भारत में हिचक क्यों? कोरोना की वजह से कई देशों में टल चुके हैं चुनाव
चुनाव आयोग ने तय वक़्त पर ही पांच राज्यों के चुनाव कराने के संकेत दिए हैं। हालाँकि इस पर आख़िरी फ़ैसला लखनऊ में चुनावी तैयारियों और कोरोना के हालात का जायज़ा लेने के बाद ही किया जाएगा। बसपा प्रमुख मायावती ने भी चुनाव आयोग से तय वक़्त पर ही चुनाव कराने की मांग की है। वहीं छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया है कि बीजेपी हार से बचने के लिए यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव टालने की साज़िश कर रही है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग को देश और उत्तर प्रदेश में तेज़ी से फैलते कोरोना के मद्देनज़र कुछ महीनों के लिए चुनाव टालने पर विचार करने को कहा था। हाईकोर्ट ने कहा कि संभव हो सके तो फ़रवरी में होने वाले चुनाव को एक-दो माह के लिए टाल दें, क्योंकि जीवन रहेगा तो चुनावी रैलियाँ, सभाएँ आगे भी होती रहेंगी। जीवन का अधिकार हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी दिया गया है। ऐसे में ये सवाल अहम हो गया है कि भारत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव टालने को लेकर हिचक क्यों है?
कोरोना के चलते दुनिया में कहाँ-कहाँ टले चुनाव
‘इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल एसिस्टेंट’ (IDEA) ने कोरोना की दस्तक के बाद दुनियाभर में चुनावों पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया है। यह अध्ययन 21 फ़रवरी 2020 से 21 नवंबर 2021 के बीच किया गया है। इसमें यह जानने की कोशिश की गई कि कोरोना काल में किस देश में चुनाव हुए और कहाँ टाले गए। इसके मुख्य निष्कर्ष ये हैं-
- दुनिया भर में 79 देशों ने कोरोना की वजह से राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय चुनाव टाले हैं। 42 देशों में राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह टाला गया है।
- कोरोना के बावजूद 146 देशों में चुनाव कराए गए हैं। इनमें से 124 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है।
- 57 देशों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनाव हुए हैं। हालाँकि पहले इन्हें कोरोना के चलते टाला गया था। 29 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है।
- रूस में संवैधानिक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह 22 अप्रैल 2020 को होना था। इसे 1 जुलाई 2020 तक टाला गया। रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने 3 अप्रैल 2020 को 5 अप्रैल से 23 जून के बीच होने वाले सभी चुनाव स्थगित कर दिए। रूस में इस दौरान स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले 94 चुनावों को टाला गया।
- बोलीविया में आम चुनाव 3 मई 2020 को होने थे। पहले इन्हें 6 सितंबर 2020 तक के लिए और फिर 18 अक्टूबर 2020 तक टाला गया। क्षेत्रीय चुनाव मार्च 2020 से टालकर आम चुनावों के साथ कराए गए।
- ईरान में संसदीय चुनावों का दूसरा दौर 17 अप्रैल 2020 से 11 सितंबर 2020 तक टाला गया।
- सीरिया में संसदीय चुनाव 13 अप्रैल 2020 से 19 जुलाई 2020 तक टाले गए।
- श्रीलंका में संसदीय चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे। लेकिन अगस्त 2020 में कराए गए।
- ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स राज्य के चुनाव पहले सितंबर 2020 से सितंबर 2021 तक और फिर दिसंबर 2021 तक और अब मई 2022 तक के लिए टाल दिए गए।
- इंडोनेशिया में स्थानीय चुनाव सितंबर 2020 से दिसंबर 2020 तक टाले गए।
- चिली में संवैधानिक जनमत संग्रह 26 अप्रैल 2020 को होना था। पहले इसे 25 अक्टूबर 2020 टाला गया। संविधान आयोग के चुनाव 10-11 अप्रैल 2021 से 15-16 मई 2021 तक के लिए टाले गए।
- सोमालिया में संसदीय चुनाव 27 नवंबर 2020 को और राष्ट्रपति का चुनाव 8 फ़रवरी 2021 से पहले होना था। इन्हें कई बार टालकर 25 जुलाई और 10 अक्टूबर 2021 को कराया गया।
- ब्राजील में नगरपालिका चुनाव अक्टूबर 2020 को होने थे। इन्हें नवंबर 2020 तक टाला गया।
भारत में क्यों नहीं टल सकते चुनाव?
सवाल यह पैदा होता है कि अगर दुनिया भर में कोरोना के चलते चुनाव टाले जा सकते हैं तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है। इसकी रक्षा के लिए अगर चुनाव टालना ज़रूरी हो तो ये फ़ैसला करने में हिचकना नहीं चाहिए। लेकिन जिस तरह चुनाव और राजनीतिक दल तय वक़्त पर सही चुनाव कराने पर अड़े हैं उसे देखते हुए लगता है कि इन्हें जनता की कोई चिंता ही नहीं है। देश में कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे चुकी है। ज़्यादातर राज्यों में रात का कर्फ्यू और दिन में भी कई तरह की पाबंदियाँ लगाई जा चुकी हैं। ऐसे में चुनाव कराना लोगों के जीवन को ख़तरे में डालना होगा।
हाल ही में यूपी में चुनावी रैलियों में उमड़ रही हज़ारों-लाखों की भीड़ ने चिंता बढ़ाई है। कुछ दिन पहले पीएम मोदी ने अपनी एक रैली में भीड़ को देखकर ख़ुशी जताई थी। शाम को उन्होंने ओमिक्रॉन से बिगड़ते हालात का जायज़ा लेने के लिए अहम बैठक की थी।
ऐसा पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान भी हुआ था। हाईकोर्ट ने चुनाव टालने की नसीहत देते वक़्त याद दिलाया था कि कोरोना की दूसरी लहर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और यूपी के पंचायत चुनाव के दौरान लाखों लोग कोरोना संक्रमित हुए थे। बड़े पैमाने पर मौतें भी हुई थीं। अब चुनाव होने पर दोबारा भी ऐसा हो सकता है। हाई कोर्ट ने कहा है कि रैलियों में उमड़ती भीड़ को समय से नहीं रोका गया तो नतीजे दूसरी लहर से भी ज़्यादा भयावह हो सकते हैं।
क्या हुआ था पिछले विधानसभा चुनावों में?
इसी साल मार्च-अप्रैल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा और यूपी में पंचायत चुनाव कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुए थे। चुनाव वाले राज्यों में रैलियों में उमड़ी भीड़ की वजह से कोरोना तेज़ी से फैला था। चुनाव शुरू होने के दो हफ्तों के भीतर इन राज्यों में 100 से लेकर पांच सौ फ़ीसदी से ज़्यादा मामले बढ़े थे। उस समय के आंकड़े बेहद डरावने हैं। चुनाव के वक़्त 1 से 14 अप्रैल तक असम में 532%, पश्चिम बंगाल में 420%, पुडुचेरी में 165%, तमिलनाडु में 159%, और केरल में 103% कोरोना के मामले बढ़ गए थे। पांचों राज्यों में मौत का आँकड़ा भी औसतन 45% तक बढ़ा था।
क्या हुआ था यूपी के पंचायत चुनाव में?
यूपी में पंचायत चुनाव टालने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। तब हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को 30 अप्रैल से पहले हर हाल में चुनाव कराने का आदेश दिया था। इन चुनावों में ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारी बड़े पैमाने पर कोरोना से संक्रमित हुए थे। बड़े पैमाने पर इनकी मौत भी हुई थी। अकेले यूपी के शिक्षक संघ ने 1,621 शिक्षकों की मौत का दावा किया था। बाक़ी सरकारी कर्मचारियों को मिलाकर ये आंकड़ा दो हज़ार से ऊपर पहुंचता है।
हाई कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वालों के परिवार वालों को 30-30 लाख रुपए का मुआवज़ा देने का फ़ैसला करना पड़ा। हालांकि सरकार ने मौतों का कोई आधिकारिक आँकड़ा जारी नहीं किया।
किन परिस्थितियों में टाले जा सकते हैं चुनाव?
जनप्रतिनिधित्व क़ानून में चुनाव टालने या रद्द करके के कई प्रावधान हैं। किसी उम्मीदवार की मौत, पैसों के दुरुपयोग और बूथ कैप्चरिंग होने पर किसी भी सीट पर चुनाव रद्द हो जाता है। चुनाव के दौरान अगर कहीं दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति पैदा हो जाए तो वहां चुनाव टाला जा सकता है। जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 57 में यह प्रावधान है। इसके तहत दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में पीठासीन अधिकारी चुनाव टालने का फ़ैसला ले सकते हैं। अगर पूरे राज्य में या बड़े स्तर पर ऐसे हालात पैदा हो जाएं तो चुनाव आयोग ये फ़ैसला ले सकता है।
पहले कब-कब टले चुनाव?
देश में पहले भी कई बार चुनाव टले हैं। 1991 में पहले चरण की वोटिंग के बाद भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। इसके बाद चुनाव आयोग ने अगले चरणों के मतदान को क़रीब एक महीने के लिए टाल दिया था। 1991 में ही पटना लोकसभा में बूथ कैप्चरिंग होने पर आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया था। 1995 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग के मामले सामने आने के बाद 4 बार तारीख़ें आगे बढ़ाई गई थीं। बाद में बड़े पैमाने पर अर्ध सैनिक बलों की निगरानी में कई चरणों में चुनाव हुए थे।
अगर कोरोना की दूसरी लहर के बीच चुनाव कराना ग़लती थी तो तीसरी लहर की दस्तक के बाद इस ग़लती को दोहराना अक़्लमंदी नहीं होगी। अभी चुनावों की तारीख़ों का ऐलान नहीं हुआ है। लिहाज़ा चुनाव टालने में कोई संवैधानिक अड़चन नहीं आएगी। विशेष परिस्थितियों में कुछ महीनों के लिए चुनाव को टाला जा सकता है। सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस बारे में फ़ैसला किया जा सकता है कि चुनाव टलने की स्थिति में विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया जाए या फिर चुनाव वाले राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। इससे सरकार और चुनाव आयोग को छह महीने का वक़्त मिल जाएगा। कोरोना की तीसरी लहर गुज़रने के बाद पांचों राज्यों में चुनाव कराए जा सकते हैं।