+
सुप्रीम कोर्ट का नोटिस: क्या पुलिस कर्मियों को 8 घंटे की ड्यूटी, साप्ताहिक छुट्टी मिलेगी?

सुप्रीम कोर्ट का नोटिस: क्या पुलिस कर्मियों को 8 घंटे की ड्यूटी, साप्ताहिक छुट्टी मिलेगी?

अर्से से चली आ रही पुलिस कर्मियों की 8 घंटे की ड्यूटी और साप्ताहिक अवकाश की माँग के बीच एक याचिका को अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है। कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया है। तो क्या अब पुलिस कर्मियों को काम के घंटे को लेकर राहत मिल पाएगी? 

अर्से से चली आ रही पुलिस कर्मियों की 8 घंटे की ड्यूटी और साप्ताहिक अवकाश की माँग के बीच एक याचिका को अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है। कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया है। तो क्या अब पुलिस कर्मियों को काम के घंटे को लेकर राहत मिल पाएगी वैसे, यह काफ़ी पेचिदा मामला है। ऐसा इसलिए कि एक तो पुलिस से जुड़े क़ानून काफ़ी पुराने हैं इसमें सुधार की माँग होती रही है और दूसरा यह कि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस सुधार के दिशा-निर्देश दिए थे, लेकिन उस पर सही तरीक़े से अमल नहीं हो पाया है।

बहरहाल, पुलिस के काम के घंटे और साप्ताहिक अवकाश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक स्पेशल लीव पीटिशन यानी एसएलपी स्वीकार की है। इसमें इसने पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को नोटिस जारी किया है और पूछा है कि क्यों न सभी पुलिस थानों में आठ घंटे की छुट्टी और साप्ताहिक अवकाश शुरू किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में यह एसएलपी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका खारिज किए जाने के बाद दायर की गई थी। याचिका में ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डवलमेंट के अध्ययन का भी ज़िक्र है। 

याचिका में भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 22 को दी गई शाब्दिक व्याख्या के बारे में भी सवाल उठाया गया है। इस धारा में कहा गया है- 'इस अधिनियम में निहित सभी उद्देश्यों के लिए प्रत्येक पुलिस अधिकारी को हमेशा ड्यूटी पर माना जाएगा, और किसी भी समय, सामान्य पुलिस ज़िले के किसी भी हिस्से में पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।'

वैसे, यह मामला पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ से ही जुड़ा नहीं है। ऐसे ही कई मामले हैं जहाँ राहत माँगी गई है। एक याचिका विजय गोपाल बनाम केंद्र सरकार और अन्य का है जिसमें सभी राज्य सरकारें भी पक्षकार हैं। 

कई ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि पुलिस को मौजूदा परिस्थितियों में 14 से लेकर 18 घंटे तक काम करना पड़ता है। कई राज्यों में ऐसी पुलिस चौकियाँ हैं जहाँ पुलिस कर्मियों की संख्या 1 भी होती है और ऐसे में काम के घंटे का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ऐसी रिपोर्टें भी रही हैं कि राज्यों में पुलिस कर्मियों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में काफ़ी कम है।

2019 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार प्रति एक लाख जनसंख्या पर कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए, लेकिन भारत में यह आँकड़ा 144 ही है। कई राज्यों में तो स्थिति काफ़ी ज़्यादा ख़राब है।

'व्यक्तिगत जीवन का बलिदान'

पिछले साल कॉमन कॉज और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटी द्वारा 'स्टेट ऑफ़ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019' जारी की गई थी। यह रिपोर्ट 21 राज्यों में 11,864 पुलिस कर्मियों के सर्वेक्षण के आधार पर थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि बड़ी आसानी से अक्सर यह कह दिया जाता है कि भारत में पुलिस बर्बर है, लेकिन उनके काम करने की स्थिति को नहीं देखा जाता है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अपने व्यक्तिगत जीवन का बलिदान करते हुए वे सामान्य संसाधनों के साथ ज़्यादा घंटे तक काम करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पुलिसकर्मियों पर काम का भारी बोझ है। ओडिशा में तो 18-18 घंटे की ड्यूटी थी और 90 फ़ीसदी पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता था। पूरे देश भर में औसत रूप से वे 14 घंटे काम करते हैं। 

एक तरह से पुलिस कर्मियों की 8 घंटे की ड्यूटी और साप्ताहिक अवकाश का मामला भी पुलिस सुधार में शामिल है। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद पुलिस सुधार पर काम हुआ है, लेकिन उसका कुछ ख़ास असर नहीं दिखता है। 2018 में कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव (सीएचआरआई) के एक आकलन में यह खुलासा हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को पूरी तरह से किसी भी राज्य ने लागू नहीं किया है।

रिपोर्ट में कहा गया था कि सिर्फ़ 18 राज्यों ने 2006 के बाद नए पुलिस एक्ट को पारित किया है जबकि बाक़ी राज्यों ने सरकारी आदेश/अधिसूचनाएँ जारी की लेकिन किसी भी एक राज्य ने अदालत के निर्देशों का पूरे तरीक़े से पालन नहीं किया। सीएचआरआई का वह अध्ययन प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में 2006 को पुलिस सुधारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों को लेकर था।

बता दें कि 1996 में उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके पुलिस सुधार की माँग की थी। इस पर सुनवाई करते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे और 7 प्रमुख सुझाव दिए थे। 

इसमें हर राज्य में एक सुरक्षा परिषद का गठन, डीजीपी, आईजी व अन्य पुलिस अधिकारियों का कार्यकाल दो साल तक सुनिश्चित करना, आपराधिक जाँच व अभियोजन के कार्यों को क़ानून-व्यवस्था के दायित्व से अलग करना और एक पुलिस शिकायत निवारण प्राधिकरण का गठन शामिल था। 

अब पुलिस कर्मियों के काम के घंटे 8 घंटे करने और साप्ताहिक अवकाश के मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या निर्देश देता है, यह तो देखने वाली बात होगी, लेकिन यदि उसने निर्देश दे भी दिया तो राज्य सरकारें इसको किस तरह से लागू कराती हैं, यह सवाल बना रहेगा।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें