सुधा भारद्वाज, फरेरा और गोंजाल्विस की ज़मानत याचिका ख़ारिज़
एल्गार परिषद मामले में सीपीआई माओवादी से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा और वरनों गोंजाल्विस की ज़मानत याचिका को बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को ख़ारिज़ कर दिया। उनको पुणे पुलिस द्वारा अगस्त 2018 में गिरफ़्तार गिया गया था।
ज़मानत के लिए लगाई गई याचिका पर पिछले हफ़्ते ही हाई कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछले साल पुणे की विशेष अदालत द्वारा ज़मानत याचिक ख़ारिज़ कर दिए जाने के बाद भारद्वाज ने बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर रुख किया था।
यह मामला 2018 के भीमा कोरेगाँव हिंसा से जुड़ा है। हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे और हिंसा हुई थी। इसी हिंसा के मामले में कार्रवाई की गई और इस मामले में जुड़े होने को लेकर जन कवि वर वर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, वरनों गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को अभियुक्त बनाया गया।
'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, भारद्वाज के वकील युग चौधरी ने कोर्ट से कहा था कि भारद्वाज के घर की तलाशी लेने वाले पुलिस अधिकारी के अलावा किसी भी गवाह का बयान चार्जशीट में ऐसा नहीं है जिसे अपराधी साबित करने वाला कहा जाए। उन्होंने कहा कि जिन काग़जातों के आधार पर पुलिस ने उनको गिरफ़्तार किया था वे उनके कम्प्यूटर से नहीं निकाले गए थे।
फरेरा की ज़मानत याचिका में वकील सुदीप पसबोला ने दलील दी कि फरेरा की गिरफ़्तारी सिर्फ़ इसलिए की गई थी कि जान पहचान एक दूसरे आरोपी सुरेंद्र गडलिंग के साथ थे और वह इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लायर्स के सदस्य थे।
सरकारी वकील अरुण पाई ने ज़मानत याचिका का यह कह कर विरोध किया कि तीनों अभियुक्त ऐसे समूहों के सदस्य हैं जिन्हें प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी) फ़ंड मुहैया कराती है। पाई ने कहा कि जाँच अभी भी चल रही है और उन्हें ज़मानत देने से जाँच प्रभावित होगी।