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28 हफ्ते की गर्भवती बलात्कार पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट ने दी गर्भपात की इजाजत 

28 हफ्ते की गर्भवती बलात्कार पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट ने दी गर्भपात की इजाजत 

गुजरात निवासी 28 हफ्ते की गर्भवती बलात्कार पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गर्भपात की इजाजत दे दी है।  इस केस में महिला ने पहले गुजरात हाईकोर्ट से गर्भपात की अनुमति मांगी थी, तब उसका गर्भ 26 सप्ताह का था। 

गुजरात निवासी 28 हफ्ते की गर्भवती बलात्कार पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गर्भपात की इजाजत दे दी है।  इस केस में महिला ने पहले गुजरात हाईकोर्ट से गर्भपात की अनुमति मांगी थी, तब उसका गर्भ 26 सप्ताह का था। गुजरात हाईकोर्ट ने जब बिना कोई कारण बताए उसकी याचिका 17 अगस्त को खारिज कर दी तब उसने सुप्रीम कोर्ट में 19 अगस्त को याचिका लगाकर गर्भपात की इजाजत मांगी थी।

उसके केस में एक-एक दिन महत्वपूर्ण था इसको देखते हुए शनिवार 19 अगस्त को छुट्टी का दिन होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की बेंच बैठी और इस मामले की सुनवाई की गई थी। उस दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना ने इस केस में लंबी तारीख देने को लेकर गुजरात हाईकोर्ट को फटकार लगाई थी। उन्होंने अपडेट मेडिकल रिपोर्ट के साथ सोमवार को सुनवाई की बात कही थी। जिसके बाद सोमवार को हुई सुनवाई में उन्होंने पीड़िता के पक्ष में फैसला सुनाया। 

सोमवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान एक बार फिर गुजरात हाईकोर्ट की आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट के सामने गुजरात हाईकोर्ट का आदेश पेश किया गया जिसे 19 अगस्त को  ही गुजरात हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जारी किया था। जिसमें लिखा कि, उन्होंने पीड़ित पक्ष की याचिका खारिज करते हुए उनसे पूछा था कि क्या वह बच्चे को जन्म देकर उसे राज्य को सौंपना चाहती हैं। 

सुनवाई को दौरान गुजरात हाईकोर्ट का यह आदेश देख सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना काफी नाराज हो गई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश के जवाब में हाईकोर्ट से कुछ आदेश आता है, इसे हम सही नहीं मानते। उन्होंने सवाल पूछा कि गुजरात हाईकोर्ट में यह क्या हो रहा है?

लाइव लॉ वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता की गर्भपात की मांग वाली याचिका पर आदेश पारित करने के तरीके को लेकर गुजरात हाईकोर्ट की एक बार फिर आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले तो हाईकोर्ट ने सुनवाई 12 दिन के लिए स्थगित कर दी और बाद में सुनवाई को आगे बढ़ा दिया और फिर याचिका खारिज कर दिया गया। लेकिन 17 अगस्त को पारित आदेश उस तारीख को भी अपलोड नहीं किया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को उठाया। 

'स्पष्टीकरणात्मक' आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई

लाइव लॉ की रिपोर्ट कहती है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा तो सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 19 अगस्त को हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा पारित एक और आदेश के बारे में बताया गया। उस आदेश में हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि स्थगन का आदेश वकील को महिला से निर्देश प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए दिया गया, यदि वह बच्चे को राज्य की सुविधा के लिए देने को तैयार थी। 

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने हाईकोर्ट द्वारा पारित इस 'स्पष्टीकरणात्मक' आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई। सुनवाई कर रही जस्टिस नागरत्ना ने इस पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि "हम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर हाईकोर्ट के जवाबी हमले की सराहना नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट में क्या हो रहा है? क्या न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस तरह से जवाब देते हैं? हम इसकी सराहना नहीं करते हैं। वहीं सुनवाई कर रही बेंच के जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने भी इस केस में गुजरात हाईकोर्ट के इस जवाब पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कि हाईकोर्ट को 19 अगस्त को स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश पारित करने की क्या जरूरत थी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि किसी भी अदालत के किसी भी माननीय न्यायाधीश को अपने आदेश को उचित ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है।

पीड़िता को गर्भधारण के लिए मजबूर नहीं कर सकते 

इस केस की सुनवाई कर रही बेंच के जस्टिस भुइयां ने कहा कि हाईकोर्ट किसी बलात्कार पीड़िता पर अन्यायपूर्ण शर्त नहीं लगा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती है जिससे पीड़िता को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़े। जस्टिस भुइयां ने इस केस में गुजरात हाईकोर्ट को लेकर कहा कि, मुझे यह कहते हुए खेद है कि जो दृष्टिकोण अपनाया गया, वह संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है। उन्होंने पूछा कि, आप कैसे एक अन्यायपूर्ण स्थिति कायम रख सकते हैं और बलात्कार पीड़िता को गर्भधारण के लिए मजबूर कर सकते हैं? 

इस केस की सुनवाई को दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने खंडपीठ से अनुरोध किया कि वह गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश के बारे में टिप्पणी करने से बचें। इस पर जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां किसी विशेष न्यायाधीश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि जिस तरीके से इस केस को निपटा गया, उस पर हैं।

ऐसे गर्भधारण को मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया 

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि  शादी से बाहर गर्भधारण, खासतौर से यौन उत्पीड़न के बाद महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अपने आदेश में खंडपीठ ने कहा है कि जहां विवाह में गर्भधारण खुशी का मौका होता है, वहीं विवाह के बाहर विशेषकर यौन उत्पीड़न के बाद  गर्भधारण किसी भी महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकार्ता महिला को गर्भावस्था समाप्त करने की प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति देते हुए कहा कि  हम याचिकाकर्ता को अपनी प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति देते हैं। कोर्ट ने कहा कि हम उसे आज या कल सुबह 9 बजे अस्पताल में उपस्थित होने का निर्देश देते हैं ताकि प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सके। 

इस केस को स्थगित करने से बहुमूल्य समय बर्बाद हुआ 

19 अगस्त की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को फटकार लगाते हुए अपनी टिप्पणी में कहा था कि गुजरात हाईकोर्ट द्वारा शुरू में मामले को स्थगित करने से बहुत समय बर्बाद हो गया। बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने पूछा था कि यह मामला 23 अगस्त तक के लिए क्यों लटका रहा? मेडिकल रिपोर्ट 10 अगस्त को आती है और फिर 13 दिन बाद के लिए सूचीबद्ध की जाती है? कितना मूल्यवान समय बर्बाद हुआ? ऐसे मामलों में तत्कालिकता की भावना होनी चाहिए और इन मामलों में उदासीन रवैया न अपनाएं। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अजीब बात है कि हाईकोर्ट ने मामले को 12 दिन बाद (मेडिकल रिपोर्ट के बाद) 23 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया। याचिकाकर्ता जब 26 सप्ताह की गर्भवती थी तब अदालत से उसने तुरंत गर्भपात की अनुमति की मांगी थी। इसलिए, 8 अगस्त से अगली लिस्टिंग तिथि तक का बहुमूल्य समय बर्बाद हो गया। 

कोई भी कोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है

पिछली 19 अगस्त की सुनवाई को दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि पीड़िता इस समय 28 हफ्ते की गर्भवती है। हाईकोर्ट में जब उसने याचिका दायर की थी तब वह 26 हफ्ते की गर्भवती थी। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को हमारी याचिका मंजूर की और 17 अगस्त को बिना कारण बताए केस स्टेटस रिजेक्ट दिखाया गया। तब तक एक सप्ताह और बीत गया। याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कोई भी कोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है। 

इस तरह के मामले में सुनवाई की तारीख 12 दिन बाद रखने के कारण कितना कीमती समय नष्ट हो गया है। अभी तक 17 अगस्त को जारी आदेश की कॉपी भी अपलोड नहीं की गई। उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी को गुजरात हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से इस मामले में पूछताछ करने का निर्देश देते हैं। उन्होंने कहा कि ऑर्डर की कॉपी सामने होना बेहद आवश्यक है। बिना उसको देखे कैसे कोई फैसला लिया जा सकता है।   

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