सेंगोल को किस रूप में अपनाने की बात कह रहे हैं थरूर?
नए लोकसभा कक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्थापित किए गए ऐतिहासिक राजदंड 'सेंगोल' को लेकर हुए भारी विवाद के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने एक सलाह दी है। सेंगोल पर दोनों पक्षों की दलीलों को सही बताते हुए थरूर ने कहा है कि इसे अब अपनाया जाना चाहिए। हालाँकि किस रूप में अपनाया जाए, इसको लेकर उन्होंने अलग राय रखी है।
इसको लेकर आज उन्होंने ट्वीट किया है और सेंगोल पर उठे विवाद का ज़िक्र करते हुए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच समाधान किए जाने पर जोर दिया है।
My own view on the #sengol controversy is that both sides have good arguments. The government rightly argues that the sceptre reflects a continuity of tradition by embodying sanctified sovereignty & the rule of dharma. The Opposition rightly argues that the Constitution was… pic.twitter.com/OQ3RktGiIp
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) May 28, 2023
थरूर की टिप्पणी उनकी पार्टी कांग्रेस द्वारा राजदंड के इतिहास पर सरकार के दावों को फर्जी करार दिए जाने के बाद आई है।
उन्होंने ट्वीट में कहा है, 'सेंगोल विवाद पर मेरा अपना विचार है कि दोनों पक्षों के अच्छे तर्क हैं। सरकार का यह कहना सही है कि राजदंड पवित्र संप्रभुता और धर्म के शासन को मूर्त रूप देते हुए परंपरा की निरंतरता को दर्शाता है। विपक्ष भी सही तर्क देता है कि लोगों के नाम पर संविधान को अपनाया गया था और यह संप्रभुता भारत के लोगों में उनकी संसद में प्रतिनिधित्व के रूप में रहती है, और यह दैवीय शक्ति द्वारा दिया गया एक राजा का विशेषाधिकार नहीं है।'
थरूर ने कहा है कि दो स्थितियाँ ऐसी हैं जो सामंजस्यपूर्ण हैं यदि कोई एक सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में माउंटबेटन द्वारा नेहरू को सौंपे गए राजदंड के बारे में विवादास्पद तथ्य को छोड़ देता है। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी कहानी है जिसके पक्ष में कोई सबूत नहीं है।
उन्होंने कहा, 'इसके बजाय हमें बस यह कहना चाहिए कि सेंगोल राजदंड शक्ति और अधिकार का एक पारंपरिक प्रतीक है और इसे लोकसभा में रखकर, भारत इस बात की पुष्टि कर रहा है कि संप्रभुता वहां रहती है न कि किसी सम्राट के पास।' इसके साथ ही उन्होंने कहा है, 'आइए हम अपने वर्तमान के मूल्यों की पुष्टि करने के लिए अतीत से इस प्रतीक को स्वीकार करें।'
थरूर का यह बयान तब आया है जब कांग्रेस ने शुक्रवार को दावा किया है कि 'सेंगोल' के बारे में यह साबित करने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि ब्रिटिश और भारत के बीच सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसे सौंपा गया था।
कांग्रेस ने कहा है कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालचारी और जवाहरलाल नेहरू के बीच 'सेंगोल' के बारे में ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है।
एक ट्वीट में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था, 'इस आशय के सभी दावे सतही और आम– बोगस हैं। पूरी तरह से कुछ लोगों के दिमाग में निर्मित और पूरी तरह से वाट्सऐप में फैलाया गया, और अब मीडिया में ढोल पीटने वालों के लिए है।' उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके 'ढोल बजाने वाले' तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए राजदंड का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को सेंगोल के संसद में स्थापित किए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि यह राजदंड अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए 14 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था। गृह मंत्री ने कहा कि इस राजदंड को 'सेंगोल' कहा जाता है जो तमिल शब्द 'सेम्माई' से आया है और जिसका अर्थ है 'नीति परायणता'। उन्होंने कहा कि यह सेंगोल पौराणिक चोल राजवंश से संबंधित है। शाह ने कहा कि सेंगोल स्वतंत्रता और निष्पक्ष शासन की भावना का प्रतीक है।