सोनभद्र वीडियो: गोलियों से गिरते रहे लोग, डंडों से पीटते रहे बदमाश
सोनभद्र नरसंहार का दिल दहला देने वाले कई वीडियो अब सामने आए हैं। घटना के क़रीब एक हफ़्ते बाद आए इस वीडियो में दिख रहा है कि उस दिन कैसे आदिवासी किसानों पर हमला किया गया था और ताबड़तोड़ फ़ायरिंग की गई थी। इनमें से एक वीडियो उस नरसंहार की शुरुआत का है जब कथित रूप से गाँव के प्रमुख ने कुछ किसानों पर फ़ायरिंग की थी। इसमें साफ़ दिखाई दे रहा है कि बड़ी संख्या में लोग लाठी-डंडों से ग्रामीणों को पीट रहे हैं। गोली लगने से गिरे लोगों को भी पीटा जा रहा है। इस दौरान चीख़-पुकार मची है। ग्रामीण दहशत में हैं। एक अन्य वीडियो में दिख रहा है कि आरोपियों के फ़रार होने के बाद घटनास्थल पर ज़मीन पर पड़े घायल लोगों के साथ ही ख़ून से लथपथ लाशें भी पड़ी हैं। इन वीडियो को घटना के वक़्त स्थानीय लोगों ने बनाया था, जो कि अब सामने आए हैं।
Disturbing visuals of the Sonbhadra massacre
— NEELANSHU SHUKLA (@neelanshu512) July 22, 2019
One of the most horrific incident in recent times @Saurabh_Ndtv@advsumitdixit pic.twitter.com/6Ent6N53OZ
यह मामला उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में घोरावल थाना क्षेत्र के उम्भा गाँव का है। गाँव में ज़मीन को लेकर हुए विवाद में 17 जुलाई को क़रीब 10 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसमे कई अन्य लोग घायल हुए हैं। किसानों ने 36 एकड़ ज़मीन देने से इनकार कर दिया था, जिस पर वे पीढ़ियों से खेती करते आ रहे थे। इस मामले में 29 गिरफ्तारियाँ हुई हैं, कई अन्य लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया है और ज़िले में 2 महीने तक धारा 144 लगा दी गई है।
एक वीडियो में दिख रहा है कि एक गाँव के पास कई ट्रैक्टर खड़े हैं जहाँ हत्याएँ हुई थीं। वीडियो के दृश्य को देखकर उन ग्रामीणों पर घातक हमले का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। नरसंहार के बाद ग्राम प्रमुख यज्ञ दत्त पर आरोप लगा है कि उसने फ़ायरिंग का नेतृत्व किया था और वह 32 ट्रैक्टरों में भर कर हथियारों से लैस क़रीब 200 लोगों को लेकर आया था। यज्ञ दत्त का दावा है कि उसने दस साल पहले स्थानीय परिवार से यह ज़मीन ख़रीदी थी।
‘पुलिस बुलाओ’ की चीख़ें
एक अन्य वीडियो में दिख रहा है कि हाथों में डंडे लिए बड़ी संख्या में लोग ग्रामीणों को पीट रहे हैं। इसी बीच फ़ायरिंग की आवाज़ भी सुनाई देती है। एक आदमी को ज़मीन पर गिरते भी देखा जा सकता है। वीडियो में ही एक महिला की आवाज़ ‘पुलिस बुलाओ, पुलिस बुलाओ’ की चीख़ भी सुनाई देती है। इस घटना के बाद ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि एक पक्ष की ओर से क़रीब आधे घंटे तक फ़ायरिंग होती रही।
फ़ायरिंग की घटना के आधे घंटे बाद पुलिस पहुँची। इस देरी पर कई सवाल खड़े होते हैं। यह सवाल इसलिए क्योंकि फ़ायरिंग से काफ़ी पहले से ही माहौल गरमा गया था। इतने ज़्यादा ट्रैक्टरों में भर कर लोग आए थे। इसकी चेतावनी थी और इसके ख़तरनाक संकेत भी, इसके बावजूद पुलिस समय पर नहीं पहुँची।
ऐसे हुई थी झगड़े की शुरुआत
बता दें कि सैकड़ों लोगों के साथ आए ग्राम प्रमुख ने ट्रैक्टरों से खेत की जबरन जुताई करवाने लगा। ग्रामीणों ने विरोध किया तो ग्राम प्रमुख के समर्थकों ने उन पर कथित रूप से हमला कर दिया। स्थानीय लोगों के मुताबिक़, इस दौरान हमलावरों ने सामने आने वाले ग्रामीणों को गंड़ासे से काट डाला। सैकड़ों राउंड फ़ायरिंग हुई। पिछले हफ़्ते मीडिया में ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि आरोपियों ने एकाएक फ़ायरिंग शुरू कर दी और एक बार जब लोग ज़मीन पर गिरने लगे तो उन्होंने लाठियों से मारना शुरू कर दिया। रिपोर्टों में कहा गया था कि उन्होंने गोलीबारी शुरू की तो ग्रामीण ख़ुद को बचाने के लिए इधर-उधर भागे। बता दें कि इतना गंभीर मामला होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोनभद्र का दौरा तब किया जब उन पर काफ़ी ज़्यादा दबाव बन गया था। कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने गाँव का दौरा करने की कोशिश की और उन्हें रोक दिया गया था।
लोगों का कहना है कि ओबरा-आदिवासी बहुल जनपद में सदियों से आदिवासियों के जोत को तमाम नियमों के आधार पर नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। सर्वे होने के बाद अधिकारियों की संवेदनहीनता उन्हें भूमिहीन बनाती रही है। इलाक़े में रसूखदार लोग इस तरह की काफ़ी ज़मीनों पर अवैध तरीक़े से काबिज हैं।
क्यों है विवाद
बता दें कि इस ख़ूनी संघर्ष में बिहार के रहने वाले बंगाल कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा का नाम सामने आ रहा है। आईएएस ने यहाँ आदिवासियों के कब्ज़े में रही 90 बीघा ज़मीन को को-ऑपरेटिव सोसाइटी के नाम करा लिया था। उस समय तहसीलदार के पास नामांतरण का अधिकार नहीं था, लिहाज़ा नाम नहीं चढ़ सका। इसके बाद सात सितंबर 1989 को आईएएस ने अपनी पत्नी व बेटी के नाम ज़मीन करवा ली। आईएएस की बेटी इस ज़मीन पर हर्बल खेती करवाना चाहती थी। लेकिन ज़मीन पर कब्ज़ा न मिलने की वजह से उसका प्लान फ़ेल हो गया। नियम है कि सोसाइटी की ज़मीन किसी व्यक्ति के नाम नहीं हो सकती। इसके बाद आईएएस ने विवादित ज़मीन में से काफ़ी बीघा ज़मीन मूर्तिया गाँव के प्रधान यज्ञदत्त सिंह भूरिया को औने-पौने दाम पर बेच दी। हालाँकि ज़मीन पर आदिवासियों का कब्ज़ा आज भी बरकरार रहा। लेकिन पटना से आईएएस का एक शख्स जिसका नाम धीरज बताया जा रहा है, वह हर साल प्रति बीघे लगान भी वसूलने आता था।