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मोदी जी, आपके ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ के वादे का क्या हुआ

मोदी जी, आपके ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ के वादे का क्या हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने आंगनबाड़ी पोषण आहार की ख़रीद के लिए निकाले गए टेंडर्स को रद्द कर दिया है। इससे बीजेपी सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह चुनावी नारा सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन जैसे ही केंद्र और राज्यों में उनकी पार्टी की सरकारें बनीं, इस नारे का अर्थ ही बदल गया।  केंद्र से लेकर राज्य की बीजेपी की सरकारों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो गए। 

महाराष्ट्र में सरकार बनते ही महिला एवं बाल कल्याण मंत्री पंकजा मुंडे पर सबसे पहले स्कूली बच्चों की आहार योजना के तहत चिक्की ख़रीदने में घोटाले का आरोप लगा। इस आरोप को लेकर विपक्ष ने काफी हंगामा किया लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई और पूरी पार्टी उन्हें बचाने में जुटी नजर आई। लेकिन अब पंकजा को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया है। यह झटका भी आंगनबाड़ी पोषण आहार की ख़रीद के लिए निकाले गए टेंडर्स को लेकर है। पंकजा बीजेपी के बड़े नेता दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी हैं।

पंकजा के विभाग ने आंगनबाड़ी पोषण आहार के लिए क़रीब 6300 करोड़ के टेंडर जारी किए थे। बताया जाता है कि ये टेंडर्स महिला बचत समूहों को तो नहीं मिले और बड़े-बड़े ठेकेदारों को मिल जाएँ, इसको लेकर निविदा प्रक्रिया और उसके लिए नियमों में कुछ बदलाव किए गए थे। 

बड़े ठेकेदारों के लिए जोड़ी शर्तें 

23 फ़रवरी 2016 को राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी और आनन-फानन में यानी 8 मार्च को ही इसकी निविदा भी निकाल दी गई। सिद्धांतत: सरकारी स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों पर पौष्टिक आहार सामग्री की आपूर्ति के काम में महिला बचत समूहों को प्रधानता दी जाती है। लेकिन पंकजा मुंडे के विभाग द्वारा जारी की गई इस निविदा में कुछ शर्तें बड़े ठेकेदारों के हित को देखते हुए जोड़ी गईं।

ऐसे में पांच साल के लिए निकाली गई इन निविदा में महिला बचत समूहों को ठेके नहीं मिले। इस निविदा प्रक्रिया के ख़िलाफ़ वैष्णो रानी महिला बचत समूह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। 

जस्टिस अरुण मिश्रा व दीपक गुप्ता की बेंच ने आदेश दिया कि ये ठेके तुरंत प्रभाव से रद्द कर दिए जाएँ। आदेश में कहा गया है कि 4 सप्ताह के अंदर नई निविदा निकाली जाए तथा उनमें महिला बचत समूहों का समावेश कराया जाए।

अदालत ने यह भी कहा कि जब तक टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती बच्चों के आहार के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। चुनाव के ठीक पूर्व सरकार के ख़िलाफ़ मिले इस आदेश ने विरोधी दलों के हाथों में नया मुद्दा दे दिया है।

वे दल और नेता जो पंकजा मुंडे के ख़िलाफ़ चिक्की घोटाले को लेकर आक्रामक थे, अब नए सिरे से हमला करेंगे और ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ का नारा देने वाली सरकार को घेरेंगे।

पंकजा मुंडे के भाई धनंजय मुंडे जो अभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में हैं और विधान परिषद में विरोधी पक्ष के नेता हैं, उनके लिए यह मनमाँगी मुराद से कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि एनसीपी ने इस बार लोकसभा चुनाव के प्रचार की शुरुआत भी पंकजा मुंडे के गढ़ बीड़ से की है।

बीड़ लोकसभा सीट से वर्तमान में पंकजा की बहन डॉ. प्रीतम गोपीनाथ मुंडे सांसद हैं। पिता के निधन के बाद हुए उपचुनाव में प्रीतम निर्वाचित हुई थीं। बीड़ में हुई एक सभा में भी धनंजय मुंडे ने पंकजा पर तंज कसा था कि वे एनसीपी को ख़त्म करने की बात करतीं हैं लेकिन एनसीपी कोई चिक्की नहीं है।

धनंजय मुंडे के बयान से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला पंकजा के लिए मुसीबत बनने वाला है और महाराष्ट्र में विरोधी दलों के लिए बड़ा मौक़ा है। इस मामले की चपेट में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस भी आएँगे क्योंकि चिक्की घोटाले में उन्होंने पंकजा का काफ़ी बचाव किया था।

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