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केंद्र को झटकाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा- खनिजों पर रॉयल्टी, टैक्स नहीं है, राज्यों को अधिकार है

केंद्र को झटकाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा- खनिजों पर रॉयल्टी, टैक्स नहीं है, राज्यों को अधिकार है

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को खनिज-भूमि पर टैक्स लगाने की राज्यों की पावर को बरकरार रखा। जानिए पूरा मामला।

सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने गुरुवार को अपने 1989 के संविधान पीठ के फैसले को "गलत" बताते हुए कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी टैक्स नहीं है। शीर्ष अदालत ने 8:1 के बहुमत के फैसले में यह भी कहा कि संसद के पास संविधान के प्रावधानों के तहत खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने की पावर नहीं है। भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सिर्फ जस्टिस बी वी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया है। लेकिन 8 जज पूरी तरह फैसले से सहमत हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है और केंद्र के लिए झटका है। क्योंकि खनिज रॉयल्टी के मामले में केंद्र-राज्य संबंध को अदालत ने शीशे की तरह साफ कर दिया है।


बेंच इस बेहद विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी कि क्या खनिजों पर देय रॉयल्टी खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत एक टैक्स है, और क्या सिर्फ केंद्र के पास इस तरह की वसूली करने की पावर है या राज्यों के पास भी अपनी खनिज वाली जमीनों पर लेवी टैक्स लगाने का अधिकार है। 

1989 में, सात जजों की बेंच ने माना था कि केंद्र के पास संघ सूची (सूची I) की प्रविष्टि 54 के तहत अधिनियमित कानूनों के अनुसार "खानों और खनिज विकास के विनियमन" पर पहला अधिकार है। राज्यों के पास एमएमडीआरए के तहत केवल रॉयल्टी लेने की पावर है और वे खनन और खनिज विकास पर कोई और टैक्स नहीं लगा सकते हैं। उस समय बेंच ने कहा था कि “हमारी राय है कि रॉयल्टी एक टैक्स है, और रॉयल्टी पर टैक्स होने के कारण रॉयल्टी पर उपकर राज्य विधानमंडल नहीं लगा सकता। क्योंकि इसे केंद्रीय अधिनियम कवर करता है।”

लाइव लॉ और बार और बेंच के अनुसार, सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, "खनन पट्टे से रॉयल्टी प्रवाहित होती है, यह आम तौर पर निकाले गए खनिजों की मात्रा के आधार पर तय की जाती है। रॉयल्टी की बाध्यता पट्टेदार और पट्टेदार के बीच अनुबंध की शर्तों पर निर्भर करती है और भुगतान सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं है बल्कि यह विशेष उपयोग शुल्क के लिए है।"

सीजेआई ने कहा, "सरकार को देय अनुबंध भुगतान को टैक्स नहीं माना जा सकता... मालिक खनिजों से अलग होने के लिए रॉयल्टी लेता है... रॉयल्टी को लीज डीड द्वारा बंद कर दिया जाता है और टैक्स लागू किया जाता है। हम मानते हैं कि इंडिया सीमेंट मामले में रॉयल्टी को टैक्स बताने वाला फैसला सही नहीं है।"

उन्होंने कहा कि "यदि संसद के पास खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने की कोई विधायी क्षमता नहीं है.. तो क्या वह उस पर टैक्स लगाने के लिए अवशिष्ट अधिकारों का उपयोग कर सकती है.. इसे नेगेटिव माना जाएगा। कराधान का क्षेत्र नियामक कराधान प्रविष्टियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।" 

सीजेआई ने कहा, जब तक संसद कोई सीमा नहीं लगाती, खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का राज्य का पूर्ण अधिकार अप्रभावित रहेगा।

सीजेआई ने कहा, "संसद वैधानिक उपकरणों के माध्यम से सूची 2 की प्रविष्टि 50 के तहत लिमिट जरूर लगा सकती है। एमएमआरडीए अधिनियम की योजना को राज्यों के टैक्स अधिकारों पर प्रभाव डालने के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता है।"

"रॉयल्टी एक टैक्स है" को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद पुराना है । लेकिन 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के नौ-जजों की बेंच ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। राज्यों को  राहत मिल गई है वे टैक्स की वसूली कर सकते हैं। हाल ही में तमाम राज्यों में माइनिंग को लेकर आरोप लगे हैं। 

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