सुप्रीम कोर्ट जज से देर रात फ़ोन जाने के बाद रिहा हुए फ़ारूक़ी
स्टैंड अप कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत तो शुक्रवार को ही दे दी थी लेकिन वह जेल से रिहा शनिवार देर रात किए जा सके। वह भी तब जब सुप्रीम कोर्ट से फ़ोन गया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को देखने के लिए वेबसाइट को देखें। उस आदेश में मुनव्वर के प्रोडक्शन वारंट पर रोक लगाई गई थी और उन्हें अंतरिम ज़मानत दी गई दी थी। इस मामले में उनकी ज़मानत के लिए कम से कम तीन बार याचिकाएँ खारिज कर दी गई थीं।
इस मामले में इंदौर की महापौर और स्थानीय बीजेपी विधायक मालिनी गौड़ के पुत्र एकलव्य सिंह गौड़ ने शिकायत दर्ज कराई थी कि फ़ारूक़ी ने इंदौर में 1 जनवरी को आयोजित शो में हिंदू देवी-देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
इसके बाद फ़ारूक़ी को चार अन्य लोगों के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया था। इन सभी पर यह भी आरोप था कि इन्होंने गृह मंत्री अमित शाह पर भी भद्दी टिप्पणियां की थीं और चुटकुले बनाए थे।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद फ़ारूक़ी ने जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रूख़ किया था।
आख़िरकार शनिवार देर रात को फ़ारूक़ी को इंदौर जेल से रिहा किया गया। हालाँकि, शुक्रवार को ज़मानत मिलने के साथ ही कुछ घंटों के अंदर उन्हें रिहा किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
पहले जेल के अधिकारियों ने यह कहते हुए रिहा करने से इनकार कर दिया था कि उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रयागराज से पहले ही जारी किए गए प्रोडक्शन वारंट पर रोक की आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है।
इस मामले में इंदौर सेंट्रल जेल के अधीक्षक, राजेश बांगडे ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'हमें पहले आदेश नहीं मिला था, हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने इंदौर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को फ़ोन किया और उनसे वेबसाइट पर यह देखने के लिए कहा कि क्या आदेश अपलोड किया गया है। यदि यह अपलोड किया है तो इसकी अनुपालना के लिए कहा। हमने वेबसाइट देखी और उसे अपलोड किया गया था और इसलिए उन्हें रात 11 बजे रिहा किया गया।'
बता दें कि जस्टिस आरएफ़ नरिमन के नेतृत्व वाली बेंच ने शुक्रवार को इंदौर के तुकोगंज पुलिस ताने में दर्ज केस के मामले में अंतरिम ज़मानत दी थी और उत्तर प्रदेश के जॉर्ज टाउन पुलिस थाने में दर्ज केस के मामले में प्रोडक्शन वारंट पर रोक लगा दी। इसी प्रोडक्शन वारंट के मामले को लेकर जेल अधिकारियों ने कहा था कि प्रयागराज मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से रोक लगाए जाने के मामले की आधिकारिक जानकारी नहीं मिली थी।
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा था कि कॉमेडियन के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर स्पष्ट नहीं है और फ़ारूक़ी की गिरफ़्तारी से पहले नोटिस देने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। फ़ारूकी इस साल 2 जनवरी से जेल में थे।
जस्टिस आरएफ़ नरीमन ने कहा, ‘क्या यह बात सही है कि उसे (फ़ारूक़ी को) गिरफ़्तार करने से पहले अरनेश कुमार के मामले में फ़ैसले के नियमों का पालन नहीं किया गया। एफ़आईआर में जो आरोप लगाए गए हैं वे पूरी तरह अस्पष्ट हैं।’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में बिहार के अरनेश कुमार मामले में बहुत पहले यह व्यवस्था दी थी कि बगैर ठोस कारण के पुलिस द्वारा गिरफ्तारी न की जाए।
फ़ारूक़ी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने मध्य प्रदेश पुलिस को नोटिस भी जारी किया है।
फ़ारूक़ी का यह मामला उससे जुड़ा है जिसमें विधायक मालिनी गौड़ के पुत्र एकलव्य सिंह गौड़ और उसके साथी 1 जनवरी को शो देखने के लिए पहुँचे थे। कॉमेडियन और आयोजकों के साथ एकलव्य और उसके साथियों की जमकर बहस भी हुई थी। इन लोगों ने शो को रुकवा दिया था। यह भी आरोप लगा था कि विरोध करने वालों ने कॉमेडियन फ़ारुक़ी के साथ मारपीट भी की।
एकलव्य ने यह आरोप भी लगाया था कि कार्यक्रम के दौरान कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़े प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। कैफ़े के छोटे से हॉल में लगभग 100 दर्शकों को बैठाकर रखा गया था। आयोजन के लिए प्रशासन से पूर्व अनुमति भी नहीं ली गई थी।
पुलिस ने कॉमेडियन और चार अन्य लोगों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 295-ए और धारा 269 समेत अन्य धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया था।
गिरफ़्तार किये गये चारों लोगों के वकील अंशुमन श्रीवास्तव ने एकलव्य और उसके साथियों द्वारा लगाये गये सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। शिकायत को पूर्वाग्रह से ग्रसित बताते हुए श्रीवास्तव ने कहा था कि यह मामला पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 28 जनवरी को इस कॉमेडियन को जमानत देने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था, "अब तक के साक्ष्यों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने एक स्टैंड-अप कॉमेडी शो के दौरान नागरिकों के एक वर्ग की भावनाओं को आहत करने के लिए ग़लत, फ़र्जी और अपमानजनक टिप्पणियां कीं।"