समीक्षा: शाहरुख की 'डंकी' क्या राजकुमारी हीरानी का असर छोड़ती है?
राजकुमार हीरानी की फ़िल्में दर्शकों को हँसाने, उन्हें खूब इमोशनल कर देने और सकारात्मक संदेश देने के लिए जानी जाती हैं। मुन्नाभाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्नाभाई, थ्री इडियट्स और पीके में हीरानी ने गंभीर विषयों को उठाया और उन्हें कसी हुई कथा-पटकथा के साँचे में ढालकर कॉमेडी और इमोशन के मिश्रण के साथ हल्के- फुल्के अंदाज में पेश किया और दर्शकों की वाहवाही के साथ-साथ बॉक्स ऑफिस पर भी जबरदस्त कामयाबी हासिल की। हीरानी के निर्देशन में संजय दत्त, आमिर खान, बोमन ईरानी का शानदार अभिनय इन फिल्मों की सफलता के साथ जुड़ा रहा है।
डंकी में हंसी और इमोशन दोनों मोर्चो पर थोड़ी कमी लगती है। फिल्म अच्छी है लेकिन खुद राजकुमार हीरानी की पिछली फिल्मों के मुकाबले एक अच्छे विषय के बावजूद ट्रीटमेंट में कमजोर है और कम असर छोड़ती है। शाहरुख खान 2023 में दो धमाकेदार एक्शन फिल्में देने के बाद डंकी में वापस इमोशनल रोल में लौटे हैं।
यह इस साल शाहरुख की तीसरी बड़ी फ़िल्म है। देखना है कि इस साल पठान, जवान और एनिमल को छप्परफाड़ कामयाबी देने वाला दर्शक साल के अंत में रिलीज हुई डंकी को कितना सराहता है। फिल्म ख़त्म होने के बाद जो एक एक्टर सबसे ज्यादा याद रह जाता है वह है विकी कौशल। छोटे से किरदार में विकी कौशल ने कमाल का काम किया है और एक बार फिर साबित किया है कि उनमें गजब की प्रतिभा है। सैम बहादुर के फौरन बाद इस साल यह उनकी दूसरी फिल्म है। राजू हीरानी के साथ इससे पहले विकी संजू फिल्म में नजर आए थे और शानदार अभिनय के लिए खूब प्रशंसा मिली थी।
फिल्म की कहानी अवैध तरीके से विदेश जाने वाले आम लोगों से जुड़ी है और उनके प्रति सहानुभूति दिखाती है। बर्मिंघम हियर आई कम का संवाद कई बार गूंजता है। फिल्म के अंत में निर्देशक ने एक ग्राफिक प्लेट पर आंकड़ों के ज़रिये इस समस्या से जुड़े कुछ तथ्य उजागर करते हुए यह भी कहा है कि सीमाएँ सिर्फ गरीबों को रोकती हैं।
यह फिल्म जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी की पुरानी सूक्ति को नये अंदाज में पेश करती है। फिल्म में देशप्रेम का मसाला है, लव स्टोरी है जहां हीरो-हीरोइन का ट्रैक भी पारंपरिक प्रेम कहानियों से अलग है। अफसोस की हीरानी की हर फिल्म में बहुत अहम किरदार में नजर आने वाले बोमन इरानी इस फिल्म में बहुत छोटी और कमजोर सी भूमिका में हैं। उनसे ज्यादा अच्छा स्पेस विक्रम कोचर और अनिल ग्रोवर को मिला है। तापसी पन्नू तो नायिका ही हैं।
अभिनेताओं का काम ठीक है। शाहरुख बड़ी उम्र के किरदार में ज्यादा अच्छे लगे हैं। अफसोस इस बार हीरानी, अभिजात जोशी की लिखावट और फिल्म निर्देशन में वो कसावट नहीं है जिसके लिए वो जाने जाते हैं।
(अमिताभ के फ़ेसबुक पेज से साभार)