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जजों के तबादले बेहतरी के लिए, बदलाव संभव नहीं: कॉलीजियम

जजों के तबादले बेहतरी के लिए, बदलाव संभव नहीं: कॉलीजियम

न्यायमूर्ति विजया ताहिलरमानी के तबादले पर उठे विवाद व हाई कोर्टों के दो अन्य जजों के तबादले के विरोध के बाद अब सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम ने एक अभूतपूर्व बयान जारी किया है।

न्यायमूर्ति विजया ताहिलरमानी के तबादले पर उठे विवाद और हाई कोर्टों के दो अन्य जजों के तबादले के विरोध के बाद अब सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम ने गुरुवार को एक अभूतपूर्व बयान जारी किया है। केंद्र सरकार को जारी किए गए बयान में कहा गया है कि जजों के तबादले के लिए इसकी सिफ़ारिश न्याय के बेहतर प्रशासन के लिए ज़रूरी थे। इसमें यह भी कहा गया है कि सिफ़ारिशों में बदलाव संभव नहीं थे और ज़रूरी होने पर इसके कारणों को सार्वजनिक करने से वह नहीं हिचकिचाएगा। 

बता दें कि अलग-अलग हाई कोर्टों के तीन जजों के तबादले को लेकर वकीलों ने विरोध किया है। सबसे ज़्यादा विरोध मद्रास हाई कोर्ट की चीफ़ जस्टिस न्यायमूर्ति विजया ताहिलरमानी के अपेक्षाकृत छोटे मेघालय हाई कोर्ट में ट्रांसफ़र को लेकर है। इस घटनाक्रम के बाद न्यायमूर्ति ताहिलरमानी ने इस्तीफ़ा दे दिया है। इसके बाद यह राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया। पूर्व में सुप्रीम कोर्ट का जज और सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम का हिस्सा रहे जस्टिस मदन बी लोकुर ने एक लेख लिखकर तबादलों की आलोचना की थी और इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। इन्हीं परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम का यह बयान आया है।

सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम ने हाल में मद्रास हाई कोर्ट की चीफ़ जस्टिस विजया ताहिलरमानी को मेघालय हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, मेघालय हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ए. के. मित्तल को मद्रास हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के रूप में तबादला किया था और गुवाहाटी हाई कोर्ट के जज उज्ज्वल भुयान को बॉम्बे हाई कोर्ट, तेलंगाना हाई कोर्ट के जज पीवी संजय कुमार को पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज विवेक अग्रवाल को इलाहाबाद हाई कोर्ट और पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट जज अमित रावल को केरल हाई कोर्ट के लिए तबादला किया था।

जस्टिस ताहिलरमानी, भुयान और संजय कुमार के तबादलों को लेकर मद्रास, गुवाहाटी और तेलंगाना हाई कोर्ट में वकीलों के संगठनों के विरोध के बीच कॉलेजियम का यह बयान आया है। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के महासचिव संजीव एस. कलगांवकर ने एक बयान में कहा, ‘न्याय के बेहतर प्रशासन के हित में आवश्यक प्रक्रिया का अनुपालन करने के बाद स्थानांतरण के लिए सिफ़ारिश की गई थी। हालाँकि, स्थानांतरण के कारणों का खुलासा करना संस्था के हित में नहीं होगा, यदि ज़रूरत पड़ी तो कॉलीजियम को इसका खुलासा करने में कोई संकोच नहीं होगा। प्रत्येक सिफ़ारिश पूरा विचार-विमर्श के बाद की गई थी और कॉलीजियम (सदस्यों) द्वारा सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की गई थी।’

अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायमूर्ति ताहिलरामनी का स्थानांतरण ज़रूरी था क्योंकि उन्होंने हाई कोर्ट में काम के घंटे कम कर दिए थे। रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति संजय कुमार का तेलंगाना हाई कोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में स्थानांतरण प्रशासनिक कारणों से तेलंगाना हाई कोर्ट के सामने आने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए ज़रूरी था। न्यायमूर्ति कुमार को स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को पाँच-सदस्यीय कॉलीजियम द्वारा अंतिम रूप दिया गया था, क्योंकि इसमें उनकी ख़ुद की सहमति तो थी ही दो अन्य सुप्रीम कोर्ट के जज, जो कॉलीजियम का हिस्सा नहीं थे लेकिन उसी राज्य से हैं, जो तबादले का समर्थन कर रहे थे। 

‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति भुयान के मामले में कॉलेजियम ने उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव के लिए मनाया था। उनकी सहमति प्राप्त करने के बाद ही कॉलीजियम ने सिफ़ारिश भेजी थी। कॉलीजियम के इस बयान से इतर सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जस्टिस लोकुर ने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे और गड़बड़ियों की ओर इशारा किया था। 

जस्टिस लोकुर ने क्या उठाए थे सवाल

जस्टिस लोकुर ने ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ में अपने लेख में कॉलीजियम की कार्यप्रणाली और जजों की नियुक्ति की तीखी आलोचना की थी। जस्टिस लोकुर ने लिखा था, ‘कॉलीजियम को विवादों की आदत रही है। लेकिन अब इसकी सिफ़ारिशों पर हमले हो रहे हैं। वे कौन-सी विवादित सिफ़ारिशें रही हैं और उनकी क्यों आलोचना हो रही है इस पर विचार करने की ज़रूरत है क्योंकि इन सिफ़ारिशों में किसी तरह की तारतम्यता नहीं दिखायी देती है, मनमाने ज़्यादा लगते हैं।’

जस्टिस लोकुर ने आगे लिखा था, ‘अब कुछ तबादलों ने बहुतों को विचलित कर दिया है। प्रशासनिक न्याय का वास्ता देकर एक हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ और योग्य जज का तबादला कर दिया गया और यह तसवीर दिखाने की कोशिश की गयी कि हाई कोर्ट में उनकी मौजूदगी प्रशासनिक न्याय के लिए उचित नहीं थी। क्या यह तबादला दंडकारी नहीं माना जाना चाहिए हाई कोर्ट की बार ने इसे इसी नज़रिये से लिया और एक हफ़्ते तक न्यायिक काम का बायकाट किया। एक दूसरे हाई कोर्ट के एक और वरिष्ठ और उतने ही योग्य दूसरे जज का भी तबादला कर दिया गया। इस हाई कोर्ट के बार ने भी न्यायिक काम का बहिष्कार करने का फ़ैसला किया। इन मामलों में सबसे ज़बर्दस्त मामला एक मुख्य न्यायाधीश को एक निहायत छोटे हाई कोर्ट में तबादले का है। हालाँकि सारे हाई कोर्ट बराबर हैं और सबका बराबर सम्मान है लेकिन इस तबादले में शालीनता का परिचय नहीं दिया गया। चाहे कुछ भी कारण रहे हों यह स्पष्ट तौर पर जज का अपमान था और उन्होंने इस्तीफ़ा देकर सही किया।’ 

जस्टिस लोकुर ने लिखा था कि हाई कोर्ट में नियुक्तियों के मामले में काफ़ी गड़बड़ियाँ हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में होने वाली नियुक्तियों पर भी सवाल उठाए थे।

जजों के तबादलों पर तीखी प्रतिक्रिया मिलने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम का बयान अप्रत्याशित है, क्योंकि अमूमन ऐसे मामलों में बयान नहीं जारी किए जाते रहे हैं। 

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