+
गर्भपात आदेश को लेकर केंद्र को फटकार- 'सुप्रीम कोर्ट की हर बेंच SC है'

गर्भपात आदेश को लेकर केंद्र को फटकार- 'सुप्रीम कोर्ट की हर बेंच SC है'

एक गर्भपात आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की जमकर खिंचाई की। इसने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से पेश आने केंद्र के तौर तरीकों पर कड़ा ऐतराज़ जताया। जानिए, आख़िर क्या मामला था।

गर्भपात के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद केंद्र के रवैये से काफी अजीबोगरीब स्थिति बन गई। उस फ़ैसले के बाद केंद्र ने सीजेआई से फिर से उस मामले की सुनवाई करने की अपील की। इस रवैये पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तीखी नाराज़गी जताई और कहा कि केंद्र को यह समझना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट की हर बेंच सुप्रीम कोर्ट है। इसके साथ ही अदालत ने गर्भपात को लेकर यह भी साफ़ कर दिया कि 'भ्रूण में दिल की धड़कन चलने लगने पर कोई भी अदालत भ्रूण को ख़त्म नहीं करने दे सकती है।' हालाँकि, बेंच ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर एप्लिकेशन पर सुनवाई करते हुए मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया।

जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि उनकी न्यायिक अंतरात्मा उन्हें भ्रूण के जीवित रहने की संभावना के बारे में ताज़ा मेडिकल रिपोर्ट के मद्देनज़र गर्भावस्था को ख़त्म करने की अनुमति नहीं देती है। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि उन्हें इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। उन्होंने कहा कि असहमति को देखते हुए मामले को विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा गया है।

दरअसल, यह मामला है एक महिला की याचिका से जुड़ा हुआ। उसने मेडिकल आधार पर 26 सप्ताह के भ्रूण को ख़त्म करने की मांग की थी। उसने कहा कि वह प्रसव के बाद के संभावित अवसाद सहित स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है और तीसरे बच्चे को पालने में असमर्थ है।

अदालत ने सोमवार को भ्रूण को ख़त्म करने के परिवार के अनुरोध को स्वीकार कर लिया था। लेकिन मंगलवार को अजीब स्थिति तब बन गई जब सरकार ने सीजेआई के सामने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की एक रिपोर्ट रख दी। उस रिपोर्ट में दावा किया गया कि भ्रूण के जीवित रहने की बड़ी संभावना है। इस आधार पर केंद्र ने अदालत से अपना आदेश वापस लेने को कहा।

केंद्र के इसी रुख पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नाराज़गी जताई। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बुधवार को केंद्र की इसलिए फटकार लगाई कि जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ द्वारा पारित आदेश को वापस लेने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष इसका मौखिक रूप से ज़िक्र किया गया।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि वह बिना आवेदन दायर किए किसी अन्य पीठ द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए मुख्य न्यायाधीश से संपर्क करने वाले केंद्र की कार्रवाई से 'परेशान और चिंतित' हैं। जस्टिस नागरत्ना ने चिंता जताई कि यदि ऐसी मिसाल कायम की गई तो अदालत की व्यवस्था चरमरा जाएगी।

जस्टिस नागरत्ना ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, 'हम इसकी सराहना नहीं करते। यदि भारत संघ ऐसा करना शुरू कर देगा तो निजी पार्टियाँ भी ऐसा करने लगेंगी। हम एक अभिन्न न्यायालय हैं। सर्वोच्च न्यायालय की प्रत्येक पीठ सर्वोच्च न्यायालय है। हम एक न्यायालय हैं जो अलग-अलग पीठों में बैठे हैं।'

बता दें कि सोमवार यानी 9 अक्टूबर को न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने एक विवाहित महिला को 26 सप्ताह के भ्रूण को गर्भपात कराने की अनुमति दी थी। याचिकाकर्ता को इसके लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली से संपर्क करने का निर्देश दिया गया था। एम्स की रिपोर्ट को लेकर एएसजी भाटी ने मंगलवार को मौखिक तौर पर सीजेआई के सामने उल्लेख किया। मामले पर फिर से विचार करने के लिए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की विशेष पीठ का बुधवार को फिर पुनर्गठन किया गया।

जब विशेष पीठ ने मामले की सुनवाई की, तो न्यायमूर्ति नागरत्ना ने एएसजी भाटी से पूछा कि उन्होंने बिना कोई आवेदन या दलील दायर किए मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की मांग क्यों की?

एएसजी भाटी ने घटनाक्रम के लिए माफी मांगी, लेकिन अदालत को समझाया कि उन्हें तत्काल मुख्य न्यायाधीश के समक्ष मामले का उल्लेख करना पड़ा क्योंकि अदालत के आदेश ने डॉक्टर को कल ही गर्भावस्था को ख़त्म करने का निर्देश दिया था। 

इस पर जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि केंद्र विशेष पीठ के गठन के लिए आवेदन दे सकता था और मामले पर प्राथमिकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि आवेदन दिए जाने पर शायद कल ही पीठ गठन कर मामले का निपटारा क दिया गया होता। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें