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सुप्रीम कोर्ट ने बिल रोकने पर पूछा- गवर्नर 3 साल से क्या कर रहे थे

सुप्रीम कोर्ट ने बिल रोकने पर पूछा- गवर्नर 3 साल से क्या कर रहे थे

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के राज्यपाल पर तीखी टिप्पणियां कीं। तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फिर से सुनवाई शुरू की है। राज्यपाल आरएन रवि पर बिलों को मंजूरी देने में देरी का आरोप है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 20 नवंबर को विधेयकों को मंजूरी देने में दिखाई गई देरी पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि से सवाल किया। तमिलनाडु सरकार ने यह आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि राज्यपाल ने खुद को राज्य सरकार के लिए "राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी" के रूप में पेश किया है। सोमवार को तमिलनाडु सरकार की याचिका पर फिर से सुनवाई शुरू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, "ये बिल 2020 से लंबित थे... वह तीन साल से क्या कर रहे थे?"

अदालत ने कहा, "एक बार जब बिल दोबारा पारित हो जाते हैं, तो वे मनी बिल के समान स्तर पर होते हैं। अब राज्यपाल को एक बार फिर कोई फैसला लेना होगा।"

अदालत ने सोमवार सुबह सारे घटनाक्रम पर गौर किया और कहा, "विधानसभा ने विधेयकों को फिर से पारित कर दिया है और राज्यपाल को भेज दिया है। देखते हैं राज्यपाल क्या करते हैं," अदालत ने मामले को 1 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

सोमवार की सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और मुकुल रोहतगी (तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व) और सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता (राज्यपाल की ओर से बहस) के बीच बहस हुई। सिंघवी ने कहा कि "राज्यपाल ने बिना कोई कारण बताए 'मैंने सहमति रोक रखी है' कहते हुए बिल लौटा दिए... राज्यपाल ने संविधान के हर शब्द का उल्लंघन किया है।" इस पर सॉलिसिटर-जनरल ने जवाब दिया, "गवर्नर महज तकनीकी पर्यवेक्षक नहीं हैं।"

अदालत ने कहा कि राज्यपाल रवि ने उनके सामने पेश 181 विधेयकों में से 162 पर सहमति व्यक्त की थी। अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत किसी भी राज्य के राज्यपाल के पास तीन विकल्प होते हैं - उनके समक्ष प्रस्तुत विधेयकों पर सहमति देना, उस सहमति को रोकना या उसे भारत के राष्ट्रपति के पास भेजना।

अदालत की कड़ी टिप्पणियाँ राज्यपाल रवि द्वारा दस बिल लौटाए जाने के कुछ दिनों बाद आईं हैं। जिनमें से दो पिछली एआईएडीएमके सरकार द्वारा पारित किए गए थे। नाराज तमिलनाडु विधानसभा ने शनिवार को सभी दस विधेयकों को फिर से अपनाने के लिए एक विशेष सत्र आयोजित किया, जिन्हें उनकी सहमति के लिए राज्यपाल के पास वापस भेज दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और केरल सरकारों की इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह कानूनी मुद्दा भी उठाया था कि "क्या कोई राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा में वापस भेजे बिना उस पर सहमति रोक सकता है?" अब वही सवाल तमितनाडु के संदर्भ में भी लौट आए हैं।

तमिलनाडु सरकार ने भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपाल पर जानबूझकर विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने और "चुनी हुई सरकार को कमजोर" करके राज्य के विकास को बाधित करने का आरोप लगाया है। अदालत में अपने दृष्टिकोण में, सत्तारूढ़ डीएमके ने कहा कि राज्यपाल की कार्रवाई जानबूझकर मंजूरी के लिए भेजे गए बिलों में देरी करके "लोगों की इच्छा को कमजोर कर रही है।" 

केरल और पंजाब ने भी अपने-अपने राज्यपालों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। पिछले हफ्ते अदालत ने पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित से कहा कि वह "आग से खेल रहे हैं"। केरल की याचिका पर कोर्ट ने केंद्र और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से जवाब मांगा है।

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