शीत युद्ध ख़त्म कर देने वाले नेता मिखाइल गोर्बाचेव का निधन
पूर्व सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव का मंगलवार को मास्को में निधन हो गया। वह 91 साल के थे। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ का पतन कर इतिहास को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने उस शीत युद्ध को ख़त्म कर दिया जिसमें अमेरिका और तब के सोवियत संघ के बीच उस युद्ध के लपेटे में पूरी दुनिया आती रही थी। दूसरे विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद से ही वह शीत युद्ध शुरू हो गया था। कोई ऐसा देश नहीं था जिसपर उस शीत युद्ध का असर नहीं पड़ा हो। ऐसा इसलिए था कि दुनिया दो खेमों में बंट गई थी। हालाँकि, भारत जैसे कुछ देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन शुरू किया, लेकिन ये देश भी उससे प्रभावित रहे।
दुनिया भर को प्रभावित करने वाले इसी शीत युद्ध को ख़त्म करने वाले गोर्बाचेव 20वीं शताब्दी के महान व्यक्तियों में से एक माने जाते हैं। उनके निधन की घोषणा मंगलवार को रूसी समाचार एजेंसियों ने की। रिपोर्टों में कहा गया कि गोर्बाचेव का मास्को के एक केंद्रीय अस्पताल में 'गंभीर और लंबी बीमारी के बाद' निधन हो गया।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस ने गोर्बाचेव की प्रशंसा करते हुए कहा, 'एक ऐसे राजनेता जिन्होंने इतिहास की धारा को बदल दिया और शीत युद्ध के शांतिपूर्ण अंत के लिए किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में अधिक किया'।
ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा, उन्होंने "हमेशा उस साहस और सत्यनिष्ठा की प्रशंसा की" जो गोर्बाचेव ने शीत युद्ध को शांतिपूर्ण निष्कर्ष पर लाने के लिए दिखाया।
उन्होंने कहा, 'यूक्रेन में पुतिन की आक्रामकता के समय में, सोवियत समाज को खोलने के लिए उनकी अथक प्रतिबद्धता हम सभी के लिए एक उदाहरण है।'
I'm saddened to hear of the death of Gorbachev.
— Boris Johnson (@BorisJohnson) August 30, 2022
I always admired the courage & integrity he showed in bringing the Cold War to a peaceful conclusion.
In a time of Putin’s aggression in Ukraine, his tireless commitment to opening up Soviet society remains an example to us all.
गोर्बाचेव सात साल से कम समय तक सत्ता में रहे, लेकिन उन्होंने कई बड़े बदलाव शुरू किए। 1985 और 1991 के बीच सत्ता में रहे गोर्बाचेव ने अमेरिका-सोवियत संबंधों को बेहतर बनाने में मदद की और वह शीत युद्ध के अंतिम जीवित नेता थे।
गोर्बाचेव के बदलावों के कारण अधिनायकवादी सोवियत संघ विघटित हो गया, पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र रूसी प्रभुत्व से मुक्त हुए और दशकों से जारी पूर्व-पश्चिम परमाणु टकराव का अंत हुआ।
गोर्बाचेव ने जो बदलाव किए, उन्होंने उन्हें पश्चिम में ख्याति दिलाई। उन्होंने 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता, लेकिन साथ ही उन्हें कई रूसियों का तिरस्कार भी मिला। ये रूसी वे लोग थे जिन्होंने वैश्विक महाशक्ति के रूप में अपने देश की भूमिका के अंत पर शोक जताया।
सोवियत संघ के विघटन के कारण ही रूस में कुछ लोग गोर्बाचेव को विवादास्पद व्यक्ति मानते हैं। रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी उनमें से एक हैं। पुतिन के साथ गोर्बाचेव के संबंध अच्छे नहीं थे। पुतिन सोवियत संघ के टूटने को ट्रैजडी मानते हैं। इसके लिए गोर्बाचेव को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। पुतिन के साथ कई रूसी नेता ये मानते हैं कि सोवियत संघ के टूट जाने के बाद रूस कमजोर पड़ा गया और उसकी अर्थव्यवस्था गिर गई।
एक समय महाशक्ति रहा सोवियत संघ 15 अलग-अलग देशों में विभाजित हो गया। गोर्बाचेव के सहयोगियों ने उन्हें छोड़ दिया। उन्होंने 1996 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और उन्हें एक प्रतिशत से भी कम मत मिले।
गोर्बाचेव कई साक्षात्कारों में कह चुके हैं कि वह सोवियत संघ को कभी ख़त्म नहीं करना चाहते थे, बल्कि वह इसमें सुधार करना चाहते थे।
उन्होंने अमेरिकी नेता रोनाल्ड रीगन के साथ एक ऐतिहासिक परमाणु हथियार समझौते पर बातचीत के लिए नोबेल शांति पुरस्कार जीता, और उससे एक साल पहले बर्लिन की दीवार ढहने पर सोवियत सेना को वापस बुलाने के उनके फ़ैसले को शीत युद्ध में शांति बनाए रखने की कुंजी के रूप में देखा गया था।