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प्रशांत भूषण: अवमानना के मामले में कितनी सजा हो सकती है, वकीलों से जानिए

प्रशांत भूषण: अवमानना के मामले में कितनी सजा हो सकती है, वकीलों से जानिए

जाने-माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को आपराधिक अवमानना के मामले में देश की सर्वोच्च अदालत मंगलवार को सजा सुना सकती है।

जाने-माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को आपराधिक अवमानना के मामले में देश की सर्वोच्च अदालत मंगलवार को सजा सुना सकती है। न्यायालय अवमानना अधिनियम के तहत कोर्ट की अवमानना करने पर अधिकतम 6 माह का साधारण कारावास या जुर्माना (दो हजार तक) या दोनों का प्रावधान है। सोमवार को दाखिल अपने जवाब में प्रशांत भूषण ने माफ़ी मांगने से साफ इनकार कर दिया था। 

पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग को लेकर 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे प्रशांत भूषण को अदालत ने ये कहकर माफी मांगने को कहा था कि बाद में आप ये न कह सकें कि सुप्रीम कोर्ट ने आपको मौका नहीं दिया। हालांकि इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से कहा था कि हम जो भी सजा देंगे वो तब तक अमल में नहीं लाई जाएगी जबतक कि आपकी पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई नहीं कर लेता। 

दो ट्वीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया है। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ मंगलवार को सजा पर फैसला दे सकती है। 

क्या कहते हैं सीनियर एडवोकेट

सीनियर एडवोकेट दिनेश द्विवेदी ने कहा, ‘‘हालांकि सुप्रीम कोर्ट के सजा देने से पहले क्या कहा जा सकता है लेकिन हमारा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को सजा नहीं देगा, केवल सांकेतिक सजा का एलान हो सकता है। न्यायालय अवमानना अधिनियम के तहत छह महीने तक की सजा का प्रावधान है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट के पास हर तरह की शक्ति निहित है इसलिए इस कानून के तहत अदालत किसी भी तरह की सजा दे सकती है। फिर चाहे तो शीर्ष अदालत प्रशांत भूषण को एक दिन, दो दिन, एक महीना किसी भी तरह की सजा दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को सुबह से शाम तक अदालत में रहने या खड़े रहने को भी कह सकती है।’’

इसके साथ ही दिनेश द्विवेदी यह भी आशंका जताते हैं कि, “प्रशांत भूषण के लिए समस्या उस वक्त और बढ़ सकती है जब सुप्रीम कोर्ट सांकेतिक ही सजा दे लेकिन प्रशांत भूषण कानून की नजर में अपराधी साबित (convicted) हो जाएंगे, इस आधार पर कदाचार (misconduct) के लिए बार काउंसिल में शिकायत की जा सकती है, जो उनके लिए परेशानी का सबब बनेगी।’’ उन्होंने कहा कि हालांकि सुप्रीम कोर्ट उन पर वकालत करने से रोक नहीं लगा सकता। 

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सीनियर एडवोकेट दिनेश द्विवेदी।

सीनियर एडवोकेट वी. शेखर कहते हैं कि “कोई भी शख्स जो संस्था की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता हो, चाहे वो संसद हो, सुप्रीम कोर्ट हो या कोई भी संवैधानिक संस्था, उस शख्स को साफ संदेश जाना चाहिए कि ये सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता।’ 

संविधान में बोलने की स्वतंत्रता 19(1) के तहत है लेकिन उसकी भी सीमाएं हैं। अगर आपने किसी जज पर आरोप लगाया है तो आपको उसे साबित करने की भी ताकत होनी चाहिए। हालांकि मैं प्रशांत भूषण के बयान से सहमत नहीं हूं। फिर भी कहना चाहता हूं कि प्रशांत भूषण को अदालत ने अपने बचाव का पूरा मौका दिया।


वी. शेखर, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

वी. शेखर आगे कहते हैं, “बाबरी मसजिद को गिराने के मामले में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सुप्रीम कोर्ट में ही एक दिन काटने की सजा दी गई थी। इस तरह की सजाएं सांकेतिक होती हैं, लेकिन ये भी कानूनी तौर पर ठीक है कि वो व्यक्ति अब अपराधी (Convicted) कहलाएगा।’

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वी. शेखर, सीनियर एडवोकेट।

अटार्नी जनरल की अपील

20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सजा न देने की अपील की थी। अटार्नी जनरल ने कोर्ट से कहा था कि प्रशांत भूषण ने जनहित में बहुत से काम किये हैं, इसलिए उन्हें सजा नहीं देनी चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल के बयान को स्वीकारने से इनकार कर दिया और कहा था कि भूषण ने सार्वजनिक हित के कई अच्छे मामलों को निशुल्क रूप से लड़ा है और यह एक ऐसा कारक होगा जो सजा पर विचार करते समय तौला जाएगा। 

पीठ ने यह भी कहा था कि अच्छी चीजें बुरी चीजों को बेअसर नहीं कर सकती हैं और "लक्ष्मण-रेखा" को पार नहीं किया जा सकता है।

‘विचार अच्छी भावना में व्यक्त किए’

माफी मांगने को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष दाखिल करते हुए भूषण ने कहा कि अदालत के अधिकारी के रूप में उनका मानना है कि जब भी उन्हें लगता है कि यह संस्था अपने स्वर्णिम रिकॉर्ड से भटक रही है तो इस बारे में आवाज़ उठाना उनका कर्तव्य है। 

भूषण ने कहा, ‘इसलिए, मैंने अपने विचार अच्छी भावना में व्यक्त किए, न कि उच्चतम न्यायालय या किसी प्रधान न्यायाधीश विशेष को बदनाम करने के लिए, बल्कि रचनात्मक आलोचना पेश करने के लिए ताकि संविधान के अभिभावक और जनता के अधिकारों के रक्षक के रूप में अपनी दीर्घकालीन भूमिका से इसे किसी भटकाव से रोका जा सके। 

क्षमा याचना सिर्फ औपचारिकता नहीं

भूषण ने कहा कि मेरे ट्वीट इस सदाशयता के विश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें मैं हमेशा अपनाता हूं। इन आस्थाओं के बारे में सार्वजनिक अभिव्यक्ति एक नागरिक के रूप में उच्च दायित्वों और इस न्यायालय के वफादार अधिकारी के अनुरूप हैं। इसलिए इन विचारों की अभिव्यक्ति के लिए सशर्त या बिना शर्त क्षमा याचना करना पाखंड होगा। 

भूषण ने कहा कि क्षमा याचना सिर्फ औपचारिकता नहीं हो सकती है और यह पूरी गंभीरता से की जानी चाहिए। न्यायालय ने 20 अगस्त को भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक ट्वीट के लिए क्षमा याचना से इनकार करने संबंधी अपने बगावती बयान पर पुनर्विचार करने और बिना शर्त माफी मांगने के लिए 24 अगस्त तक का समय दिया था। न्यायालय ने भूषण की सजा के मामले पर दूसरी पीठ द्वारा सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकरा दिया है।

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