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राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हक नहीं छीन सकते, स्वतंत्र मीडिया ज़रूरी: SC

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हक नहीं छीन सकते, स्वतंत्र मीडिया ज़रूरी: SC

क्या राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर किसी को उसके अधिकार से वंचित किया जा सकता है और क्या सरकार की आलोचना 'देश विरोध' है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत मलयालम न्यूज़ चैनल पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका पर बुधवार को सुनवाई कर रही थी। इसने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर मलयालम न्यूज चैनल 'मीडिया वन' के प्रसारण पर केंद्र के फ़ैसले को बरकरार रखा था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार की नीतियों और कार्यों की चैनल द्वारा आलोचना को राष्ट्र-विरोधी या सत्ता-विरोधी नहीं माना जा सकता है और एक जीवंत लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र प्रेस ज़रूरी है।

बार एंड बेंच के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चैनल के कुछ प्रसारणों ने राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित किया है। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, 'राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते, इसके समर्थन में ठोस तथ्य होने चाहिए।'

अदालत ने चैनल चलाने वाली कंपनी मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड यानी एमबीएल द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका में यह फ़ैसला सुनाया। इसमें सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रसारण लाइसेंस को नवीनीकृत नहीं करने के फ़ैसले को बरकरार रखने के केरल उच्च न्यायालय के फ़ैसले को चुनौती दी गई थी। गृह मंत्रालय से सुरक्षा मंजूरी के अभाव में लाइसेंस नवीनीकृत नहीं हो पा रहा था। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय द्वारा पेश सीलबंद कवर दस्तावेजों के आधार पर केंद्र के फ़ैसले को बरकरार रखने के उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण की आलोचना की।

इसने कहा,

उच्च न्यायालय ने सुरक्षा मंजूरी से इनकार करने के कारणों का खुलासा नहीं किया। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उच्च न्यायालय के दिमाग में क्या था, जिससे यह माना जा सके कि मंजूरी से इनकार उचित था।


सुप्रीम कोर्ट

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फ़ैसले में जोरदार ढंग से कहा गया है कि राज्य केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील देकर नागरिकों के अधिकारों से इनकार नहीं कर सकता है।

सीजेआई ने कहा, 'आतंकवादी लिंक दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। खाली हवा के आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे नहीं किए जा सकते। यह देखा गया है कि कोई भी सामग्री राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ नहीं है या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए ख़तरा नहीं है।'

अदालत ने इस मामले में गृह मंत्रालय के रुख की तीखी आलोचना की है। शीर्ष अदालत ने कहा, 'सरकार को यह रुख रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि प्रेस को सरकार का समर्थन करना चाहिए।'

सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा कि सरकार की आलोचना एक टीवी चैनल के लाइसेंस को रद्द करने का आधार नहीं हो सकती है।

फ़ैसले में कहा गया कि सीबीआई और आईबी जैसी जांच एजेंसियों की रिपोर्ट को खुलासे करने से पूरी छूट नहीं दी जा सकती। 

अदालत ने लोकतंत्र और आज़ाद पत्रकारिता के बीच सीधा संबंध बताया। इसने कहा, 'लोकतांत्रिक गणराज्य के मज़बूत कामकाज के लिए एक स्वतंत्र प्रेस ज़रूरी है। लोकतांत्रिक समाज में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य के कामकाज पर प्रकाश डालती है।'

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'प्रेस का कर्तव्य है कि वह सच बोले और नागरिकों को सही तथ्यों के साथ प्रस्तुत करे, जिससे वे लोकतंत्र को सही दिशा में तैयार करने वाले विकल्पों को चुनने में सक्षम हो सकें। प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नागरिकों को उसी पर सोचने के लिए मजबूर करता है। सामाजिक आर्थिक राजनीति से लेकर राजनीतिक विचारधाराओं तक के मुद्दों पर एक समान दृष्टिकोण लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगा।' 

अदालत ने कहा, 'सभी जांच रिपोर्टों को गुप्त नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं।'

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