G-23 के नेताओं से मिलीं सोनिया, कांग्रेस में अब सब ठीक होगा?
पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी नेतृत्व असंतुष्ट नेताओं से लगातार मुलाकात कर रहा है। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को G-23 गुट के नेता आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और विवेक तन्खा को बुलाकर उनसे बातचीत की। कांग्रेस में बीते 3 साल से G-23 गुट लगातार पार्टी पर सवाल उठाता रहा है लेकिन अब पार्टी नेतृत्व ने इस गुट के साथ सुलह की कोशिशों को तेज कर दिया है।
इसी के तहत कुछ दिन पहले सोनिया गांधी ने इस गुट के नेता गुलाम नबी आजाद से भी मुलाकात की थी और राहुल गांधी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मिलने बुलाया था।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और विवेक तन्खा ने सोनिया गांधी से कहा कि उन्हें पार्टी को चलाने के लिए कुछ चुनिंदा लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए और सामूहिक फैसले लेने के मॉडल को पार्टी में स्थापित करना चाहिए।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद G-23 गुट के नेता कपिल सिब्बल के आवास पर मिले थे और इसके बाद से ही कांग्रेस हाईकमान ने गुट के नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया था।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सोनिया गांधी ने गुलाम नबी आजाद को पद्मभूषण मिलने पर फोन कर शुभकामनाएं दी हैं। जब गुलाम नबी आजाद को पद्मभूषण मिलने का एलान हुआ था तब कांग्रेस में कुछ नेताओं ने इसके विरोध में प्रतिक्रिया दी थी।
बड़ी सर्जरी नहीं हो सकती
यह कहा जा रहा है कि इस गुट के कुछ नेताओं को संगठन में जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं। सोनिया ने इन नेताओं को बताया कि अभी पार्टी में कोई बड़ी सर्जरी नहीं की जा सकती हालांकि कुछ छोटे बदलाव जरूर किए जा सकते हैं। इस दौरान इन नेताओं ने पार्टी के कामकाज और फैसले लेने सहित कई मुद्दों को उठाया।
पुरानी मांगों को उठाया
G-23 गुट के नेताओं ने अपनी पुरानी मांगों जैसे- कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव पार्टी के संविधान के मुताबिक होने, पार्टी के संसदीय बोर्ड को फिर से बनाए जाने को उठाया। यह भी कहा कि जिला कांग्रेस के अध्यक्षों की नियुक्ति दिल्ली से नहीं की जानी चाहिए।
अब जब कांग्रेस नेतृत्व ने असंतुष्ट नेताओं से मुलाकात और बातचीत शुरू कर दी है तो यह माना जाना चाहिए कि पार्टी के अंदर लंबे वक्त से चला आ रहा संकट खत्म हो जाएगा। साल 2023 में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और उससे पहले इस साल के अंत में भी 2 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।
कांग्रेस के अंदर अगर लगातार इसी तरह पार्टी नेताओं के बीच झगड़े चलते रहे और पार्टी चुनावी राज्यों में शिकस्त खाती रही तो उसका जिंदा रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
शायद इस बात को भी पार्टी आलाकमान अब समझ चुका है कि क्षेत्रीय नेताओं की ओर से मिल रही चुनौती का सामना तभी किया जा सकता है जब अपना घर मजबूत हो और चुनावी राज्यों में विजय पताका फहराई जाए।