शरद पवार की एनसीपी को 'तुतारी' चुनाव चिह्न की वजह से हुआ नुक़सान?
शरद पवार की पार्टी ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन उसका मानना है कि चुनाव आयोग के एक फ़ैसले से उसका प्रदर्शन और भी बेहतर हो सकता था। इसका कहना है कि इसको मिला चुनाव चिह्न तुतारी यानी तुरही निर्दलीय उम्मीदवारों को भी आवंटित किया जाता रहा है और इस वजह से उसको लोकसभा चुनाव में नुक़सान हुआ है।
इसी के मद्देनज़र एनसीपी (एसपी) ने अब तुतारी को चुनाव आयोग की स्वतंत्र चुनाव चिह्नों की सूची से हटाने के लिए ईसीआई से संपर्क किया है, खास तौर पर इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में 10 लोकसभा सीटों में से आठ पर जीत हासिल करने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) का मानना है कि अगर चुनाव आयोग की स्वतंत्र प्रतीकों की सूची में तुतारी को शामिल नहीं किया जाता तो पार्टी और बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी। तुतारी पार्टी के चुनाव चिह्न से मिलता-जुलता है और यह सूची स्वतंत्र या अपंजीकृत राजनीतिक दलों को आवंटित की जाती है।
चुनाव आयोग द्वारा अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट को असली एनसीपी के रूप में मान्यता दिए जाने और पार्टी का नाम तथा घड़ी का मूल चिह्न सौंपे जाने के बाद एनसीपी (एसपी) को तुतारी वजवनारा मानुस यानी तुरही बजाता हुआ आदमी चिह्न आवंटित किया गया था।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पार्टी महासचिव जयदेव गायकवाड़ ने कहा कि मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति इस बात से थी कि हमारे चुनाव चिह्न से मिलते-जुलते तुतारी चिह्न वाले निर्दलीय उम्मीदवारों को कितने वोट मिले। उन्होंने कहा कि एनसीपी (सपा) ने भी चुनाव से पहले चुनाव आयोग से कहा था कि तुतारी चिह्न दूसरों को आवंटित न किया जाए। उन्होंने कहा, 'प्रतीक चिह्न को लेकर भ्रम की वजह से हम एक सीट हार गए, पर इसका असर दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में भी पड़ा। सौभाग्य से हमारे उम्मीदवारों को भारी संख्या में वोट मिले और अंतिम परिणाम पर इसका असर नहीं पड़ा।'
पार्टी को अब आशंका है कि अगर चुनाव चिह्न को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही तो आने वाले विधानसभा चुनावों में हर निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या कम होने से पार्टी की संभावनाओं को और नुकसान पहुंचेगा।
बता दें कि सतारा निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार चुनाव लड़ रहे संजय गाडे नामक एक निर्दलीय उम्मीदवार को तुतारी का चुनाव चिह्न मिला। उन्होंने 37,062 वोट हासिल किए। एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार शशिकांत शिंदे भाजपा के उदयनराजे भोंसले से 31,771 वोटों से हार गए।
अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार डिंडोरी में तुतारी के चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय उम्मीदवार को 1.03 लाख वोट मिले। बाबू भागरे, जो एक अपेक्षाकृत अज्ञात चेहरा हैं, ने एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार भास्कर भागरे के नाम से ही काफी वोट हासिल किए। उन्होंने यहां आसानी से 1.13 लाख वोटों से जीत दर्ज की।
बीड में एनसीपी (एसपी) के बजरंग सोनावणे ने हाई-प्रोफाइल भाजपा उम्मीदवार पंकजा मुंडे के खिलाफ मुश्किल से जीत दर्ज की। सोनवणे की 6,553 वोटों की मामूली जीत हुई। बहुजन महा पार्टी के उम्मीदवार अशोक थोराट को 54,850 वोट मिले, जो पहली बार चुनाव लड़ रहे थे और तुरही के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ रहे थे।
बारामती में कड़ी टक्कर के बावजूद एनसीपी (एसपी) के संरक्षक शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पर 1.5 लाख वोटों से जीत दर्ज की। वहाँ निर्दलीय उम्मीदवार महेश सीताराम भगत ने तुरही के चुनाव चिह्न पर 14,000 से अधिक वोट हासिल किए।