हाथरस: पत्रकार सहित 4 लोगों की हिरासत अवैध!
हाथरस बलात्कार कांड के बाद हुए व्यापक प्रतिरोध के सिलसिले में गिरफ़्तार मलियाली पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन सहित 4 मुसलिम नवयुवकों की ढाई महीने की न्यायिक हिरासत अवैध है तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा? यूपी एसटीएफ़, प्रदेश पुलिस और कनिष्ठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग को धता बताते हुए की गई इस गैर क़ानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया को मथुरा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने गत बुधवार को ख़ारिज कर दिया।
हाथरस में हुई बलात्कार की लोमहर्षक घटना को झुठलाने की कोशिशों में की गयी कार्रवाई में मथुरा, गौतमबुद्ध नगर और हाथरस में तैनात एसटीएफ़ अपने ही जाल में फंस गई है।
मथुरा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने एसटीएफ़ की कार्रवाई पर सीजेएम द्वारा दी गई जुडिशियल रिमांड को अवैधानिक माना है। ज़ाहिर है अवैधानिक गिरफ़्तारी की यही प्रक्रिया हाथरस में तैनात एसटीएफ़ (गौतमबुद्ध नगर) के अनुरोध पर सीजेएम हाथरस पर भी लागू होगी। ('सत्य हिंदी' ने विगत बुधवार को इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी।)
तब सवाल उठता है कि 5 अक्टूबर को गैर क़ानूनी ढंग से गिरफ्तार किये गए मलियाली पत्रकार सहित इन 4 मुसलिम नवयुवकों की जेल का ज़िम्मेदार कौन होगा?
पहले बलात्कार की घटना से इनकार करने और फिर मृत निर्भया के शव को उसके परिजनों की अनुपस्थिति में आधी रात में जला दिए जाने की हाथरस पुलिस की अमानवीय करतूत को लेकर योगी शासन के विरुद्ध पूरे देश में हाहाकार मचा था।
शव जलाए जाने की घटना के ठीक अगले दिन 1 अक्टूबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इसका स्वतः संज्ञान लेते हुए सरकार, वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध नोटिस जारी किए थे।
योगी सरकार की दलील
हाई कोर्ट के हाल के कई फैसलों से आतंकित प्रदेश सरकार ने तब सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका में बिना किसी नोटिस के आनन-फ़ानन में जारी हुए अपने बचाव का एक लंबा-चौड़ा एफ़िडेविट फ़ाइल किया जो राष्ट्रद्रोह, आतंक विरोधी क़ानून (यूएपीए), अपने विरुद्ध षड्यंत्र, विधि सम्मत सरकार को गिराने की कोशिशों से अटा पड़ा है। इसी दिन यूपी सरकार की ओर से प्रदेश के 7 ज़िलों में 21 एफ़आईआर दायर की गईं।
इन एफ़आईआर में कहा गया है कि कुछ राजनीतिक समूह और दूसरे संगठन जातीय हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। इन कथित खतरों से बचाव के लिए प्रदेश के कई ज़िलों में 'अज्ञात' व्यक्तियों के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह, आतंक विरोधी क़ानून, अपने विरुद्ध षड्यंत्र, विधि सम्मत सरकार को गिराने की गंभीर धाराओं में मुक़दमे दायर हुए। इन ज़िलों में हाथरस और मथुरा भी शामिल हैं।
देखिए, हाथरस कांड पर वीडियो-
गंभीर धाराओं में मुक़दमा
मथुरा पुलिस ने हाथरस जाते वक़्त एक मलियाली पत्रकार सहित 4 मुसलिम युवाओं को 'यमुना एक्सप्रेस वे' पर धर पकड़ा। 5 अक्टूबर को इन चारों को एसडीएम मांट के आदेश पर शांति भंग के अंदेशे में गिरफ़्तार करके जेल भेजा और फिर पुलिस ने सीजेएम की अदालत में जेल में बंद चारों लोगों पर 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया' से सम्बद्ध होने का आरोप तो लगाया ही है। साथ में आतंक विरोधी क़ानून (यूएपीए), षड्यंत्र, देशद्रोह, सहित दूसरे कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं। बाद में उक्त मामला एसटीएफ़ (गौतमबुद्ध नगर) को सौंप दिया गया।
मथुरा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश यशवंत कुमार मिश्र ने अभियुक्तों की ओर से दायर आवेदन पत्र (113 /20) पर हुई बहस के बाद अपना फैसला सुनाते हुए यह माना कि यूएपीए के मामलों का क्षेत्राधिकार सीजेएम न्यायालय नहीं है, जैसा कि उक्त मामले में हुआ है। उन्होंने मामले की सम्पूर्ण पत्रावली तत्काल अपर सत्र न्यायाधीश (प्रथम) को सुपुर्द करने का आदेश दिया है।
न्यायाधीश ने अपने निर्णय का आधार सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग (विक्रमजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य) को मानते हुए कहा कि ऐसे मामलों में रिमांड आदि कार्रवाई का कोई अधिकार सम्बद्ध मजिस्ट्रेट को नहीं है।
गौरतलब है कि सीजेएम न्यायालय विगत 7 अक्टूबर से सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग के आधार पर अभियुक्तों की आपत्तियों को अस्वीकार करके रिमांड देता रहा है। 14 दिसम्बर को अभियुक्तों की पुनरीक्षण याचिका भी एएसजे (चतुर्थ) कोर्ट में यह कह कर ख़ारिज कर दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग इस मामले पर लागू नहीं होती। ज़मानत के स्तर पर भी मजिस्ट्रेट न्यायालय के क्षेत्राधिकार को दी गयी इसी चुनौती को ख़ारिज कर दिया गया था।
स्टैंड से पलट गयी एसटीएफ़
इन सभी स्तर पर एसटीएफ़ और सरकार द्वारा सीजेएम न्यायालय के क्षेत्राधिकार का बचाव किया गया और अभियुक्तों की रिमांड को वैध बताया गया। 23 दिसम्बर को एसटीएफ़ अचानक अपनी अब तक की दलील से पीछे हट गयी और उसने अभियुक्तों की दलील को स्वीकार करके न्यायाधीश से मामले को सीजेएम की अदालत से हटाने का आवेदन किया!
अभियुक्तों के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता मधुवन दत्त चतुर्वेदी का मानना है कि "ऐसा उन्होंने 5 जनवरी 2021 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में लगी अभियुक्तों की ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका’ से घबरा कर किया है।" 'सत्य हिंदी' से बातचीत में वह संदेह प्रकट करते हैं कि “उत्तर प्रदेश की जेलों में इस तरह से अवैधानिक न्यायिक हिरासत के नाम पर अवैधानिक यंत्रणा झेलने वालों की संख्या बहुत बड़ी हो सकती है।”
उधर, थाना चंदपा (हाथरस) की शिकायत पर एसटीएफ़ (गौतबुद्ध नगर) द्वारा इसी तरह के मामले में इन्हीं अभियुक्तों को लपेटा गया है। वहां पर भी क़ानून की यही अवैधता लागू हुई है और 19 अक्टूबर से यूएपीए के तहत एसटीएफ़ के आवेदन पर सीजेएम के आदेश पर चारों पर रिमांड लगी हुई है। 21 दिसम्बर को सीजेएम हाथरस के क्षेत्राधिकार को चुनौती देने वाले आवेदन पर एसटीएफ़ ने इसी प्रकार बचाव किया।
सवाल यह है कि इस ग़ैर क़ानूनी रिमांड और जेल में पड़े रहने की इस प्रक्रिया को अनदेखा करने का ज़िम्मेदार किसे माना जाए? क्या इसे कनिष्ठ न्यायिक अधिकारियों, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की मिलीभगत नहीं माना जाए जिसका खामियाज़ा मासूम और क़ानून से अनजान नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है।