क्या मुफ्त शिक्षा, पीने का मुफ्त पानी का वादा ‘फ्रीबीज’ है?: SC
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि अदालत राजनीतिक दलों को वादे करने से नहीं रोक सकती। अदालत तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके की ओर से राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा करने के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर भी बीते कई महीनों से सुनवाई कर रही है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना ने कहा कि लोगों की भलाई करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि मुद्दा यह है कि जनता का पैसा सही खर्च करने का सही तरीका क्या है और यह मामला बहुत जटिल है। सवाल यह भी है कि क्या अदालत इन मुद्दों की पड़ताल करने में सक्षम है।
डीएमके ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य सरकारों द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने को फ्रीबीज यानी मुफ्त उपहार नहीं कहा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले इसी मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि चुनावी मौसम के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा करना और उन्हें दिया जाना एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है।
अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में मतदाताओं को लुभाने के लिए 'मुफ्त' का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है और राज्य कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं।
सुनवाई के दौरान सीजेआई रमना ने कहा, “क्या हम मुफ्त शिक्षा के वादे को फ्रीबीज कह सकते हैं, क्या पीने के मुफ्त पानी, बिजली की न्यूनतम यूनिटों के वादे को फ्रीबीज कहा जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “कुछ लोग कहते हैं कि पैसा बर्बाद हो रहा है कुछ कहते हैं कि यह भलाई के लिए है और अब यह मामला जटिल होता जा रहा है।”
बताना होगा कि भारत में चुनाव से पहले मतदाताओं को रिझाने के लिए कई राज्यों में राजनीतिक दल जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं और चुनाव के बाद इन्हें पूरा करना उनकी मजबूरी बन जाता है। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस याचिका का विरोध किया था और कहा था कि वंचित जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को 'मुफ्त' नहीं कहा जा सकता है।
यहां बताना जरूरी है कि आम आदमी पार्टी ने कई राज्यों में मतदाताओं से मुफ्त बिजली, पानी देने का वादा किया। कहा जाता है कि इसी वादे के दम पर उसने दिल्ली और पंजाब में सत्ता हासिल की। अब वह गुजरात, हिमाचल प्रदेश में भी इसी तरह का वादा मतदाताओं से कर रही है। अब यह मामला अदालत में भी चल रहा है।
रेवड़ी कल्चर पर रार
दूसरी ओर, रेवड़ी कल्चर को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच बहस चल रही है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा आम जनता के लिए चलाई जाने वाली तमाम वेलफेयर स्कीम्स को रेवड़ी बताकर केंद्र सरकार आम जनता का मजाक बना रही है।
जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है। ये कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है।