+
शर्मनाकः भाजपा आईटी सेल टीचर के पीछे इसलिए पीछे पड़ गई, क्योंकि... 

शर्मनाकः भाजपा आईटी सेल टीचर के पीछे इसलिए पीछे पड़ गई, क्योंकि... 

अनएकेडमी पर ऑनलाइन टीचर करण सांगवान का सोशल मीडिया पर एक संदेश तब वायरल हो गया जब उन्होंने अपने छात्रों से 'पढ़े-लिखे' नेताओं को वोट देने का आग्रह किया। भाजपा आईटी सेल ने करण सांगवान को जबरदस्त ट्रोल किया। ऐसा सिर्फ करण सांगवान के साथ नहीं हुआ, अशोक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सब्यसाची दास को इन्हीं हालात का सामना करना पड़ा। अब उन्होंने यूनिवर्सिटी से इस्तीफा दे दिया है।

अनएकेडमी (UnAcademy) के लॉ टीचर करण सांगवान ने बिना किसी का नाम लिए अपने छात्रों से पढ़े लिखे नेताओं को वोट देने का आग्रह किया। बीजेपी आईटी सेल ने मान लिया कि यह उनके सबसे बड़े नेता के संदर्भ में कहा गया है। इसके बाद भाजपा आईटी सेल ने करण को अपमानित करना और गाली देना शुरू कर दिया। सूत्रों का कहना है कि अनएकेडमी करण को अपने ट्यूटर पैनल से हटा सकती है। देश में इस बात पर बहस होती रही है कि राजनीतिक दल आतंकवाद के आरोपियों और रेप के आरोपियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे सकती हैं लेकिन कोई पढ़े लिखे नेताओं के लिए वोट करने की अपील नहीं कर सकता। लोगों ने सोशल मीडिया पर इस घटनाक्रम का जिक्र करते हुए लिखा है कि नये भारत में आपका स्वागत है।

Unacademy एक ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म है। जहां विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ टीचर पढ़ाते हैं। छात्र अपना रजिस्ट्रेशन करवाकर यहां पर कुछ फीस देकर पढ़ते हैं। लेकिन यहां के लॉ टीचर ने जब छात्रों को लेक्चर के दौरान यह अपील कर दी, वो वायरल हो गई। जो वीडियो वायरल हुआ, उसमें सांगवान को छात्रों को उन नेताओं को वोट न देने की सलाह देते हुए सुना जा सकता है जो केवल नाम बदलने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सांगवान ने ऐसे नेताओं के बजाय ठीकठाक पढ़े लिखे व्यक्तियों को चुनने को कहा। टीचर सांगवान के पास एल.एल.एम. की डिग्री है। सांगवान भाजपा शासित केंद्र सरकार के नवीनतम विधेयक पर चर्चा कर रहे थे। इस विधेयक का उद्देश्य ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलना है। 

बिल पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए, सांगवान ने कहा, "यहां तक ​​कि मुझे भी नहीं पता कि हंसूं या रोऊं क्योंकि मेरे पास भी बहुत सारे नोट्स हैं जो मैंने तैयार किए थे। अब बदलना होगा। यह हर किसी के लिए कड़ी मेहनत है। आपको भी एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना है।" उन्होंने भविष्य में इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करने से बचने के लिए राजनीतिक प्रतिनिधियों के रूप में सुशिक्षित व्यक्तियों को चुनने की आवश्यकता पर जोर दिया। सांगवान ने छात्रों से अनुरोध किया-

किसी ऐसे व्यक्ति को चुनें जो शिक्षित हो, जो चीजों को समझता हो। किसी ऐसे व्यक्ति को न चुनें जो केवल नाम बदलना जानता हो। अपना निर्णय ठीक से लें।


-करण सांगवान, ऑनलाइन लॉ टीचर, अनएकेडमी सोर्सः ट्विटर

टूट पड़ी भाजपा आईटी सेल

सांगवान के इस वीडियो बयान को किसी ने ट्विटर (एक्स नया नाम) पर डाल दिया। इसके बाद भाजपा आईटी सेल के लोग अलग-अलग नामों से सांगवान के पीछे पड़ गए। भाजपा आईटी सेल के लोगों ने सांगवान पर शिक्षा की आड़ में राजनीतिक प्रचार-प्रसार करने का आरोप लगाया। भाजपा आईटी सेल के लोगों ने लिखा, “तो कुल मिलाकर. वह इस बात से परेशान है कि वर्तमान सरकार ने कानूनों को बदल दिया है, अधिक आधुनिक कोड जोड़े हैं और उसे सब कुछ फिर से सीखना होगा। और यही व्यक्ति बाद में चाय की मेज पर कहेगा कि भारतीय कानून और कोड अभी भी ब्रिटिश काल के हैं और सरकार उन्हें नहीं बदलती है। हालांकि लोग लॉ टीचर करण सांगवान का समर्थन करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। ऐसे तमाम लोगों ने करण सांगवान का पक्ष लेते हुए लिखा- “शिक्षित राजनेताओं को चुनने के संबंध में उन्होंने जो कुछ भी कहा वह सही और सत्य है।”

 - Satya Hindi

सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास और अशोक यूनिवर्सिटी

अशोक यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने इस्तीफा दे दिया है। द वायर ने यह खबर दी है। प्रोफेसर दास ने 2019 के चुनाव परिणामों को किस तरह प्रभावित किया गया, इस पर एक विद्वतापूर्ण पेपर लिखा था। इस पेपर के सार्वजनिक होने के बाद राजनीतिक हलचल मच गई। उन्हें इतना ट्रोल किया गया कि उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा। अशोक यूनिवर्सिटी हालांकि प्राइवेट यूनिवर्सिटी है लेकिन उसने थोड़े ही समय में काफी नाम कमा लिया। लेकिन इस यूनिवर्सिटी में हाल ही में जिस तरह से तमाम प्रोफेसरों को सरकार की आलोचना के बाद जाना पड़ा वो शर्मनाक है। इसमें वीसी तक शामिल हैं। 

प्रोफेसर दास ने 2019 के लोकसभा चुनावों में चुनावी 'हेरफेर' की संभावना का आरोप लगाते हुए यह पेपर लिखा था। 2109 में भाजपा 2014 की तुलना में बहुत अधिक अंतर के साथ सत्ता में वापस आई थी। प्रो. सब्यसाची दास ने ईवीएम से जोड़ते हुए इसी पर सवाल उठाया था।

25 जुलाई, 2023 के अपने पेपर- 'डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' में प्रो. दास ने जिन तरीकों और प्रभावों को देखा, वे केवल 11 सीटों तक ही सीमित थे। लेकिन उनके अध्ययन ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। भाजपा आईटी सेल और पार्टी नेताओं ने भी विद्वान प्रोफेसर के निष्कर्षों पर हमला किया। 1 अगस्त को यह मामला तब गर्म हो गया जब अशोक विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी कर खुद को प्रो. दास के पेपर से अलग कर लिया और कहा कि वह इस मुद्दे पर अटकलों और बहस से निराश है।

भाजपा के आईटी सेल के संयोजक अमित मालवीय ने कहा, “अशोक विश्वविद्यालय के सब्यसाची दास का शोध पत्र कई डेटासेट और दर्जनों चार्ट को ‘सबूत’ के रूप में पेश करता है, जिसे वो ‘महत्वपूर्ण अनियमितताएं’ और ‘चुनावी धोखाधड़ी’ कहते हैं। ये बड़े दावे और सबूत ढेर हो गए हैं? उनके हर सवाल का जवाब नहीं है…।"

जब द वायर ने रविवार शाम को उनसे यह जानने के लिए संपर्क किया कि क्या वह बात करने की स्थिति में होंगे, तो प्रो. दास ने कहा- “मैं इस समय मीडिया से बात नहीं कर रहा हूं। मैं मीडिया से बात करने से पहले अपना पेपर प्रकाशित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं।'' जब दास से स्पष्ट रूप से पूछा गया कि क्या उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि अशोक यूनिवर्सिटी की तीन फैकल्टी सदस्यों ने प्रो. दास के इस्तीफे की पुष्टि की है। लेकिन इस्तीफा स्वीकार हुआ या नहीं, यह साफ नहीं है।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें