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शिवसेना की नज़रें सीएम की कुर्सी पर, बीजेपी संग कुश्ती जारी

शिवसेना की नज़रें सीएम की कुर्सी पर, बीजेपी संग कुश्ती जारी

शिवसेना को यह दुख हमेशा सालता रहा है कि जिस बीजेपी ने राज्य में शिवसेना का हाथ थाम कर अपनी ज़मीन मज़बूत की, अब वही शर्तों की राजनीति कर रही है। क्या फिर दोनों के बीच कड़वाहट आएगी?

महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन ने तमाम अटकलों और भीतरघात की आशंकाओं के बीच लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया। लोकसभा चुनावों से पहले दोनों दलों में जो 'भरत मिलाप' हुआ था उस रिश्ते को और मज़बूत करने प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बुधवार को शिवसेना के 53वें स्थापना दिन समारोह में पहुँचे। यह पहला अवसर रहा जब कोई मुख्यमंत्री शिवसेना के स्थापना दिन के कार्यक्रम में शामिल हुआ। इस अवसर पर फडणवीस ने कहा की जंगल में जब शेर और बाघ एक साथ आते हैं तो 'राजा' कौन होगा यह बताने की ज़रूरत नहीं है। 

राजा शेर को माना जाए या बाघ को इस सवाल का साफ़ जवाब न तो फडणवीस ने दिया और ना ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने। दोनों नेता अपने-अपने भाषणों में दोस्ती और अपनापन और गठबंधन के एक नए अध्याय की बात करते रहे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा और उसका क्या फ़ॉर्मूला होगा ये सब मीडिया में लगाई जाने वाली अटकलें हैं उन्हें अटकलें लगाने दें, लेकिन इस सम्बन्ध में हमारे बीच जो तय हुआ है वह समय आने पर बता दिया जाएगा। लेकिन शिवसेना ने बुधवार को प्रकाशित हुए पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में अपने मन की बात संपादकीय में प्रकाशित की है। संपादकीय में लिखा, ‘बीजेपी से युति अवश्य है लेकिन शिवसेना अपने तेवर वाला संगठन है एक संकल्प लेकर शिवसेना आगे बढ़ी है। इस संकल्प के आधार पर हम कल विधानसभा को ‘भगवा’ कर के छोड़ेंगे और शिवसेना के 54वें वर्धापन दिवस समारोह में शिवसेना का मुख्यमंत्री विराजमान होगा। चलिए यह संकल्प लेकर काम शुरू करें!’ 

शिवसेना की 'मन की बात' 

शिवसेना की यह संपादकीय उसके 'मन की बात' है और पार्टी को यह अच्छी तरह से पता है कि सीटों का आँकड़ा हासिल किये बिना मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच पाना एक नामुमकिन-सा खेल है। और शायद इसी को लेकर शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मार्मिक अपील अपने शिव सैनिकों से की है। इस अपील के ज़रिये पार्टी युवा कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने की कोशिश में है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भले ही शिवसेना की वर्षगाँठ पर उपस्थित रहे लेकिन अपने संपादकीय में शिवसेना ने यह भी साफ़ कर दिया है कि अगली दफ़ा सूबे के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नहीं रहेंगे!. 

क्या विधानसभा में भी होगी कड़वाहट?

लोकसभा चुनाव से पहले शिवसेना और बीजेपी के बीच कड़वाहट चरम पर थी। गठबंधन सरकार का हिस्सा होते हुए भी शिवसेना ने विपक्षी पार्टी से भी बेहतर भूमिका इस दौरान निभाई। नीतियों को लेकर मोदी को भी नहीं बख्शा गया। जीतने के बाद शिवसेना को आशा थी कि उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अच्छी ख़ासी जगह मिलेगी लेकिन निराशा ही हाथ लगी। राज्य में भी शिवसेना को अपनी जगह बनाने के लिए ख़ासी मेहनत करनी पड़ी। विधानसभा चुनाव में भले शिवसेना-बीजेपी गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ रही है फिर भी सीटों के बँटवारे को लेकर शिवसेना और बीजेपी के बीच बड़ी रस्साकशी होने वाली है। 13 सीटों का ऐसा आँकड़ा है जो पहले शिवसेना जीतती रही थी लेकिन पिछली बार अलग-अलग लड़ने में वे सीटें बीजेपी जीत गयी। इनमें सुभाष देसाई जैसे शिवसेना के वरिष्ठ नेता की भी सीट है। 

शिवसेना को यह दुख हमेशा सालता रहा है कि जिस बीजेपी ने राज्य में शिवसेना का हाथ थाम कर अपनी ज़मीन मज़बूत की, अब वही बीजेपी, शिवसेना के साथ शर्तों की राजनीति करने पर उतर आई है।

जहाँ तक महाराष्ट्र में बीजेपी- शिवसेना गठबंधन की बात है, शिवसेना ख़ुद को ‘बड़े भाई’ के तौर पर ही मानती रही थी लेकिन अब बीजेपी ख़ुद को ‘छोटा भाई’ मानने को तैयार नहीं है। शिवसेना के संस्थापक व सुप्रीमो बाल ठाकरे के निधन के बाद स्थिति बदली है। साथ ही साथ बीजेपी का ग्राफ़ राज्य ही नहीं, देश में भी बढ़ा है। पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज़ होने के बाद बीजेपी के तेवर भी बदले-बदले से हैं। शिवसेना किसी भी हालत में नहीं चाहती कि राज्य की सत्ता की धुरी से वह दूर रहे। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की मुंबई महानगर पालिका शिवसेना के कब्ज़े में है। नगर निगम चुनाव के दौरान बीजेपी ने इसे भी अपने कब्ज़े में लेने की कोशिश की थी। शिवसेना इस संघर्ष को भी भूली नहीं है। वैसे शिवसेना एक दफ़ा राज्य सत्ता का सुख भोग चुकी है। शिवसेना के मनोहर जोशी और नारायण राणे सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन उस वक़्त ठाकरे परिवार किंग मेकर और रिमोट कंट्रोल की भूमिका में था। सत्ता का असली केंद्र बाल ठाकरे का निवास स्थान ‘मातोश्री’ था। बीजेपी के आला नेताओं को भी मातोश्री आना पड़ता था। 

अब शिवसेना चाहती है एक बार फिर महाराष्ट्र की सत्ता की चाभी उसके हाथ में आए। लेकिन अब की दफ़ा ठाकरे परिवार की मंशा है कि यह चाभी सिर्फ़ शिवसेना ही नहीं बल्कि ठाकरे परिवार के हाथ में संवैधानिक तौर पर आए। इसकी तैयारियाँ शिवसेना में शुरू हो चुकी हैं। 

आदित्य ठाकरे के लिए बनाई जगह?

ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी आदित्य जो शिवसेना की युवा सेना के प्रमुख हैं, विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। और शिवसेना चाहती है कि महाराष्ट्र के चीफ़ मिनिस्टर की कुर्सी पर युवा आदित्य ठाकरे विराजें। ठाकरे परिवार के सत्ता में शामिल होने के कयास पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान ही लगाये जाने लगे थे। 

पिछली बार जब उद्धव ठाकरे को मैदान में उतारने की बातें चल रही थीं तो उनके भाई महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे भी अपने आपको मुख्यमंत्री के रूप में उतारने के लिए भूमिका बनाने लगे थे। लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में राजनीति के समीकरणों को बदल डाला। जो शिवसेना -बीजेपी से ज़्यादा सीटें जीतती थी वह अब उससे बहुत पीछे छूट गयी। बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने से मात्र कुछ सीटें ही पीछे रह गयी। अब शिवसेना का मुख्यमंत्री का दाँव इस नज़रिये से भी देखा जा रहा है कि वह आदित्य ठाकरे के नाम पर पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं में नया जोश भर सके ताकि विधानसभा में उनकी सीटों में बड़ा इजाफ़ा हो सके।

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