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आईएफ़एससी को गुजरात ले जाने के फ़ैसले का महाराष्ट्र में विरोध क्यों?

आईएफ़एससी को गुजरात ले जाने के फ़ैसले का महाराष्ट्र में विरोध क्यों?

आईएफ़एससी को मुंबई के बजाय गुजरात ले जाने के फ़ैसले को लेकर महाराष्ट्र में राजनीति गरमा गयी है और इस मुद्दे पर केंद्र व महाराष्ट्र सरकार आमने-सामने है। 

आईएफ़एससी यानी इंटरनेशनल फ़ाइनेंशियल सर्विसेस सेंटर के मुख्यालय को मुंबई के बजाय गुजरात के गांधीनगर ले जाने को लेकर अब विवाद क्यों खड़ा हुआ है क्या सिर्फ इसलिए कि 27 अप्रैल, 2020 को इस संबंध में सरकारी आदेश निकाला गया या इसके पीछे कुछ और कारण है। 

आईएफ़एससी बिल 2019 को 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा ने तथा उसके अगले ही दिन राज्यसभा ने पास कर दिया था। उस समय यह स्पष्ट संकेत थे कि इसे गांधीनगर स्थित गुजरात इंटरनेशनल फ़ाइनेंस टेक (गिफ्ट) सिटी ले जाया जाएगा। 

साल 2017 में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में भी तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि आईएफ़एससी को गिफ्ट सिटी में ही स्थापित किया जाएगा। लेकिन अब जब इस बारे में केंद्र सरकार की ओर से आदेश जारी हो गया है तो महाराष्ट्र में राजनीति गरमा गयी है।

प्रदेश में वैसे ही केंद्र सरकार से आर्थिक पैकेज को लेकर टकराव की स्थिति है। ऐसे में केंद्र सरकार के इस निर्णय ने आग में घी डालने का काम किया है। पहला विरोध एनसीपी प्रमुख शरद पवार की तरफ से आया है, इसलिए इसकी गंभीरता और अधिक मानी जा रही है।

एक समाचार पत्र द्वारा आयोजित महाराष्ट्र राज्य के हीरक जयंती समारोह में वेब संवाद के माध्यम से बातचीत में शरद पवार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मात्र अपने गृह राज्य (गुजरात) को फायदा पहुंचाने के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए, उन्हें पूरे देश का ध्यान रखना चाहिए। 

पुनर्विचार करे केंद्र सरकार: पवार 

पवार ने कहा कि आईएफ़एससी को मुंबई से हटाकर गुजरात ले जाने के निर्णय से हम नाराज हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए। शरद पवार का यह बयान न सिर्फ महाराष्ट्र अपितु राष्ट्रीय स्तर पर एक नया ध्रुवीकरण कर सकता है। यह केंद्र-राज्य संबंधों के टकराव की एक नई शुरुआत की कहानी भी हो सकता है। वैसे, राज्य सरकार की ओर से छगन भुजबल ने तो टकराव की शुरुआत को लेकर बयान भी जारी कर दिया है। 

दरअसल, साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आईएफ़एससी को मुंबई में बनाने की घोषणा की थी और उसके पीछे कारण था मुंबई  की भौगोलिक स्थिति और टाइम जोन। मुंबई दो बड़े आईएफ़एससी केंद्रों लंदन और सिंगापुर के बीच में पड़ता है। इसको लेकर जाने-माने बैंकर परसी मिस्त्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। 

समिति का काम यह बताना था कि इस केंद्र को लेकर शहर में किस प्रकार की मूलभूत सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए। समिति ने न सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चरल सुविधाओं की सिफारिश की थी अपितु बैंकिंग, सिक्योरिटीज, करेंसी ट्रेडिंग, कमॉडिटी को लेकर लचीले क़ानून बनाने की बात भी कही थी। लेकिन मिस्त्री की सिफारिशों के अनुरूप इंफ्रास्ट्रक्चरल सुविधाएं विकसित नहीं हो पायीं। 

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही यह आशंकाएं जताई जाने लगी थीं कि आईएफ़एससी का मुंबई में बनना मुश्किल है।

आरबीआई, बीएसई, एनएसई, सेबी तथा प्रमुख बैंकों के मुख्यालय मुंबई में हैं, इसलिए यह उम्मीद थी कि आईएफ़एससी यहीं स्थापित होगा। लेकिन अब यह गुजरात चला गया है तो महाराष्ट्र में राजनीति गरमा गयी है।

'महाराष्ट्र को पीछे धकेलने का खेल'

शरद पवार ने कहा है कि लॉकडाउन ख़त्म होने पर वह तथा महाराष्ट्र के अन्य नेता केंद्रीय वित्त मंत्री से मिलकर इस संबंध में चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य के आर्थिक पैकेज के लिए भी उन्होंने केंद्र सरकार को कई पत्र लिखे लेकिन कोई जवाब नहीं आया, ऐसे में मुंबई से वित्तीय गतिविधियां हटाकर गुजरात ले जाने का निर्णय महाराष्ट्र को पीछे धकेलने का खेल है।

महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष और ठाकरे सरकार में राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा है कि केंद्र का यह फ़ैसला बेहद निराशाजनक है और यह मुंबई के क़द को कम करने के लिया गया है। शिवसेना के सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि केंद्र का यह निर्णय ‘सबका साथ, सबका विकास’ की लाइन के मुताबिक़ नहीं है। 

पिछले पांच सालों से कांग्रेस-एनसीपी ही नहीं शिवसेना भी इस बात का इशारा करती रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र की अनेक योजनाओं और यहां आने वाले निवेश को गुजरात ले जाने को प्रोत्साहन दे रहे हैं। 

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