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बीजेपी तभी फ़ोन करे, जब सीएम की कुर्सी देने के लिये तैयार हो: उद्धव

बीजेपी तभी फ़ोन करे, जब सीएम की कुर्सी देने के लिये तैयार हो: उद्धव

महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर जारी घमासान अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचने वाला है। सरकार गठन की अंतिम तारीख़ 9 नवंबर है लेकिन अब तक बीजेपी-शिवसेना में पटरी ही नहीं बैठ रही है। 

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना में अब ठन गई है और दोनों ही खुलकर आमने-सामने आ चुके हैं। आरोप-प्रत्यारोप से शुरू हुई यह सियासी लड़ाई अब विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त तक पहुंच गई है। बृहस्पतिवार को शिवसेना ने एक बार फिर बीजेपी को मुख्यमंत्री की कुर्सी के मुद्दे पर ललकारा है। 

मुंबई में शिवसेना विधायकों की बैठक में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है बीजेपी अब उन्हें तभी फ़ोन करे जब वह ढाई साल के लिये मुख्यमंत्री की कुर्सी देने के लिये तैयार हो, वरना न करे। उद्धव ने कहा कि वह गठबंधन नहीं तोड़ना चाहते लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान जो तय हुआ था बीजेपी को उसे लागू करना चाहिए। 

महाराष्ट्र में सरकार गठन की अंतिम तारीख़ 9 नवंबर है लेकिन अब तक बीजेपी-शिवसेना में पटरी ही नहीं बैठ रही है। आरोप-प्रत्यारोप का 14 दिनों से चल रहा ‘खेल’ अब रिसॉर्ट पॉलीटिक्स या यूं कह लें कि विधायकों पर पहरा बिठाने में बदल गया है। 

पिछले दिनों में बीजेपी के कुछ नेताओं के ऐसे बयान आये हैं कि शिवसेना के कुछ विधायक उनके संपर्क में हैं, इन बयानों ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को चौकन्ना कर दिया है। हालांकि शिवसेना नेता संजय राउत इस बात का खंडन कर रहे हैं और उन्होंने ऐसी ख़बरों को अफ़वाह बताया है। संजय राउत ने कहा है कि शिवसेना के विधायकों के आसपास पहुंचने की भी किसी की हिम्मत नहीं है। 

शिवसैनिकों को सौंपी जिम्मेदारी

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, शिवसेना ने विधायकों की चौकसी कुछ दिन पहले से ही कर रखी है। बताया जा रहा है कि शिवसेना ने अपने हर विधायक पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी शिवसैनिकों को सौंप रखी है। विधायकों पर नज़र रखने के लिए संबंधित क्षेत्र के विभाग प्रमुख और शाखा प्रमुख को अलर्ट रहने के लिये कहा गया है। इन पदाधिकारियों को यह निर्देश दिए गए हैं कि वे विधायक की हर गतिविधि, उससे कौन मिलने आता है और उसकी किसी से कोई बात तो नहीं चल रही है, इस पर नज़र रखें। 

शिवसैनिकों से यह भी कहा गया है कि वे विधायकों की गतिविधियों की नियमित सूचना मातोश्री को देते रहें। शिवसेना इस बार 'अभी नहीं तो कभी नहीं' की मुद्रा में है और इसलिए पार्टी प्रमुख अब विधायकों पर पहरा लगाने के मोड में आ गए हैं।

शिवसेना के अलावा कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी एहतियात बरत रहे हैं कि उनके विधायक तो कहीं बीजेपी नेताओं के संपर्क में नहीं हैं। कांग्रेस विधायकों का एक दल पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिलने दिल्ली जा रहा है, इसे भी उसी सन्दर्भ में देखा जा रहा है। विधायकों को टूटने से बचाने के मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल और शिवसेना नेता संजय राउत का बयान भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन दोनों नेताओं ने कहा है कि यदि किसी विधायक ने दल-बदल किया तो उसके ख़िलाफ़ तीनों पार्टियां एक साझा उम्मीदवार उतारकर चुनाव हराने का काम करेंगी। 

वैसे, अब तक जो ख़बरें मिली हैं उसके अनुसार शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस, तीनों के ही किसी विधायक के टूटने की संभावना नहीं है और यह बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।  लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बनाना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, इसलिए बीजेपी की तरफ़ से कर्नाटक की पुनरावृत्ति की जाएगी, इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता। 

कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के जिस तरह के टेप लीक हुए हैं और जो ख़बरें पिछले कुछ दिनों से आ रही हैं, उसमें ख़रीद-फरोख़्त के लिए जितनी बड़ी राशि का इस्तेमाल किया गया है, उससे अच्छे से अच्छे शख़्स का ईमान हिल सकता है। वर्तमान दौर में ईमान और विचारधारा की राजनीति हाशिये पर पहुंच चुकी है, ऐसे में विधायकों पर पहरा बिठाने की नौबत अब हर राज्य में आने लगी है।  

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