी किसी सार्वजनिक स्थल को अनिश्चित काल के लिए घेर कर नहीं रख सकते। अदालत ने राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के ख़िलाफ लगभग 3 महीने तक चले विरोध प्रदर्शन पर यह टिप्पणी की है। 

सार्वजनिक स्थानों पर विरोध प्रदर्शन करने के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसला दिया है, जो भविष्य में देश में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने के अधिकार को तय करेगा। 

अदालत ने कहा, 'असहमति और लोकतंत्र साथ-साथ चलते हैं'। लेकिन इसके साथ ही यह भी कहा कि 'इस तरह के प्रदर्शन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।'

सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में जस्टिस एस. के. कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी थे। इस खंडपीठ ने अपने फ़ैसले में कहा, 

'हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं रखा जा सकता है, यह जगह शाहीन बाग हो या कोई और। इस तरह के प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं है। अधिकारियों को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए, उन्हें इस तरह के स्थानों को खुला रखना चाहिए।'


सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का अंश

'शाहीन बाग जैसे आन्दोलन स्वीकार्य नहीं'

बेंच ने यह भी कहा है कि विरोध करने के अधिकार और सड़कों को जाम करने में संतुलन रखना चाहिए। बेंच ने कहा, 'संसदीय लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन संसद और सड़क पर हो सकता है। लेकिन सड़क पर विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण ही रहना चाहिए।'

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि कोई एक सार्वभौमिक नियम नहीं हो सकता है, स्थितियां बदलती रहती हैं, इसलिए यह भी बदलता रहेगा।   

क्या था शाहीन बाग आन्दोलन

याद दिला दें कि दिल्ली के शाहीन बाग में स्थानीय महिलाओं ने लगभग तीन महीने तक विरोध प्रदर्शन किया था। शुरू में वे मोटे तौर पर स्थाानीय महिलाएं थीं, पर बाद में इस दूसरे लोगों की भागेदारी बढ़ती गई और वह भीड़ भी बढ़ती गई। चौबीसों घंटे चलने वाले इस प्रदर्शन में एक समय दसियों हज़ार लोगों की मौजूदगी देखी गई थी। 

इस आन्दोलन की बड़ी बात यह थी कि यह पूरी तरह ग़ैर-राजनीतिक था और यह शांतिपूर्ण ही रहा। 

लेकिन सत्तारूढ़ बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों ने इस आन्दोलन को निशाने पर लिया और सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर इसके खिलाफ प्रचार चलाया, जिसमें अधिकतर बेबुनियाद थे। 

निशाने पर था आन्दोलन

यह प्रचारित किया गया कि यह आन्दोलन विदेशी ताक़तों से संचालित है, यह कहा गया कि मुसलमानों का हिन्दुओं के विरुद्ध विद्रोह है, यह प्रचारित किया गया कि यह आन्दोलन भारत में इसलाम का पुनरुत्थान है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने कहा था कि यह संयोग नहीं प्रयोग है। लेकिन इन तमाम उकसावे के बावजूद यह आन्दोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण ही रहै। 

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