
परिसीमन के ख़िलाफ़ स्टालिन का मोर्चा, 7 राज्यों को चिट्ठी; केंद्र क्या करेगा?
परिसीमन पर केंद्र और कुछ राज्यों के बीच नये संघर्ष की तैयारी है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने परिसीमन यानी डिलिमिटेशन के ख़िलाफ़ दक्षिणी और पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एकजुट होने की अपील की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि ये प्रक्रिया अगली जनगणना के आधार पर हुई, तो जनसंख्या नियंत्रण में कामयाबी पाने वाले तमिलनाडु जैसे राज्यों की राजनीतिक ताक़त कम हो जाएगी। तो आखिर ये पूरा मामला क्या है? और इसका असर क्या हो सकता है? आइए, समझते हैं।
स्टालिन ने गुरुवार को लिखे एक पत्र में केंद्र सरकार की परिसीमन योजना को संघवाद पर हमला करार दिया है। यह क़दम तमिलनाडु में 5 मार्च को हुई सर्वदलीय बैठक के बाद उठाया गया। उस बैठक में डीएमके, एआईएडीएमके, कांग्रेस और वाम दलों ने एक सुर में इसका विरोध किया। हालांकि, तमिलनाडु बीजेपी ने इस बैठक का बहिष्कार करते हुए इसे काल्पनिक चिंता बताया। इस बैठक के कुछ दिनों बाद ही स्टालिन ने शुक्रवार को केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया है।
The Union Govt's plan for #Delimitation is a blatant assault on federalism, punishing States that ensured population control & good governance by stripping away our rightful voice in Parliament. We will not allow this democratic injustice!
— M.K.Stalin (@mkstalin) March 7, 2025
I have written to Hon'ble Chief… pic.twitter.com/1PQ1c5sU2V
स्टालिन का मुख्य विरोध इस बात पर है कि जनसंख्या नियंत्रण में सफल रहे राज्यों को परिसीमन में नुक़सान उठाना पड़ेगा। उनके मुताबिक यदि 2026 के बाद की जनगणना के आधार पर सीटों का पुनर्वितरण हुआ तो तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 तक रह सकती हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को फायदा होगा। स्टालिन ने पत्र में लिखा है, 'सवाल अब यह नहीं है कि परिसीमन होगा या नहीं, बल्कि यह है कि यह कब होगा और क्या यह उन राज्यों के योगदान को सम्मान देगा, जिन्होंने राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाया।'
उन्होंने कहा कि 1976 के 42वें संशोधन और 2001 के 84वें संशोधन के तहत परिसीमन को 2026 के बाद की पहली जनगणना तक स्थगित किया गया था, ताकि जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहन मिले। लेकिन 2021 की जनगणना में देरी के कारण यह प्रक्रिया पहले शुरू हो सकती है, जिसके लिए तैयारी का समय कम है। स्टालिन ने कहा कि हम परिसीमन के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी निभाने वाले राज्यों के ख़िलाफ़ इसका हथियार की तरह इस्तेमाल करने के ख़िलाफ़ हैं।
स्टालिन ने दो संभावनाएं जताई हैं। पहला, मौजूदा 543 लोकसभा सीटों का राज्यों के बीच पुनर्वितरण, और दूसरा, सीटों की संख्या बढ़ाकर 800 से अधिक करना। दोनों ही स्थितियों में जनसंख्या के आधार पर सीटें तय हुईं तो तमिलनाडु जैसे राज्य हारेंगे। अगर सीटें 543 रहती हैं, तो तमिलनाडु 8 सीटें खो सकता है। अगर 848 तक बढ़ती हैं तो भी उसे सिर्फ़ 10 अतिरिक्त सीटें मिलेंगी। यह अनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए ज़रूरी 22 से कम होंगी। उन्होंने कहा है कि यह तमिलनाडु की राष्ट्रीय मंच पर आवाज को दबाएगा।
स्टालिन ने केंद्र सरकार पर ठोस आश्वासन न देने का आरोप लगाया। उन्होंने पूछा, 'उनके प्रतिनिधि कहते हैं कि परिसीमन 'प्रो-राटा' आधार पर होगा, लेकिन यह आधार क्या होगा, यह साफ़ नहीं करते। जब लोकतंत्र की नींव दांव पर हो, तो क्या हम ऐसी अस्पष्ट बातें स्वीकार कर सकते हैं?' उनका कहना है कि केंद्र की चुप्पी संदेह पैदा करती है।
स्टालिन ने याद दिलाया कि 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में आश्वासन दिया था कि 1971 की जनगणना के आधार पर सीटें 2026 तक तय होंगी। अब यह ढांचा ख़त्म होने वाला है, इसलिए स्टालिन ने इसे 2056 तक बढ़ाने की मांग की।
स्टालिन ने कहा, 'यदि लोकसभा, विधानसभा और राज्यसभा सीटें जनसंख्या के आधार पर कम हुईं तो यह दक्षिणी राज्यों, खासकर तमिलनाडु को दंडित करेगा।
स्टालिन ने केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों से संयुक्त कार्रवाई समिति बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, 'हमें संवैधानिक, क़ानूनी और राजनीतिक पहलुओं की समीक्षा करनी होगी। एकजुट वकालत से ही हम ऐसा परिसीमन सुनिश्चित कर सकते हैं, जो हमारी भूमिका को सम्मान दे।' इसके लिए 22 मार्च को चेन्नई में बैठक प्रस्तावित की गई है।
यह मुद्दा केवल सीटों के पुनर्वितरण का नहीं, बल्कि भारत के संघीय ढांचे और क्षेत्रीय असमानताओं का है। जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में सफल होने वाले तमिलनाडु जैसे राज्य अब खुद को पीड़ित मानते हैं। यह एक वैध सवाल उठाता है कि क्या विकास और नीतिगत सफलता को दंडित करना ठीक है? दूसरी ओर, अधिक जनसंख्या वाले राज्यों का तर्क है कि उनकी बड़ी आबादी को समान प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
स्टालिन की अपील दक्षिणी राज्यों में क्षेत्रीय भावनाओं को बढ़ा सकती है। ये पहले से ही कर वितरण और केंद्रीय नीतियों में पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं। बीजेपी के लिए यह चुनौती है, क्योंकि तमिलनाडु में उसकी सीमित मौजूदगी इस विरोध से और कमजोर हो सकती है। सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों का समर्थन स्टालिन के लिए बड़ी जीत है।
परिसीमन का मुद्दा आने वाले सालों में भारत की राजनीति को प्रभावित करेगा। स्टालिन का एकजुट मोर्चा अगर सफल हुआ, तो यह केंद्र को नीति पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर सकता है। लेकिन अगर केंद्र अपनी योजना पर अड़ा रहा, तो दक्षिणी राज्य खुला विरोध शुरू कर सकते हैं। यह संघवाद की परीक्षा है। क्या भारत एक ऐसी व्यवस्था बना पाएगा जो विकास और जनसंख्या दोनों को संतुलित करे? जवाब 2026 के बाद की घटनाओं में छिपा है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)