सलमान ख़ुर्शीद की किताब: हिंदू धर्म की व्याख्या नहीं है हिंदुत्व
बीजेपी के नेता पूर्व विदेश मंत्री सलमान ख़ुर्शीद की किताब ‘सनराइज़ ओवर अयोध्या’ पर पाबंदी लगाने की माँग कर रहे हैं। सुना है उनके ख़िलाफ़ पुलिस में रिपोर्ट भी लिखवाई जा रही है। यह कहकर कि उन्होंने अपनी किताब के माध्यम से हिंदुओं के विरुद्ध घृणा प्रचार किया है, हिंदू धर्म पर हमला किया है। पिछले चार दिन से बीजेपी के प्रवक्ता, नेता इस किताब पर आक्रमण करने में व्यस्त हैं।
वे यह भी कह रहे हैं कि यह सब कुछ सोनिया गाँधी के इशारे पर किया जा रहा है। इस किताब के बहाने वे अब कांग्रेस पार्टी, सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी पर आक्रमण कर रहे हैं।
बीजेपी-संघ की सोच!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के लोग कभी मान ही नहीं सकते कि लोग अपने दिमाग से काम कर सकते हैं और वे मानते हैं कि हर चीज़ दूसरे के इशारे पर की जाती है। सलमान ख़ुर्शीद जिन्होंने पिछले दिनों अपने नेतृत्व की आलोचना की, खुद किताब नहीं लिखते, अपनी नेता के कहने पर जो लिखते हैं, लिखते हैं, यह सिर्फ़ बीजेपी के दिमाग में आ सकता है।
इसी प्रवृत्ति के कारण वे मानते हैं कि किसान अपने दिमाग से नहीं, खालिस्तानियों और माओवादियों के कहने पर आंदोलन करते हैं, छात्र भी दूसरों के उकसावे पर आंदोलन करते हैं। नागरिकता के कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन भी साजिश थी।
गुलाम दिमाग चाहता है संघ
शायद वे यह मानते नहीं, चाहते हैं कि उनके समर्थक भी ऐसा मानने लगें। क्योंकि यह उन्हें पता है कि लोग खुद सोचते हैं, खुद अपने लिए फ़ैसला लेते हैं और फिर उसके मुताबिक़ कार्रवाई भी करते हैं। लेकिन संघ या इस तरह के संगठन गुलाम दिमाग चाहते हैं। वे खुद की लोगों की सोचने और काम करने की आज़ादी न रहे, इस वजह से उस प्रकार का प्रचार करते हैं जो अभी वे सलमान ख़ुर्शीद की किताब के बहाने कर रहे हैं। आइए, किताब पर बात करें।
अयोध्या पर फ़ैसले की समीक्षा
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किताब अयोध्या में बाबरी मसजिद की ज़मीन की मिल्कियत पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की समीक्षा है। वह इस लंबे मुक़दमे के इतिहास की पड़ताल भी है। जाहिर है लेखक उसकी न्यायिक, राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि की भी चर्चा करेगा। उसे किस तरह समझा गया है, अदालतों ने भारत की मूल चेतना, आदि के संबंध में किस तरह विचार किया है, यह भी लेखक ने समझने का प्रयास किया है।
किताब अयोध्या विवाद को सुलझाने के अदालतों के प्रयास को सहानुभूतिपूर्वक समझने की कोशिश है। खुद लेखक का विचार है कि अदालत के फ़ैसले को हो सकता है, अतार्किक माना जाए, उसे इस रूप में देखना चाहिए कि वह जो हो गया, उसपर मिट्टी डालकर आगे बढ़ने की दावत है। वह हिंदुओं और मुसलमानों को बैर भुलाकर आपसदारी बढ़ाने के तरीकों की खोज करने का आह्वान करती है।
सलमान खुर्शीद इस क्रम में राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र में विभिन्न धार्मिक समुदायों के आपसी रिश्तों की पेचीदगी को विश्लेषित करना चाहते हैं। इसमें वे धर्मों के इतिहास को भी समझना चाहते हैं। इस क्रम में वे हिंदू धर्म का अत्यंत आदरपूर्वक उल्लेख करते हैं। उसके विभिन्न रूपों की भी सम्मानपूर्वक चर्चा करते हैं।
सामने आया हिंदुत्व
किताब में एक जगह वे अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं कि इस विशाल हिंदू धर्म को पीछे धकेलकर हिंदुत्व सामने आ गया है जो अनुदार है, असहिष्णु है, आक्रामक है और हिंसक है। यहीं पर वे हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम से करते हैं।
हिंदू धर्म के प्रति आदर
इसे लेकर बीजेपी के लोग उत्तेजना भरे बयान दे रहे हैं। इसे हिंदू धर्म का अपमान बतला रहे हैं। किताब पढ़ने वाला कोई भी शख़्स देख सकता है कि सलमान ख़ुर्शीद के मन में हिंदू धर्म को लेकर कितना आदर है। वे आलोचना हिंदुत्व की कर रहे हैं।
इस अंतर पर काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है। हिंदुत्व में हिंदू शब्द के अलावा हिंदू धर्म का कुछ भी नहीं है। विनायक दामोदर सावरकर ने बहुत चतुराई से यह अवधारणा विकसित की। लेकिन उन्होंने भी बहुत स्पष्ट कहा कि हिंदुत्व हिंदू धर्म से काफ़ी विशाल है।
सावरकर ने खुद ही सावधान किया कि हिंदुत्व और हिंदू धर्म का घालमेल नहीं करना चाहिए।
देखिए, इस विषय पर चर्चा-
सावरकर को जवाब दे बीजेपी
हिंदुत्व हिंदू धर्म नहीं है, यह जब इसके प्रवर्तक सावरकर ही कह गए तो पहले तो बीजेपी को बहस उनसे करनी चाहिए। उनकी किताब का जवाब लिखना चाहिए। हिंदुत्व भारत राष्ट्र की एक समझ है, हिंदू धर्म की नहीं। हिंदुत्व भारत की, भारत में रहने वाले की परिभाषा तय करने का सावरकर का प्रयास है। वह हिंदू धर्म की व्याख्या नहीं है।
हिंदुत्व हिंदुओं से ज़्यादा दूसरे धर्मावलम्बियों के विषय में चिंतित है। वह यह कहता है कि भारत पर पहला अधिकार उन्हीं का है जिनकी पुण्यभूमि भी यही है। ईसाइयों और मुसलमानों की पुण्यभूमि चूँकि भारत से बाहर है, इसलिए यहां उनका अधिकार बराबर का नहीं होगा।
यह राष्ट्र और नागरिकता की ऐसी परिभाषा है जिसे अगर दूसरे देशों पर लागू किया जाए तो ब्रिटेन, अमेरिका, श्रीलंका, बर्मा, स्वीडन में रहने वाले हिंदुओं का अधिकार उन देशों पर बराबरी का नहीं रह जाएगा। क्योंकि हिंदुओं की पुण्यभूमि तो उन देशों से बाहर, भारत में है। फिर वे वोट नहीं दे पाएँगे, न दूसरे नागरिक अधिकारों पर दावा कर पाएँगे जो अभी उन्हें वहाँ के संविधानों ने दे रखे हैं और जिनका वे उपयोग करते हैं।
वहाँ के ईसाई भी हिंदुत्व के राष्ट्रवाद की विचारधारा को अगर मान लें तो सारे ग़ैर ईसाइयों का हक़ उनसे कम कर दिया जाएगा।
हिंदुत्व जितना हिंदुओं के विषय में नहीं उतना वह ग़ैर हिंदुओं के भारत से रिश्ते के विषय में है। वह ग़ैर हिंदुओं के भारत से रिश्ते, उनकी नागरिकता, आदि को परिभाषित करता है। आप अगर सावरकर को पढ़ें तो देखेंगे कि वे धर्म की चर्चा कर ही नहीं रहे हैं।
हिंदुत्व भारत तक सीमित है। वह हिंदुओं को भी भारत में सिकोड़ देना चाहता है। वे अगर इस विचारधारा को मान लेंगे तो पूरी दुनिया उन्हें शक की निगाह से देखने लगेगी।
स्वयंसेवक बनाने की मंशा
जो हिंदुत्व और हिंदू धर्म का अंतर मिटा देना चाहते हैं, वे हिंदू शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसा सावरकर ने चालाकी से किया था। हिंदुत्ववादी ही हिंदू है, यह कहने वाले सारे हिंदुओं को अपनी मुसलमान और ईसाई विरोधी राजनीति का सिपाही बनाना चाहते हैं। हिंदू अपने देवी-देवताओं की आराधना, अपने धर्म का अभ्यास अपने अलग-अलग तरीक़ों से करने की जगह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हो जाएँ, यह उनकी मंशा है।
हिंदू धर्म की अवस्था हिंदुत्व नहीं है, वैसे ही जैसे सारे हिंदू स्वयंसेवक नहीं हैं।