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उम्मीद की एक किरण है राजस्थान के खजूरी गाँव की कहानी! 

उम्मीद की एक किरण है राजस्थान के खजूरी गाँव की कहानी! 

राजस्थान के सरकारी स्कूल में कुछ टीचरों को धर्मांतरण का आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया। राजस्थान के शिक्षा मंत्री और पूरी सरकार ने इस मामले को साम्प्रदायिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन स्कूल की छात्राओं ने आगे आकर सारे आरोपों को बेहूदा बताते हुए प्रदर्शन किया। स्तभंकार अपूर्वानंद का कहना है कि जिस तरह स्कूल की छात्राएं और बाकी टीचर विरोध में सामने आए, वो संविधान से चलने वाले भारत में एक उम्मीद की तरह है। पढ़िए यह विचारोत्तेजक लेखः 

क्या अब भारत के मुसलमानों को अपना जीवन सामान्य तरीक़े से बिताने के लिए ऐसे सदाशयी हिंदुओं की ज़रूरत पड़ती रहेगी जिनमें हिंदुत्ववादियों के सामने खड़े होकर उनका विरोध करने का साहस हो? राजस्थान के कोटा में खजूरी गाँव में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के हिंदू विद्यार्थियों द्वारा अपने मुसलमान अध्यापकों के निलंबन के ख़िलाफ़ किए गए प्रदर्शन और आंदोलन के बाद यह सवाल मन में उठा। 

विद्यालय के 3 मुसलमान अध्यापकों पर इल्ज़ाम लगाया गया कि वे विद्यार्थियों को नमाज़ पढ़वाते हैं और धर्मांतरण की साज़िश करते हैं। हिंदुत्वत्ववादी संगठनों के संयुक्त मंच ’सर्व हिंदू समाज’ ने, जो हिंदुत्वत्ववादी संगठनों का  संयुक्त मंच है, राज्य शिक्षा मंत्री को दिए ज्ञापन में आरोप लगाया कि ये अध्यापक ‘इस्लामी जिहादीहरकत’, ‘धर्मांतरण’ और ‘लव जिहाद’ में संलग्न थे। 

कहा गया कि इन अध्यापकों ने गाँव की एक हिंदू लड़की को मुसलमान बनाकर एक मुसलमान लड़के से उसकी शादी से करने का षड्यंत्र किया है। इस मंच के साथ मिलकर लड़की के घरवालों ने इन अध्यापकों को धमकाया। इस आरोप का आधार सिर्फ़ एक है कि लड़की के नाम के आगे धर्म वाले खाने में स्कूल के रजिस्टर में इस्लाम लिखा है। कहा जा रहा है कि इससे साबित होता है कि उसे स्कूल में मुसलमान बनाया गया।  

लड़की ने बयान जारी करके बतलाया कि वह बालिग़ है और शादी उसकी मर्ज़ी की है। यह भी कि वह मुसलमान नहीं बनी है, हिंदू ही है। लेकिन आरोप दुहराया जाता रहा। यहाँ तक कि राजस्थान के शिक्षा मंत्री भी इस अभियान में शामिल हो गए। अध्यापकों को निलंबित करने का आदेश आनन फ़ानन में दे दिया गया और जाँच बिठा दी गई। स्कूल के एक लड़के, प्रवीण गौचर का बयान भी दिखलाया जाने लगा कि इन अध्यापकों ने उसे नमाज़ पढ़ने को मजबूर किया। उसने यह भी कहा कि वे स्कूल में नमाज़ पढ़वाते थे और धर्मांतरण में लिप्त थे।  

इतनी दूर तक पढ़ने के बाद आपको कोई हैरानी न होगी। यही आज के भारत में स्वाभाविक है। लेकिन इसके बाद जो घटित हुआ वह एक एक लिहाज़ से अप्रत्याशित और अनहोनी है। स्कूल के छात्रों ने अधिकारियों के सामने अपने अध्यापकों को दंडित किए जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। वे कह रहे हैं कि उनके अध्यापकों पर लगाए गए इल्ज़ाम बेबुनियाद और बेहूदा हैं। यहाँ तक कि जिस लड़के ने कैमरे पर कहा था कि उसे नमाज़ पढ़ने को बाध्य किया गया उसने आगे आकर कहा कि उसका वह बयान झूठा था और उसे ऐसा करने को मजबूर किया गया था। स्कूल के प्राचार्य और बाक़ी अध्यापकों ने भी अपने सहकर्मी अध्यापकों का साथ दिया है। वे इन आरोपों को निराधार बतलाते हैं। लड़की की शादी का स्कूल और इन अध्यापकों से कोई लेना देना नहीं। स्कूल के रजिस्टर में उसके नाम के आगे इस्लाम लिखा जाना सिर्फ़ चूक थी। 

यह कहा जाना ज़रूरी है कि छात्रों में बहुसंख्या हिंदुओं की है और अध्यापक सारे के सारे हिंदू हैं। इस वजह से इन प्रताड़ित मुसलमान अध्यापकों के लिए उनके खड़े होने का मूल्य कुछ  और ही है। मुसलमान के लिए हिंदू आवाज़ उठाए, यह आज के भारत में अपवाद और आश्चर्यजनक है। लेकिन खजूरी के साधारण हिंदू छात्रों और अध्यापकों ने दिखलाया कि ऐसा करना बहुत आसान है। इसके लिए सिर्फ़ सही और ग़लत का विचार होना काफ़ी है। झूठ को झूठ और सच को सच कहना ही काफी है।  


लेकिन जैसा हमने पहले लिखा, यह आज के भारत में अपवाद है, नियम नहीं। इसीलिए जब खजूरी में छात्रों ने यह प्रदर्शन किया तो सबने अचरज से देखा कि क्या यह भी संभव है। क्या ऐसे हिंदू आज भी भारत में हैं जिन्हें न सिर्फ़ मुसलमानों के साथ नाइंसाफ़ी बुरी लगती है बल्कि वे उसके ख़िलाफ़ लड़ने  की ज़हमत भी उठाने को तैयार हैं?

ऐसा करना आसान नहीं है। ‘सर्व हिंदू समाज’ , बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी के सामने खड़ा होना आसान नहीं क्योंकि इनके विचार के पीछे राज शक्ति भी है। प्रायः पुलिस और प्रशासन भी इन्हीं के साथ है। यह उस लड़के के बयान से ज़ाहिर हुआ जिसने पहले कहा था कि इन अध्यापकों ने उसे नमाज़ पढ़ने को मजबूर किया था। बाद में जब उसने यह क़बूल किया कि उसने झूठा बयान दिया था, तब उसे आशंका थी कि उसके साथ या उसके परिवार के साथ कुछ हो सकता है। और कुछ नहीं तो उसे या उसके परिवार को किसी मामले में फँसा दिया जा सकता है। फिर भी उसने कहा कि उसने अपनी गलती समझ ली हैऔर वह यह जानता है कि सच का रास्ता मुश्किल होता है और उसके लिए क़ीमत देनी पड़ती है। वह कभी भी ग़लत और झूठ के पक्ष में नहीं हो सकता। 

हम जानते हैं कि गुंडों के सामने भले लोग हमेशा खड़े नहीं हो सकते। वे उनके अन्याय से असहमत हो सकते हैं, दुखी हो सकते हैं लेकिन उसका प्रतिवाद करने की क़ीमत बहुत ज़्यादा है। इसीलिए मुसलमान अध्यापकों को दंडित किए जाने के बाद उनके पक्ष में जो कुछ उनके छात्रों और सहकर्मियों ने किया, वह हर जगह हो सके, यह ज़रूरी नहीं।

इस वजह से यह सवाल उठता है कि क्या मुसलमानों को सामान्य तौर पर जीवन बिता सकें, इसके लिए उनके पड़ोसियों को असाधारण रूप से विवेकसंपन्न और साहसी होना होगा। कुछ महीना पहले एक मुसलमान अध्यापक ने मुझे दिल्ली में अपने मकान की तलाश की कहानी सुनाई थी। मुसलमान होने की वजह से उन्हें मकान मिलने में कितनी मुश्किल आ रही है, उन्होंने बतलाया। जिस मकान में वे पहले थे वह एक हिंदू का ही था। उन्होंने बतलाया कि उनके मकान मालिक पर काफी दबाव डाला गया कि वे उन्हें मकान से निकाल दें, धमकी दी गई कि ऐसा न करने पर उनके ख़िलाफ़ पुलिस ने रपट करा दी जाएगी कि उन्होंने एक आतंकवादी को मकान देकर सबके लिए ख़तरा पैदा कर दिया है। लेकिन हिंदू मकान मालिक अडिग रहे। क्या हर हिंदू मकान मालिक उनकी तरह का हो सकता है?

हम यह भी कह सकते हैं कि आख़िर हम अपने पड़ोसियों और सहकर्मियों की सदाशयता के बल पर ही कहीं भी इत्मीनान से रह सकते हैं। जब मुल्क में ऐसे संगठन मज़बूत हो जाएँ जो इसी ताक में रहते हैं कि किस बहाने से मुसलमानों का जीना दूभर किया जाए, किस तरीक़े से उन्हें प्रताड़ित किया जाए तब उनके लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी बिताना मुश्किल से मुश्किलतर होता जाएगा। जब ये संगठन सरकार का हिस्सा हों तो हम समझ सकते हैं मुसलमानों को किसी प्रकार के राजकीय संरक्षण की आशा तो नहीं ही करनी चाहिए। 

खजूरी गाँव की इस घटना के ठीक बाद अलवर की एक घटना का पता चला। एक लड़की ने आरोप लगाया कि उस पर दो लड़कियाँ धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाल रही थीं और एक मुसलमान से शादी करने को मजबूर कर रही थीं। पुलिस ने फौरन उन तीनों को गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस अधिकारी ने कहा कि यह तो जाँच का विषय है कि कहीं यह आरोप किसी दूसरी अदावत के कारण तो नहीं लगाया गया। लेकिन जाँच के पहले ही उन्होंने मुसलमान लड़कियों और लड़के को गिरफ़्तार ज़रूर कर लिया। जैसे खजूरी में आरोप लगते ही मुसलमान अध्यापकों को निलंबित कर दिया गया। क्या खजूरी में मुसलमानों को हिंदुओं का जो साथ मिला, वह अलवर में इन 3 मुसलमानोंको मिल पाएगा? जवाब हमें मालूम है।

फिर भी हमें कहना होगा कि खजूरी के हिंदू विद्यार्थियों ने और अध्यापकों ने न्याय की चेतना को जिस सक्रियता से व्यक्त किया है अभी देश में हर जगह हिंदुओं में उस न्याय बोध की उसी सक्रियता की सख़्त ज़रूरत है।     

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