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राम मंदिर मुद्दा हथियाने की जुगत में शिव सेना

राम मंदिर मुद्दा हथियाने की जुगत में शिव सेना

शिव सेना प्रमुख अयोध्या पँहुच साधुओ से मिलने और सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति पर चल रहे हैं। उनकी मंशा बीजेपी से राम मंदिर मुद्दा छीनने की तो नहीं है?

कई साल तक बीजेपी के साथ काम कर चुकी शिव सेना उसका सबसे अहम चुनावी मुद्दा छीनने और उसे उसी के मैदान में पटखनी देने की योजना पर गंभीरता से काम कर रही है। ऐसा लगता है कि इस आक्रामक हिंदुत्ववादी दल ने अपने पुराने सहयोगी को उसकी ही चाल से मात देने की योजना बना ली है। शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या में बीजेपी के प्रस्तावित धर्मसभा से एक दिन पहले ही वहां अपने समर्थकों और लाव लश्कर के साथ पँहुच जाएंगे। बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे को गरमाने के मक़सद से 25 को अयोध्या समेत चार शहरों में कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है। पर ठाकरे वहां 24 को पँहुचेंगे और लक्ष्मण किला पार्क में प्रमुख साधु संतों से मुलाक़ात करेंगे। वे राम लला के दर्शन करेंगे और शाम को सरयू आरती में शिरकत करेंगे। 

शिव सेना की रणनीति राम मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की है ताकि वह महाराष्ट्र में चुनाव के दौरान उस पर हमला कर सके और ख़ुद को हिंदुत्व का बड़ा झंडाबरदार बता सके।

सेना को समर्थन

शिव सेना की यह कोशिश बेकार नहीं हो रही है। उसे साधु संतों का समर्थन भी मिल रहा है।  राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास उनसे मिलेंगे। महंत यह अच्छी तरह जानते हैं कि इस बहाने शिव सेना बीजेपी पर दबाव बनाने की राजनीति कर रही है। पर वे इसे बुरा नहीं मानते। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी बग़ैर दबाव डाल राम मंदिर कभी नहीं बनवायेगी। लेकिन राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने ख़ुद को ठाकरे से दूर रखा है। लेकिन वे भी यह कहते हैं कि राम मंदिर के लिए सरकार पर दबाव तो डालना ही होगा। 

 - Satya Hindi

अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए पत्थर तराश कर रख दिये गये हैं। पर मंदिर बनने के नाम पर कुछ नहीं हो रहा है।

ठाकरे से दूरी

महंत नृत्यगोपाल के उद्धव ठाकरे से नहीं मिलने से कई बातें साफ़ हो जाताी हैं। वे शुरू से ही बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद के साथ रहे हैं। वे यह साफ संकेत दे रहे हैं कि वे बीजेपी के साथ हैं, शिव सेना के साथ नहीं। इससे भी यह भी साफ़ है कि बीजेपी शिव सेना के इस अभियान से खुश नहीं है। वह खुल कर ठाकरे का विरोध नहीं कर पा रही है, पर यह कतई नहीं चाहती कि सेना को जन समर्थन मिले। शिव सेना को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि बीजेपी या विश्व हिंदू परिषद उनके अयोध्या जाने से नाराज़ है या खुश। उसने यह तय कर लिया है कि राम मंदिर के मुद्दे पर उसे खुल कर बीजेपी का विरोध करना है। उससे सही समय पर चोट की है। हिंदुत्व का मामला होने के कारण बीजेपी ठाकरे से यह तो कह नहीं सकती कि वे अयोध्या न जाएं। 

शिव सेना ने बीजेपी को घेरने के लिए नरेंद्र मोदी पर खुले आम हमला बोलने की रणनीति अपनायी है ताकि वह यह साबित कर सके कि मोदी सरकार इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है और वह हिंदुत्व का असली पैरोकार हैं। इस तरह वह बीजेपी के हिंदुत्व की हवा निकालना चाहती है।

मोदी पर हमला

शिव सेना ने बीजेपी के पांव के नीचे की ज़मीन खिसकाने के लिए उसका ही मोहरा अपनाया है तो उसके सबसे बड़े नेता पर ज़ोरदार हमला भी कर दिया है। ठाकरे ने मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए मोदी पर तंज किया। उन्होंने कहा, 'राम मंदिर का मामला 15 लाख रुपये हर किसी के खाते में डालने वाला जुमला नहीं है कि आप बोल कर न करें। राम मंदिर का मामला हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है।' शिव सेना ने बीजेपी पर हमला उसी समय शुरू कर दिया था, जब महाराष्ट्र में वह बीजेपी से अलग हो गयी थी। उस समय भी शिव सेना ने कहा था कि मोदी सरकार राम मंदिर के मुद्दे पर हीला हवाला कर रही है। उसका मानना था कि सरकार में रह कर भी भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर नहीं बनवायेगी, वह सिर्फ़ उसका राजनीतिक फ़ायदा उठाती रही है।

आम चुनाव पर नज़र

लेकिन शिव सेना अयोध्या को अपनी रणनीति का केंद्र नहीं बना रही है, यह भी साफ़ है। उत्तर प्रदेश में उसका कोई जनाधार नहीं है और वह एक भी सीट नहीं जीत सकती। लेकिन वह राम मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी को कटघरे में खड़ा कर महाराष्ट्र में उसके लिए स्थिति कठिन ज़रूर बनाना चाहती है। वह उसे वहां घेरना चाहती है। पर इसके लिए ज़रूरी है कि अपना मोहरा अयोध्या की ओर बढ़ाये क्योंकि वह राम मंदिर पर होने वाली राजनीति का केंद्र है। राम मंदिर एक जुमला नहीं, मोहरा है। अब तक बीजेपी इस मोहरे को चलती रही है। पर अब शिव सेना उससे यह मोहरा छीनना चाहती है। वह साबित करना चाहती है कि राम मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी से अधिक गंभीर है। विश्व हिन्दू परिषद का कार्यक्रम महाराष्ट्र के नागपुर में भी है। पर जब ठाकरे सीधे अयोध्या ही पँहुच रहे हैं तो नागपुर में बीजेपी के कार्यकर्ता उसका कोई नुक़सान नहीं कर सकेंगे, यह भी शिव सेना की रणनीति का हिस्सा है। मामला अयोध्या में 25 नवंबर को होने वाले कार्यक्र तक ही सीमित नहीं रहेगा। आने वाले समय में सेना अधिक हमलावर होगी और बीजेपी की दिक्क़तें भी बढेंगी।

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