एपीएमसी एक्ट में छोटे सुधारों की बात कही थी: शरद पवार
किसानों के तेवरों से बैकफ़ुट पर आई मोदी सरकार विपक्ष के नेताओं के पुराने बयानों को सामने ला रही है। उसका कहना है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जो बात सरकार में शामिल मंत्री कहते थे, आज उसी बात का वे विरोध कर रहे हैं। मोदी सरकार और बीजेपी का कहना है कि ये नेता अपनी सियासी बंदूक चलाने के लिए किसानों के कंधे का इस्तेमाल कर रहे हैं।
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार पर लगातार हमला बोल रहे हैं। रविशंकर प्रसाद ने कुछ दिन पहले प्रेस कॉन्फ्रेन्स में शरद पवार की दो चिट्ठियों को सार्वजनिक किया था।
प्रसाद के मुताबिक़, पवार ने इन चिट्ठियों में मंडी एक्ट में बदलाव, प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी की ज़रूरत और किसानों को मंडी में कहीं भी फसल बेचने का मौक़ा देने की हिमायत की थी। ये चिट्ठियां पवार ने 2010 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखी थीं। प्रसाद ने कहा था कि पवार तो कृषि सुधारों के नरेंद्र मोदी सरकार से ज़्यादा हिमायती रहे हैं।
लेकिन अब शरद पवार की ओर से इस मामले में जवाब आया है। पवार ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार के इन नए कृषि क़ानूनों में एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी यानी एपीएमसी का कोई जिक्र नहीं है।
पवार ने कहा कि बीजेपी उनके पुराने पत्रों को निकालकर मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है। पवार ने पत्रकारों से कहा, ‘मैंने पत्र में लिखा था कि एपीएमसी एक्ट में छोटे सुधार करने की ज़रूरत है लेकिन इस एक्ट को जारी रखा जाना चाहिए। केंद्र सरकार के तीनों नए कृषि क़ानूनों में एपीएमसी एक्ट का नाम तक नहीं दिखाई देता।’ अनुभवी नेता पवार ने कहा कि बीजेपी की इस तरह की बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है।
राष्ट्रपति से मिलेंगे विपक्षी नेता
किसान आंदोलन के मद्देनज़र विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से मिलने का फ़ैसला किया है। सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी ने मंगलवार को एएनआई से कहा कि विपक्षी दलों के नेताओं का संयुक्त प्रतिनिधिमंडल बुधवार को शाम 5 बजे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलेगा। उन्होंने बताया कि प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, एनसीपी मुखिया शरद पवार सहित कुछ अन्य नेता शामिल होंगे। येचुरी ने कहा कि कोरोना के प्रोटोकॉल के तहत केवल 5 लोगों को ही मिलने की अनुमति मिली है।
सुनिए, किसान आंदोलन पर चर्चा-
शाह के साथ हुई बैठक
दूसरी ओर, किसानों के उग्र तेवरों के बीच सरकार ने एक बार फिर बातचीत के लिए हाथ आगे बढ़ाया। विवाद का हल निकालने के लिए मंगलवार शाम को गृह मंत्री अमित शाह सामने आए। शाह और किसान नेताओं के बीच दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) के गेस्ट हाउस में काफी देर तक बैठक हुई। बैठक के बाद किसान नेताओं ने बताया कि अमित शाह ने किसानों से कहा है कि सरकार किसानों के सामने एक प्रस्ताव रखेगी।
किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि शाह के साथ हुई बैठक में कोई हल नहीं निकला है। शाह ने कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन आंदोलनकारियों ने इसे नहीं माना। उन्होंने कहा कि किसान नेता सरकार के आने वाले प्रस्ताव का अध्ययन करेंगे। इस प्रस्ताव को लेकर किसान नेताओं की बैठक बुधवार को दिन में सिंघु बॉर्डर पर होगी।
मोदी सरकार भी लगातार कोशिश कर रही है कि किसानों का आंदोलन ख़त्म हो और इसके लिए वह उनसे कई दौर की बातचीत भी कर चुकी है लेकिन किसानों का कहना है कि इन क़ानूनों को रद्द करने से कम पर उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है।
दिल्ली के टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों का साफ कहना है कि केंद्र सरकार इन कृषि क़ानूनों को वापस ले वरना वे आंदोलन को और तेज़ करेंगे। पहले बातचीत तक से पीछे हटती रही सरकार अब इन क़ानूनों में संशोधन करने की बात कहने लगी है लेकिन किसान इसके लिए राजी नहीं हैं। वे चाहते हैं कि सरकार इन क़ानूनों को बिना शर्त और तुरंत वापस ले।
किसानों के आंदोलन को कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी, एसपी, एनसीपी, शिव सेना, जेएमएम, टीआरएस, सीपीआई, सीपीआई(एम), ऑल इंडिया फ़ॉरवर्ड ब्लॉक सहित 24 विपक्षी दलों का समर्थन अब तक मिल चुका है। ऐसे में यह आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है।